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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ 1 विधावारिधि डॉ महेन्द्रसागर प्रचंडिया 0 डॉ० महावीरसरनजी जैन (जबलपुर) डी० लिट० (निदेशक : जैन शोध अकादमी आपने पूज्य साध्वी समुदाय के प्रवर्तिनी पद पर आगरा रोड, अलीगढ) प्रतिष्ठित साध्वीरत्ना सज्जनश्रीजी म. सा० के अभिनन्दन ग्रन्थ की जो योजना बनाई है वह सुयह जानकर परम प्रसन्नता हई कि संधी समाज विचारित है । मैं अभिनन्दन ग्रन्थ की पूर्णता एवं परम वंद्य आगमप्रज्ञा प्रवर्तिनी सज्जनश्री महाराज । उसके शीघ्र प्रकाशन की तथा अभिनन्दन समारोह की वंदना में एक अभिनव अभिनन्दन-ग्रन्थराज प्रकट की सफलता की हादिक शुभकामनाएँ व्यक्त करता किया जा रहा है । अभिनन्दन-ग्रंथ में विदुषी हूँ। प्रतिभाशाली, तपस्वी, साधक एवं धर्मपरायण साधिका का जिनमार्ग और जिनवाणी विषयक व्यक्तित्वों का अभिनन्दन करना कृतज्ञ समाज का समूचा अवदान मूल्यांकित किया जाएगा, फलस्वरूप धर्म है । मैं उनकी संयम-यात्रा की प्रगति की भी ज्ञान-गौमती के पवित्र प्रवाह में अवगाहन करने का मंगलकामना करता हूँ। सुयोग प्राप्त होगा। सुधी साधिका परम पूजनीया सज्जनश्रीजी 0 श्री दौलतसिंह जी जैन महाराज के सुख-साता की मंगल - कामना करता हुआ, यह आत्म-भाव उनके शत-सहस्र वर्षीय जीवन (मंत्री-श्री अखिल भारतीय जैन खरतरगच्छ की भव्य भावना भाता है। महासंघ, दिल्ली) शत-शत वंदना सहित !! 0 यह अत्यन्त हर्ष का विषय है कि श्री जैन श्वेता म्बर खरतरगच्छ संघ, जयपुर आगमज्ञा विदुषीवर्या - श्री चन्दनमल चाँद प्रतिनी श्री सज्जनश्रीजी म. सा० का अभिनन्दन (सम्पादक : जैनजगत : बम्बई ग्रन्थ प्रकाशित कर रहा है। प्रवर्तिनीश्रीजी जैन प्रधानमंत्री : भारत जैन महामंडल) आगम व साहित्य की प्रखर ज्ञाता व प्रवचनकार हैं। - आपने अनेक ग्रन्थों की रचना कर साहित्य का व्यक्तिशः प्रवर्तिनी श्री जी से मेरा सम्पर्क मञ भण्डार भरा है । तप द्वारा कर्मों का क्षय करते हुए याद नहीं है किन्तु कुछ ऐसे व्यक्तित्व भी होते हैं जो आप आत्म-कल्याण लोक-कल्याण के मार्ग पर दूर बैठे भी अपनी सुगन्ध से आकृष्ट करते हैं। अग्रसर हैं। भारत के अनेक भागों में विचरण व आप ऐसी ही विदुषी, कवयित्री, लेखिका. अनेक चातुर्मास करके, आपने जिनेन्द्रदेव के सन्देश को भाषाओं की ज्ञाता और ज्ञान के अहंकार से रहित जनसाधारण तक पहुंचाया है। हैं । लगभग ४६ वर्षों के दीक्षा पर्याय में आपने आपको प्रवतिनी पद प्रदान कर समाज ने अपने अपनी संयम-साधना के साथ लेखनी एवं वाणी से को गौरवान्वित महसस किया है, शरीर के अस्वस्थ जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान होते हुए भी आप धर्म-प्रचार-प्रसार का अनुकरणीय दिया है । स्वभाव से आप शान्त, सेवाभावी, मधुर- कार्य कर रही हैं । जिनेश्वरदेव से प्रार्थना है कि भाषी एवम् अध्ययनशील हैं । आपके अभिनन्दन आपको दीर्घायु प्रदान कर शासन की सेवा का अवसमारोह के अवसर पर मेरी भावभरी हादिक सर प्रदान करें। शुभकामनाएँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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