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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ ॥ श्री हुक्मीचन्दजी लूणिया, ब्यावर मैं इनके गुणों के प्रति विनयावनत हूँ। आप संसार में अनेक व्यक्ति हैं। किन्तु हर व्यक्ति - जैन समाज की प्रकाश स्तम्भ हैं और वर्षों अपने " प्रकाश से सबको आलोकित करेंगी। अभिनन्दन के काबिल नहीं होते हैं परन्तु पूज्या ' प्रवर्तिनी श्री पूर्ण रूप से अभिनन्दन के योग्य हैं। इसी शृंखला में 'पुण्य जीवन ज्योति', 'श्रमण ___ आपमें साधकीय जीवन के गुण पूर्ण रूप से सर्वस्व', 'श्री कल्पसूत्र' आदि अनेक रचनायें प्रकाविद्यमान है। हम सुनते हैं कि सन्त निर्विकल्प होना शित की हैं। चाहिये, निस्पृह, निर्लेष होना चाहिये। ये ही सन्त पं० कन्हैयालालजी दक, उदयपुर के गुण पूज्य महाराज श्री के जीवन में मैंने निकटता जिस महान् आत्मा के गुणानुवाद करने के लिए से देखा। . यह अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है, पूज्या श्री के ब्यावर चातुर्मास में मैंने प्रथम ही वे प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी विशुद्ध सामयिक अनुभव किया, वो किसी भी बाह्य प्रवृत्ति में भाग चारित्र की धारिका हैं, उनका ज्ञान, दर्शन व नहीं लेती, आने-जाने वालों से उन्हें कभी भी व्यर्थ चारित्र रूप रत्नत्रय की प्राप्ति करते रहने का का आलाप करते हुए नहीं देखा, कभी किसी से निरन्तर लक्ष्य रहा है। उनकी गुण-गरिमा का जोश से बात करते नहीं देखा। अभिनन्दन करना संयम, तप तथा त्याग का अभि. यदि दर्शक पाँच दिन में आये, चाहे दस दिन नन्दन करता है। में, चाहे महीने में आये कभी भी उपालम्भ की भाषा में उलाहना देते हुए नहीं देखा, सदा स्वयं इस प्रकार के शुद्ध संयम का पालन करके के स्वाध्याय में, साधना में समय सम्पूर्ण करना जीवन को धन्य व सार्थक बनाने वाली साधिका को इसी लक्ष्य के साथ समय का सदुपयोग करती हैं। शत-शत वन्दन । गुरुदेव से मैं हार्दिक प्रार्थना करता हूँ कि पूज्या श्री मूलचन्दजी, मिश्रीमल छगनमल भंसाली श्री चिरायु, दीर्घायु बन समान गच्छ का अभ्युत्थान जैन जगत की अनुपम ज्योति, आगम मर्मज्ञा, कर प्राणी मात्र को मोक्ष का अधिकारी बनावें । _ शासन प्रभाविका महामना प्रवर्तिनी पदासीन परम श्रद्धया पूज्या श्री सज्जनश्री जी म. सा. के विशिष्ट 0 श्री राजेन्द्र नाहटा, भोपाल व्यक्तित्व से प्रभावित होकर जयपुर श्रीसंघ ने अनोखे बह अनुभवी, सरल स्वभावी-यशस्वी- पूज्याश्री के संयमी जीवन की स्वर्ण जयन्ती के उपतपस्वी, चहुँमुखी व्यक्तित्व की धनी, साहित्यप्रेमी लक्ष्य में 'अभिनन्दन ग्रन्थ' प्रकाशित करने का जो एवं धार्मिक शिक्षण में जिज्ञासू, सेवा परायणा, निर्णय लिया है वह अत्युत्तम, प्रशंसनीय व अनुआगमज्योति, परम पूजनीय प्रवर्तिनी महोदया करणीय है। श्री सज्जनश्रीजी महाराज साहब के दर्शन अनेक सुश्री सुरंजी प्रसंगों पर हुए । गत अनेक वर्षों से श्री खरतरगच्छ भगवान महावीर का संदेश है-गुणों के विकास महासंघ के कार्यक्रमों के सन्दर्भ में मार्ग-दर्शन एवं के लिए सूत्र है- "गुणीजनों की चर्चा, गुणीजनों की प्रेरणा की स्रोत रही हैं। आपश्री ने खरतरगच्छ वाणी का श्रवण, गुणीजनों के गुणों का वर्णन और की गतिविधियों, संगठन उद्देश्यों में विशेष रुचि गुणीजनों के गुणों का तहेदिल से गुणगान ।" अनेकाली है। नेक गुणों की स्वामिनी प्रवर्तिनी पू. श्री सज्जनश्रीजी बहुत समीप से मैं उनकी कार्य प्रणाली एवं म. सा. के गुणों के अभिनन्दन के लिये अभिनन्दन मधुर भाषा से अत्यन्त प्रभावित हुआ हूँ। ग्रंथ प्रकाशित हो रहा है। । सस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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