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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ श्री विनयकुमारजी लूनिया (जयपुर) से सरल, विनम्र, मिलनसार एवं निरभिमानी हैं । आपमें प्रत्येक साध्वी को निभाने की क्षमता है। साध्वी श्री सज्जनश्रीजी महाराज एक प्रखर आप एक कुशल व्याख्यात्री भी हैं। आपकी चिन्तक, प्रभावी व्याख्याता, प्रबल संगठक और वाणी में मधुरता तथा ओजस्विता कूट-कूट कर विशिष्ट साधना सम्पन्न सती हैं। जैन धर्म त्याग- भरी है। आपकी वाणी में साधना का ओज है। प्रधान धर्म है। भोग से योग की ओर, राग से आप एक सुलझी हुई साधिका एवं विचारिका हैं । विराग की ओर बढ़ने की यह पवित्र प्रेरणा देता है। यही कारण है कि आप जो बात कहती हैं सीधी, यही कारण है जैनधर्म में सन्त-सतियों का जीवन सरल और अन्तर्मन को छु लेने वाली होती है। त्याग और तप का जीता-जागता उदाहरण है । जब हमारा अहोभाग्य है इस पुनीत अवसर पर हमें भी भी मैं कभी भुआसा महाराज के दर्शन करता हूँ, श्रद्धा के दो शब्द लिखने का अवसर मिला। इस आत्मविभोर हो उठता हूँ। और मन करता है मौके पर मेरा भाव भरा अभिनन्दन है, दीर्घायु की सान्निध्य में बैठा ही रहूँ, इस अभिनन्दन ग्रन्थ के कामना है। विमोचन के सुअवसर पर मैं भी अपनी तरफ से श्रद्धा के फूल समर्पित करता हुआ यही कामना 10 श्रीमती रेखा लूनिया करता हूँ कि आपका आशीर्वाद हमें युगों-युगों तक जीवन तो सभी जीते हैं, पर जीने की कला मिलता रहे। विरले व्यक्तियों में ही मिलती है। जीवन जीने की एक शैली है, तरीका है । जो अपने आपको खपाता श्री निहालचन्द सोनी है वही महान् बनता है । (मदनगंज) परम विदुषी, साधना सम्पन्न मेरे बड़े ननदबाई जिन शासन के नन्दन वन में, साध्वी श्री सज्जनश्री जी एक ऐसी ही विशिष्ट महक रहे ज्यों चन्दन । साध्वी हैं जिनका जीवन अगरबत्ती की तरह सुगश्रमणी प्रवरा सज्जनश्री जी, न्धित है, जो स्वयं कष्ट सहकर भी आजीवन परोपलो शत-शत अभिनन्दन ।।। कार में जुटी हुई हैं। आप एक ओजस्वी और 0 तेजस्वी साधिका हैं। आपने अपनी निर्मल वाणी से जन-जीवन में अभिनव चेतना का संचार 0 श्री सुरेश लूनिया किया है। (जयपुर) ___ मैंने जब भी कभी महासतिजी के दर्शन किये रत्नगर्भा वसुन्धरा ने समय-समय पर अनमोल हमेशा ही मुस्कराते देखा। कभी भी उनके चेहरे रत्न प्रदान किये हैं। उन्हीं रत्नों में एक अनमोल पर क्रोध या तनाव, झुंझलाहट की रेखायें नहीं रत्न दै-मेरे भआसा महाराज साध्वी श्री सज्जन पाई। अपनी शिष्याओं से भी वात्सल्य से ओतश्रीजी महाराज का नाम बड़ी निष्ठा और गर्व से प्रोत व्यवहार देखा। आपकी प्रवचन कला बहुत लिया जा सकता है। ही अनूठी व चित्ताकर्षक है। आपके व्याख्यानों में आप हमेशा एक महान साधिका के रूप में यह विशेषता रही है कि उनमें गहरा चितन, मनन हमारे समक्ष परिलक्षित होती रही है। प्रतिष्ठा और अपने अनुभवों एवं सत्य का उत्कृष्ट बल है और ज्ञान का आप में किंचित् मात्र भी अभिमान वाणी में मधुरता के साथ ही आप सदा समन्वयानहीं है। सर्वगुण सम्पन्न होने पर भी आप स्वभाव त्मक भाषा का प्रयोग करती हैं। .... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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