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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ शैली भी अद्भुत है जिससे प्रभावित होकर मेरी सांसारिक पक्ष में पूज्या साध्वीजी म. सा. बहिन कु. लक्ष्मी ने अपना जीवन आपके चरणों में मेरी ताईजी हैं। आप गृहस्थ में रहते हुए भी कभी समर्पित करने का संकल्प किया है । वर्तमान में वह सांसारिक भाव में लिप्त नहीं रहीं। साधु-साध्वियों गुरुवर्याश्री के निश्रा में अध्ययन रत है।
के प्रवचनों से प्रेरणा पाकर स्व और पर का भेद ऐसी अद्भुत, अनुपम, अद्वितीय, ओजस्वी समझ कर आपने जैन भागवती दीक्षा अंगीकार की आत्मा शतसहस्र वर्षों तक शासनोन्नति करती हुई और आत्मकल्याण के साथ-साथ जिनशासन की हमें भी शीतल व सुखद छायाप्रदान करती रहें। प्रभावना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। साथ
7 ही उनके ८२वें वर्ष में पदार्पण पर मैं अपनी ओर से श्री भंवरलाल पुखराज
यही शुभकामना करती हूँ कि समाज को वर्षों-वर्षों
तक आपका सान्निध्य मिलता रहे, तथा आपश्री - श्री शान्तिलाल, सुरेशकुमार हमें कल्याण मार्ग की ओर सतत् गमन की प्रेरणा (धरणेन्द्र पदमावती टेक्सटाइल्स अहमदाबाद) प्रदान करती रहें । यही हमारी शुभकामना है। ___ ज्ञान की जगमगाती ज्योति श्री सज्जनश्री जी पुनः अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन के लिए साध्वी के दर्शन का अहोभाग्य हमें पहली बार शेरगढ में सं० श्रा शाशप्रभाजी म० सा० को बहुत-बहुत साधुवाद । २०४० में हुआ। आपका दर्शन होने मात्र होने से ही
Cश्री राकेश जैन संघ में आपके प्रति मन भर गया । आपका स्वभाव, भक्तिभाव, प्रेरणा, मधुरवाणी से संघ में हर्ष छा जब मैं महाराज के मुखमण्डल से प्रभावित हो, गया । आपकी प्रेरणा से संघ में धर्म जागृति हुई। बातचीत की उत्सुकता को ले दादावाडी में स्थित संघ की विनती स्वीकार कर आपके समुदाय के दो साध्वीजी श्रीशशिप्रभाश्री जी महाराज से परिचय चौमासा भी हमारे यहाँ हुए । आप गुणों की खान हुआ, मेरे हर प्रश्न पूछने पर उन्होंने प्रत्युत्तर में मुझे हैं। दया के सागर हैं । स्वाध्याय के विराट धनी हैं। सन्तुष्ट किया व मेरी श्रद्धा पूज्य गुरुवर्या श्री प्रति हम लूणिया परिवार के हैं। आपने लूणिया गोत्र का और दृढ़तर हो गयी और मन ही मन उनके गुणों गर्व बढ़ाया है। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती अभिनन्दन की प्रशंसा करने लगा कि साध्वी जी महाराज समारोह के शुभ अवसर पर हम आपकी मंगल सबके साथ रहती हुई भी बाहर की प्रकृति से कामना करते हैं।
अलग है। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के अभिनन्दन समारोह के जब भी दर्शन हेतु जाता हूँ हाथ में पुस्तक लिए उपलक्ष्य में समस्त लूणिया परिवार का कोटि- हुए ही देखता हूँ। चेहरे पर कभी मलीनता नहीं कोटि वंदन।
देखी, सदा स्वाभाविक मुस्कराता चेहरा रहता है । D थोड़े दिन के सम्पर्क से यही अनुभव किया कि
शारीरिक अस्वस्थता होते हुए भी अन्यों को पढ़ाती 10 श्रीमती निर्मला संखवाल. दिल्ली
यह जानकर हृदय श्रद्धा विभोर हो गया कि महान विभूति सज्जनश्रीजी महाराज की दीक्षा, आगमज्योति मधुर व्याख्यात्री संघश्रेष्ठा पूज्या जन्म, जयन्ती के उपलक्ष में, हृदय से हार्दिक अभिसाध्वी श्री सज्जनश्रीजी म. सा. के दीक्षा स्वर्ण नंदन करता हूँ, गुरुदेव के चरणों में मेरी अनुनय जयन्ती के उपलक्ष्य में अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रका- प्रार्थना है कि पू० गुरुवर्या श्रीदीघायु, चिरायु बन शन हो रहा है।
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रहती हैं।
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