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________________ २० खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ दर्शन से सम्बन्धित विशिष्ट निबन्धों का भी संग्रह आपश्री का जीवन सदैव मानव कल्याण के होगा जो प्रशंसनीय पहल है। प्रति सदा संलग्न एवं तत्पर रहा । आपकी आवाज मेरी दृष्टि में यह ग्रन्थ उन परम्पराओं को में ओजस्विता एवं वाणी में मधुरता रूपी अमृत आधुनिक परिप्रेक्ष्य में आगे बढ़ाते हुए पूरे समाज पाया जाता है जिसका आस्वादन प्रत्येक व्यक्ति के लिए ही नहीं, समूचे मानव-समाज के लिए भी द्वारा किया जा रहा है । आप त्याग वैराग्य, समता, उपयोगी बने, यही कामना है । सहिष्णुता, सरलता, सहजता की प्रतिमूर्ति हैं। श्री सम्पादक जी को इस दुर्गम पथ पर सफ- आप आगमों की ज्ञाता हैं एवं प्रत्येक विषय का लतापूर्वक चलते रहने की हार्दिक शुभकामनाएँ। प्रतिपादन एवं विवेचन बहुत ही सुन्दर ढंग से करती . हैं । आपश्री का ज्ञान गूढ, गहन एवं गम्भीर है। पुनः अन्तस्भावेन करबद्ध नतमस्तकेन परम 0 श्री सुशीलकुमारजी छजलानी पवित्र पादारविन्दों की कोटिशः वन्दना करते हुए (संघ मन्त्री, यही इष्टदेव से प्रार्थन करते हैं कि आपश्री शतायु श्री जैन श्वे० तपागच्छ संघ, जयपुर ।) दीर्घायु बनें एवं समय-समय पर हम सभी को सतर्क सावधान सचेत जाग्रत करती रहें। 0 परम विदुषी परमादरणीया, प्रवर्तिनी जी, श्री सज्जनश्रीजी महाराज के अभिनन्दन ग्रन्थ प्रका श्री त्रिलोकचन्दजी गोलेच्छा शन का प्रयास प्रशंसनीय एवं स्तुत्य है। (मंत्री : श्री जैन युवा परिषद्, जयपुर) पूज्य प्रवतिनी श्री के दर्शन एवं उपदेश श्रवण भगवान महावीर के बताये 'विश्ववात्सल्य' के आत्मबोध की गहरी अनुभूति जागृत करते हैं। मार्ग का अनुसरण करते हुए सेवा, त्याग, तप व आपकी अद्वितीय सरलता, विनय एवं गहन अध्ययन संयम के मार्ग का प्रचार करते हुए प्रवर्तिनी श्री समाज की अनमोल निधि हैं। सज्जनश्रीजी म. सा० ने भारत के साध्वी समाज प्रतिनी जी की गहन साधना एवं अध्ययन का में विशेष स्थान प्राप्त किया है। आधार, उपदेश के माध्यम से, हम भविकों को आपके ८१ वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर प्रकाआत्मबोध जागृत करने के लिए मिलता रहे । आप शित 'ग्रन्थ' द्वारा 'श्री जैन युवा परिषद्' जयपुर दीर्घायु हों एवं जैन शासन की सेवा में रत रहें यही शासन की सेवा में रत रहें यदी आपका अभिनन्दन करती है व वीतराग प्रभ से शासन देव से प्रार्थना है। तपागच्छ संघ, जयपूर आपके दीर्घ आयु की मंगलकामना करती है । हम की ओर से एवं मेरी ओर से इस पुनीत अवसर पर इस अवसर पर मानवसेवा के लिए व जैन धर्म इसके आयोजकों को उनके प्रयास में सफलता की के प्रचार के लिए पुनः समर्पित होने का संकल्प लेते हृदय से कामना करता हूँ एवं बधाई देता हूँ। 0 है। 0 जैन श्वे० श्रीसंघ 0 श्री संघ, ब्यावर ___टांटोटी (राज.) श्री जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ ब्यावर पू० महाराज श्री सज्जनश्रीजी म. सा. का द्वारा प्रवर्तिनी महोदया श्री सज्जनश्रीजी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, जानकर सा. का भाव भीना अभिनन्दन करते हुए अत्यन्त अत्यन्त प्रसन्नता हुई । आपश्री कलियुग में भी सतयुग हर्ष हो रहा है। की साक्षात् मूर्ति तुल्य हैं । आपश्री सरलता, नम्रता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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