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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ विद्वत्ता, सेवापरायणता आदि सभी क्षेत्रों में अग्रिम जिनके यहाँ २२ वर्षावास हो चुके हैं। जयपुर सदैव पंक्ति में बैठने वाली हैं । बचपन से लेकर आज तक सन्तों की भूमि रही है। बड़े-बड़े सन्त-सतियों का आपश्री स्वाध्यायरसिक रही हैं। अध्ययन और आगमन व उनका वरदहस्त सदा हमें मिला है। अध्यापन आपके जीवन के सच्चे साथी हैं। स्वास्थ्य ऐसे में महान साध्वीरत्न श्री सज्जनश्रीजी म० का अनुकूल न होते हुए भी अप्रमत्तता के साथ आप श्री अभिनन्दन वन्दन करने हम जा रहे हैं, वह अपने स्वाध्याय में सजग रहती हैं। हम यही शुभकामना आप में एक गौरवशाली आत्मा, उनके त्यागमयी व करते हैं कि वर्षों तक आपश्री अमर रहें और स्व-पर संयममयी जीवन का अभिनन्दन है । वे सदैव समाज का कल्याण करती हुई अपनी साधना को सफल को नया चिन्तन, नई रोशनी हमें देती रहें, इस पुनीत बनायें। अवसर पर हमारी यही मंगल भावना है । महान माध्वीरत्न के पावन चरणों में हमारा शत-शत वन्दन है, अभिनन्दन है। श्री सरदारमल जी चौपड़ा (संघ मन्त्री : वर्धमान स्थानकवासी जैन 0 श्री यशपालजी नाहटा श्रावक संघ, जयपुर) (मंत्री : श्री जैन नवयुवक मण्डल, जयपुर) जयपर सदा से ही पुण्यभूमि रही है। इसी यह हर्ष का विषय है कि आर्यारत्न प्रतिनी भूमि की रत्न, गौरवशाली प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्री आगमज्ञा श्री सज्जनश्रीजी म. सा० के अभिजी म० सा० का जीवन स्वणिम प्रभात की तरह नन्दन के शुभ अवसर पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का उज्ज्वल और चमकते नक्षत्र के समान ज्योतिर्मय प्रकाशन किया जा रहा है। रहता है । आपश्री शान्त, निर्मल, स्वभावी व गम्भी- जैनजगत की आप वह ज्योतिर्मय पुन्ज हैं रता से साधना-पथ की ओर सदा अग्रसर रहने वाली जिसने अपनी विद्वत्ता एवं ज्ञान के प्रकाश से न महान साध्वी हैं । आपके जीवन का कण-कण क्षण- केवल जैनसमुदाय को ही आलोकित किया है बल्कि क्षण साधनामय, तपोमय पथ पर अग्रसर होता इससे भी कहीं ऊपर उठकर सामान्य जन-जन को रहा है। आप प्रकृति से विनम्र, शान्त, निर्मल भगवान महावीर की वाणी से आप्लावित किया स्वभाव, मधुरभाषी हैं। आप जीवन के प्रत्येक क्षण है। एक ओर जिनका सदैव ज्ञानार्जन, लेखन-पठन, को सही मायने में जी रही हैं। आपश्री का ज्ञान वैयावृत्य, लोक हित एवं अनेक ग्रन्थों की रचना हमें प्रवचनों से स्पष्ट झलकता है । आपका चिन्तन, आदि में बीता हो, दूसरी ओर उसमें नम्रता, मनन, आगम ज्ञान निश्चय ही संघ और समाज को शालीनता, करुणा, समता आदि गुणों का होना नई प्रेरणा, नया चिन्तन, नया रास्ता दिखाते रहे निश्चय ही उन्हें महान बनाता है । ऐसी साध्वी को शत-शत वन्दन। तपस्या का प्रश्न हो या ज्ञान का अथवा सेवा ऐसी महान साध्वी का अभिनन्दन अवश्य ही का हर क्षेत्र में उनकी उपलब्धियाँ आश्चर्यजनक हमारा कर्तव्य है, इस अवसर पर प्रकाशित यह रही हैं। आपके चरण जहाँ भी गये उस क्षेत्र को अभिनन्दन ग्रन्थ जन-जन के लिए प्रेरणादायी बने, सदा नई उपलब्धियाँ रही हैं । संयम साधना के यही हमारी शुभकामनाएँ हैं। कठोर पथ पर ये आज भी अग्रसर हैं। शारीरिक अस्वस्थता होते हुए भी उनका जीवन सदैव धर्ममय, कर्ममय रहता है। जयपुर का सौभाग्य है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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