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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ । सज्जनां श्रीमुपास्महे ।। अन्यान्यागमेषु अपि समादरा कृतपरिचया चैवं विधाया अस्या महाभागाया अभिनन्दनग्रन्थे मयापि पं० चण्डीप्रसादाचार्यो दाधिमथ: (पूर्व प्रिंसीपल दिव्यास्तुतिः प्रेष्यते । __ महाराजा संस्कृत महाविद्यालयः, जयपुरम्) अधिगच्छति शास्त्रार्थः स्मरति श्रद्धधाति च । अर्थः संस्पृश्य हत्तन्त्रीं याभिसंभाषणे स्वरान् ।। यत्कृपालेशतस्तस्मै नमोऽस्तु गुरवे सदा ।। व्यक्तवर्णपदां शुद्धां तां वन्दे सज्जनास्पदाम् ॥१॥ इहलोके तथान्यत्र चतुर्वर्गफलान्विताम् । संदिशन्तीं हितां नीति नयान्तीं च विनीतताम् ।।२।। श्री कुमारपाल वि० शाह वारयन्तीमधः पातान् प्रेरयन्तों शिवां मतिम् । मैने गंभीरतापूर्वक अनुभव दिया है कि पू० अर्पयन्ती परां विद्यां तर्पयन्तीं स्वभाषणैः ॥३॥ प्रवतिनी सज्जनश्रीजी महाराज निरन्तर स्वा " ध्याय में डूबी रहती हैं। जैनागम एवं अन्य दर्शन मातरं सर्वजनानां सज्जनां श्रीमुपास्महे ।। ... के गहन अध्ययन चिन्तन-मनन से आपका सम्पूर्ण कस्तां न पूजयेद् देवीं यस्याः संततभाषणे ।।४।। ' जीवन ही स्वाध्यायमय हो गया है। समय-समय विद्यारत्नानि विद्यन्ते विश्रु तानि चतुर्दश.... पर आपश्री के दर्शन व विचार विनिमय का अयि जैनागमबद्ध परिकरा विद्वांसो भक्ताश्च ! प्रसंग आता है। आपश्री इतने सरल शब्दों में धर्म ___ महामान्यानां सुविदितयशसा सुगृहीतनाम- के मर्म को समझा देती हैं, इतनी सुन्दरता से गहन धेयानां सज्जनश्रीमहाभागानामभिनन्दनग्रन्थः तत्वों का विवेचन कर देती हैं कि सुखद आश्चर्य प्रकाश्यते--इतिश्रावं श्रावं नितान्तं प्रमोमुदीति होता है । शत-शत वन्दन । मामकीनाचित्तवृत्तिः । विदितप्रभावा सज्जनश्री महाभागा सर्वत्र प्रथते । पण्डितानां सर्वदैवानया [] श्री मोतीलालजी ललवाणी, सीवानागढ़ समादरः कृत इति अस्माभिः समवलोकितम् । अस्या महाभागाया अध्यापनप्रसंगे ननम् आसां व्यवहार मुझे ज्ञात हुआ कि जयपुर संघ प्रवर्तिनीश्री जातेन वयं नितान्तं प्रभाविताः । अस्या महाभागाया सज्जनश्रीजी म. सा. के जन्म तिथि बैसाख पूर्णिमा बहुश्र तत्वं समवलोक्य कस्य चेतो न प्रसीदते । के दिन उनका अभिनन्दन करने जा रहा है । परम अस्या महाविभूतेस्तेजपुजं समवलोक्य न केवलं श्रद्धय प्रवर्तिनी श्रीसज्जनश्रीजी महाराज का सर्वे जैनाचार्या एव प्रभाविताः, अपितु साहित्य- जीवन वैशिष्ट्य भी एक व्यक्तित्व सम्पदा है । इस शास्त्रमर्मज्ञ आशुकविः श्रीहरिशास्त्री अपि मुक्त सम्पदा के लिए कहा जा सकता है कि वह अब कण्ठेन प्राशंसत् सामाजिक धरोहर है। वेशोऽतिभव्योऽस्या महाविभूतेः स्वाध्याय और ध्यान तो आपकी साधना के संस्मारयत्येव मुनीन्द्ररूपम् । मुख्य अंग हैं। प्रवर्तिनी श्रीसज्जनश्री का अभिन केवलं शास्त्रविचक्षणा सा नन्दन उनकी गुण गरिमा संयम, तप, त्याग, का चारिप्यमप्यस्यार्बुधैः समय॑म् ।। अभिनन्दन है। ऐसे हमारी गुरुवर्या का अभिनंदन का अनुपम अपूर्व अवसर हमें प्राप्त हो रहा है । शिष्यान्वेषणे च या सदा व्यावृता, तासां यह हमारे लिए गौरव का विषय है। ऐसे गुरुवर्या समुज्ज्वलजीवने समर्पितभावा सदा अस्माभिः के चरण कमल में शत-शत वंदन । समवलोकिता। जैनागमे सर्वथा बद्धादरा अपि खण्ड २/५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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