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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ । श्री सिरहमल नवलखा, श्री गजेन्द्रकुमार जी भंसाली, उदयपुर श्रीमती प्रेमलता नवलखा, जयपुर श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ, जयपुर आगम ज्योति प्रवर्तिनी आर्यारत्न पूज्य श्री भाग्यशाली है जिसे ऐसी पूज्यवर्याश्री जी का सज्जनश्री महाराज साहिबा का हम अभिनन्दन अभिनन्दन करने का सुयोग मिल रहा है। समारोह मनाने जा रहे हैं। आप जैसी कला संपन्न, ऐसा अभिनन्दन वस्तुतः राष्ट्र, समाज एवं परम विदुषी, स्वल्प मधुरभाषी, अध्ययनशील एवं खरतरगच्छ संघ के लिए नयी चेतना का अभिनन्दन गहन गम्भीर तात्विक एवं आध्यात्मिकता से ओत- है ? ऐसे शुभ कार्यों के संयोजकों को मैं साधुवाद प्रोत साध्वी जी हमारे समाज में बिरली ही हैं। देता हूँ। और इस महोत्सव की हीरकोज्ज्वल आपको शत-शत नमन । सफलता के लिए हार्दिक मंगलभावना प्रेषित करता ऐसी गण गरिमा एवं सयम तप त्याग से ओत- हूँ। पूज्यवर्याश्री जी को शुभकामनाएँ देकर रस्म प्रोत प्रवर्तिनीजी के अभिनन्दन का सौभाग्य हमें अदायगी करना धृष्टता होगी, संस्कृति के इस संवाहक को मैं अपना प्रणाम अर्पित करता हूँ। प्राप्त हो रहा है, वस्तुतः यह हमारा ही परम अहोभाग्य है। इस शुभ अवसर पर हम आपके प्रति पूर्ण श्रद्धा से नतमस्तक हैं, एवं आपके यशस्वी श्री मानमलजी सुराणा, जीवन से प्रेरणा लेकर अपना जीवन भी सार्थक एवं सम्पूर्ण परिवार बनाने का संकल्प लेते हैं। अजमेर (राज.) - श्री दुलीचन्दजी टांक (जयपुर) अत्यन्त हार्दिक प्रसन्नता है कि प. श्रद्धया परम पूज्या गुरुवर्या, प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री प्रवा पती श्रीमती प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री जी म. सा० के ५२वें जी म. सा. के विषय में कुछ लिखना सूर्य को दीपक जन्म जयन्ती महोत्सव पर उ. भा. श्री जैन खरतदिखाने जैसा है। आपश्री आशकवयित्री आगमज्ञा, रगच्छ संघ, वैशाख शुक्ला पूर्णिमा वि० सं० २०४६ ज्योतिष, ध्यान आदि विषयों की मर्मज्ञा तो हैं ही तदनुसार शनिवार दि० २० मई १९८६ को जयपर साथ ही अत्यन्त शांत एवं सरल स्वभावी हैं। __नगर में अभिनन्दन समारोह समायोजित कर रहा __ जयपूर संघ का अपूर्व सौभाग्य है कि आपश्री अनेक उपकार हैं । आपका आदर्श जीवन हम सबके है। चतुर्विध संघ पर प. पूजनीया प्रवर्तिनी जी के के दर्शन वंदन का लाभ सतत मिल रहा है। लिये धर्म आराधना हेतु परम प्रेरणास्पद है। इस हम श्रावक तो मात्र उनके गुणों की अनुमोदना ही सुअवसर पर प. पू. प्रवर्तिनी श्री के चरण कमलों कर सकते हैं । शासन देव से प्रार्थना है कि आपश्री में नत मस्तक होकर सविनय वंदना अर्ज करता दीर्घायु होकर संघ की सम्भाल करती रहें। हूँ और शासन देव से प्रार्थना करता हूँ कि आप चिराय और स्वस्थ रहकर इसी प्रकार 0 श्री बलवन्तराजजी भन्साली जैन शासन की सेवा एवं प्रभावना करती रहें एवं अभिनन्दन समारोह के इस अवसर पर पूज्य आपकी आदर्श विदुषी शिष्याएँ भी आपके आदर्श प्रवर्तिनी जी म. सा. के वैदुष्य और संयम-तप- जीवन का अनुकरण करें और आत्मकल्याण व त्यागपूर्ण गुणगरिमा का अभिनन्दन करते हुए मैं लोककल्याण द्वारा जैन शासन की शोभा बढ़ाती आपके सुस्वास्थ्य तथा दीर्घायु की कामना करता रहें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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