________________
खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ
शिखरचन्द्रजो पालावत ( अध्यक्ष श्री जैन श्वे. तपागच्छ संघ ) आज भी हम बड़े गर्व के साथ यह कह सकते हैं कि जैनसमाज में भारत की पावनभूमि में श्वेताम्बर समाज की चाहे वो तपः गच्छ की हों चाहे खरतरगच्छ की अथवा किसी अन्य गच्छ की, साध्वियाँ अपनी कीर्ति सारे भारतवर्ष में फैला रही हैं
परम पूज्या, आर्यरत्ना- प्रवर्तिनी "श्री सज्जन श्री जी महाराज" सम्पूर्ण जैन समाज की एक शान हैं, निधि हैं ।
आपने राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल मध्य प्रदेश, गुजरात, सौराष्ट्र आदि प्रदेशों में विचरण कर भगवान महावीर की वाणी को अपने प्रतिभाशाली प्रवचनों से जन-जन तक पहुँचाने का महान कार्य किया है । आपके द्वारा शासनोन्नति के अनेक स्मरणीय ऐतिहासिक कार्य हुए हैं ।
आपश्री युग-युगान्तर तक जैन समाज को दिशाबोध प्रदान करती रहें ।
साध्वीश्री के चरणों में शत-शत नमन !
श्री गुमानमल जी चोरड़िया ( अध्यक्ष : श्री वर्धमान स्मारक सेवा समिति जयपुर एवं पशुक्रूरता निवारण समिति, जयपुर )
महासती श्री सज्जन श्रीजी महाराज सा० को अपने पितृपक्ष से ही उच्च संस्कार प्राप्त हुए एवं वही संस्कार संत-सतियों के सान्निध्य में विकसित होते रहे । आपका जन्म विक्रम सं० १६६५ वैशाख पूर्णिमा का है । जिस प्रकार पूर्णिमा का चन्द्रमा पूर्ण विकसित होकर अपनी प्रभा फैलाता है, उसी प्रकार प्रवर्तिनीश्रीजी ने अपने संयम की, तप की चारित्र की प्रभा चतुविध संघ में फैलाई है । जिस प्रकार पूर्णिमा का चन्द्रमा अपनी पूर्ण शीतलता फैलाता है, उसी प्रकार महाराज सा० प्रवर्तिनी
Jain Education International
१६
श्रीजी ने अपनी शीतलता का सबको अनुभव कराया है | आपके सान्निध्य में आज चतुविध संघ पूर्ण प्रमुदित है । आपने १६६६ आषाढ़ सुदी २ को दीवान नथमल जी के कटले में दीक्षा ग्रहण की। आपकी दीक्षा में मैं भी उपस्थित था, वह दृश्य बड़ा ही प्रमोदकारी था । आपने दीक्षपरान्त ज्ञान, दर्शन, चारित्र में अभीष्ट प्रगति की । आप में तप की भी विशेष अभिरुचि रही एवं तप के साथ-साथ सेवा परायणता का गुण आपके व्यक्तित्व को चार चाँद लगा रहा है । आत्मकल्याण के साथ-साथ लोक कल्याण में भी आप अग्रसर रहीं, इसी कारण आपने राजस्थान के साथसाथ उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्यप्रदेश, गुजरात, सौराष्ट्र आदि प्रदेशों में विचरण करके भगवान महावीर की वाणी का नगर नगर एवं ग्रामग्राम में संदेश गुंजाया । वर्तमान में अस्वस्थता के कारण आपका यहाँ विराजना हो रहा है, यह जयपुर संघ के लिए अत्यन्त सौभाग्य की बात है ।
वीर प्रभु से यही प्रार्थना है कि आपकी साधना निरन्तर बढ़ती रहे, चतुविध संघ पर आपका वरदहस्त रहे एवं "तिन्नाण तारयाणं" की तरह आप स्वयं तिरें एवं साधकों को भी तारें ।
इन्हीं शुभ कामनाओं सहित आप श्रीजी के चरणारविन्दों में शत-शत वंदन |
स्व० डॉ० उम्मेदमल मुनोत
( मुख्य संरक्षक : श्री वर्धमान श्वेताम्बर जैन सभा लखनऊ ज्ञान प्रसारिणी सभा, लखनऊ
श्री जौहरी वाग दादाबाड़ी संघ लखनऊ
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि विदुषीवर्या श्री सज्जन श्रीजी महाराज साहब का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जा रहा है। इस ग्रन्थ में जैन
www.jainelibrary.org
For Private & Personal Use Only