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________________ २८ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ उनके स्वस्थ स्वास्थ्य की मंगल कामना करता । श्री भगवानचन्दजी छाजेड हुआ मुझ पतित पर सदा कृपा दृष्टि रहे यही श्री एवं समस्त परिवार चरणों में विनम्र प्रार्थना है। परम पूज्या प्रतिनी महोदया गुरुवर्या श्रीसज्जन पृ० गुरुवर्याश्री का मुझ पर असीम उपकार है। श्रीजी महाराज साहब के ८२ वर्ष प्रवेश के प्रसंग उस उपकार से कृतघ्न न बनू । कृतज्ञ बन मोक्ष को । पर समस्त छाजेड़ परिवार आपका हार्दिक अभिप्राप्त करू । यही गुरुवर्याश्री के चरणों में मेरी : नन्दन करता है। अभ्यर्थना है। मेरा अहोभाग्य है कि आपश्री के दर्शनों का ६. श्री मोहनचन्दजी गोलेच्छा, उटकमण्ड लाभ मुझे सिवाना नगर में प्राप्त हुआ। मार्गदर्शन से ही मेरा मन आपकी ओर श्रद्धान्वित हो गया। पूज्यवर्या, आगम मर्मज्ञा, प्रवर्तिनी श्रीसज्जनश्री जब मैंने आपका त्याग, तप, संयम से परिपूर्ण प्रवमसा० का लूनिया परिवार की ओर से अभिनन्दन चन सुना तभी से मेरा मन धर्म की ओर उन्मुख ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुआ । धर्म क्या है ? धर्म क्यों करते हैं ? धर्म से क्या लाभ होता है ? इत्यादि जानकारी मुझे आपके नरुवर्याश्री जैन समाज की निधि हैं, आप यथा सम्पर्क से प्राप्त हुई । इससे पूर्व मैं कुछ भी नहीं नाम तथागुण से ओत-प्रोत हैं। आपकी भद्र प्रकृति जानता था । आपके आध्यात्मिक प्रवचन से न केवल सभी को प्रभावित करती है । आप खरतरगच्छ को मेरा ही मन अपितु मेरी भतीजी जो पूज्याश्री के शान है। सान्निध्य में अध्ययनरत है, ने तो अपना सर्वस्व ही आप ज्ञान, ध्यान, तप, जप की उत्कृष्ट साधिका गुरुवर्याश्री के चरणों में समर्पित कर दिया। इस हैं । आप में करुणा की भावना कूट-कूट कर भरी प्रकार आपके अद्भुत व अनुपम प्रवचन से एक दो हुई है। शरण में आये प्रत्येक प्राणी को जिनवाणी ही नहीं हजारों व्यक्ति धर्म की ओर अग्रसर हुए। का अमत पान कराती हैं। इनकी वाणी जनकल्याणी, मैं गुरुदेव से अभ्यर्थना करता हूँ कि ऐसी महान् हितकारिणी है। पु० महाराज के व्यक्तित्व से प्रभा- आत्मा दीर्घायु चिरायु बनें। समस्त छाजेड़ परिवार वित होकर ही मेरी बहिन किरण ने १० वर्ष की उम्र पर आपकी कृपादृष्टि अनवरत रूप से सतत प्रवामें ही उन्हें गुरु के रूप में चुनकर संयम हेतु जीवन हित होती रहे। समर्पित कर दिया । ३२ वर्ष से संयमी जीवन व्यतीत श्रीमती इन्दुबाला संखवाल. दिल्ली करती हुई, शासनसेवा व गुरुवर्या की सेवा में रत यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता का अनुभव हुआ है जो वर्तमान में पू० शशिप्रभाश्रीजी म.सा० के कि साध्वी श्री सज्जनश्री जी म. सा० की ८२ वीं नाम से प्रख्यात हैं। वर्षगांठ के उपलक्ष्य पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का यह अभिनन्दन ग्रन्थ जिस दिव्य प्रतिभा मूति के प्रकाशन होने जा रहा है। पूज्य म. सा. मेरी चरणों में समर्पित होगा । वास्तव में वे गुलाब सी ताईजी हैं और मेरा बचपन उनके वात्सल्यरूपी मोहकता लिये हुए हैं । व्यक्तित्व निस्सन्देह निखरा प्यार-दुलार के साथ उन्हीं की गोद में बीता था। हुआ है, निशंक बिखरा हुआ है। वीर प्रभु से मैं यही मंगल कामना करती हूँ ___ मैं भी व अपने परिवार की ओर से भावाभि- कि आपके जीवन से प्रेरणा पाकर हम भी अपने नंदन श्रद्धाभिनंदन उन पावन परम पवित्र श्रीचरणों मानवजीवन को सार्थक करें। साध्वी श्री शशिप्रभा में समर्पित करता हुआ गुरूदेव से प्रार्थना करता हूँ जी म० को अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन करने के लिए कि इन्हें स्वस्थ स्वास्थ्य प्रदान करें। आभार प्रकट करती हूँ। For Private & Personal Use Only - Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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