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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभ कामनाएँ जीवन में गणों का विकास होना ही जीवन की 0 श्री विजयकुमारजी कक्कड़, सरवाड़ सार्थकता है। ऐसे व्यक्तित्व को ही दुनिया नमन करती है। वन्दन करते हुए आशीर्वाद चाहती हूँ पृथ्वी पर आदि अनादि से समय-समय पर कि मुझ में भी इन गुणों का विकास हो । __ महान् विभूतियाँ हुई हैं, जिन्होंने अपने अनूठे • व्यक्तित्व द्वारा दुनियाँ को ज्ञान रूपी प्रकाश से 0 श्रीमती मेमबाई सुराणा दैदीप्यमान किया है। ___ आज के युग में ऐसी ही एक महान विभूति है, पिछले ३२ वर्षों में मैंने प्रवर्तिनीश्रीजी के अनेक जिसकी रग-रग में चन्द्रमा के समान शीतलता, नभ बार दर्शन किये। करीब ५ वर्ष निरन्तर उनके के समान विशालता, करुणा, दया, वात्सल्यता कूटजयपूर वर्षावास में तो उन्हें निकट से देखने का कूट कर भरी है। ऐसे व्यक्तित्व की धनी समता खूब अवसर मिला। मूर्ति, आगम वेत्ती, मधुर वृक्त्री, आशुकवयित्री __ मैंने देखा है-प्रवर्तिनीश्रीजी प्रारम्भ से ही पूज्य गुरुवर्या श्री सज्जनश्रीजी म. सा. हैं । सेवा और सहनशीलता की प्रतिमूति है। गुरुसेवा ऐसी पूज्य गुरुवर्याश्री ने अपने जीवन को पूर्ण में वे सदा तत्पर रही हैं। किसी के जीवन में सेवा रूप से जिनशासन के प्रति समर्पित कर दिया है । गुण अधिक और किसी के जीवन में स्वाध्याय म स्वाध्याय हमेशा पठन, पाठन एवं स्वाध्याय में अपने आपको अधिक होता है किन्तु प्रवर्तिनीजी ने सेवा और तल्लीन रखकर, आगम व शास्त्रों का गूढ़ अध्ययन स्वाध्याय दोनों ही क्षेत्रों में अग्रिम पंक्ति में स्थान कर सांसारिक प्राणियों को उनका सार बताना लिया। आपके जीवन का प्रमुख ध्येय रहा है । ___ सरल और सहज व्यक्तित्व से परिपूर्ण प्रवर्तिनी ऐसी महान विभूति के अभिनन्दन समारोह पर जी का आने वाले प्रत्येक व्यक्ति के प्रति सहज उनके चरणों में शत-शत वन्दन करता हुआ अपने वात्सल्य भाव रहता है। ___ इष्ट देव से उनकी सहस्रायु होने की प्रार्थना __सन्तों का जीवन वृहस्पतिपुत्र भी वर्णन करने करता हैं। में समर्थ नहीं तो मैं सामान्य श्राविका तो कह ही क्या सकती हूँ। मात्र श्रद्धा के दो शब्द आपश्री के चरणों में समर्पित करती हुई अपने इष्ट देव से श्री भीखमचन्दजी कोचर, खडगपुर आपकी दीर्घायु की शुभकामना करती हूँ। मेरे हृदय के उद्गार हैं कि गुरुवर्याश्री की हे ज्ञानज्योतिपुंज गुरुवर, जितनी प्रशंसा की जावे वह कम है। मेरे परिवार सहज हो तुम सरल हो। को उज्ज्वल बना दिया। नरकवासी को मोक्ष का जिनशासन की इस बगिया के, द्वार बता दिया। ऐसी महान विभूति कोकिल कंठी पुष्प एक तुम विरल हो। ज्ञान दृष्टि रखने वाली पुण्य आत्मा को बार-बार नाम सज्जन, हृदय सज्जन, वन्दना करता हूँ। धन्य हैं उनके माता-पिता को गुणों के भण्डार हो। जो ऐसा दुर्लभ रत्न समाज को भेंट दिया। ऐसी क्या कहूँ गुण आपरा, महान विभूति के दर्शन मात्र से कई भवों के कर्म वन्दन हजार बार हो। नष्ट हो जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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