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________________ १४ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ जैन धर्म परम्परा अतीव भाग्यशाली है कि श्री हजारीमलजी बांठिया (कानपुर) इस समाज में, समय-समय पर अत्यन्त तेजस्वी, तपःपूत और कठोर आध्यात्मिक साधना से सफली परम पूज्या साध्वी जी श्री सज्जनश्री जी म० भूत आर्यारत्न प्रवर्तिनीजी जैसी महान श्रमणी का सा० की वाणी तो ऐसी ज्ञानमयी जादू की वाणी है आविर्भाव हुआ है। परन्तु इनका अभिनन्दन तो जी चाहता है प्रतिदिन वह कान में गूंजती रहे और ऐसा अवसर है जब हमें बिना झिझक, फिर से मैं श्रवण करता रहूँ । ऐसी महान विदुषी का अभिचतुर्विध संघ को पुनर्स्थापित करने का सही और नन्दन कर आपने सचमुच ही जैनधर्म की गौरवमयी श्रमसाध्य प्रयास करना चाहिए। जहाँ दसरे चर्चा परम्परा को आगे बढ़ाया हैं । वे खरतरगच्छ में अथवा धार्मिक संघों में, स्त्री को आध्यात्मिक परम्परा की अवश्य हैं किन्तु सभी समाज के लिए समाज की समानता स्थिति देने के लिये नये आन्दो- पूजनीय एवं अभिनन्दनीय हैं। संत किसी बाड़े लन करने पड़ते हैं-वहीं यह कैसी विडम्बना है में नहीं बँधते हैं । वे तो समस्त जगत् का उद्धार कि जो अपने संघीय प्रारम्भ से ही स्त्री स्वरूप को करने के लिए इस धरा पर अवतरित होते हैं, ऐसी सम्पूर्ण समान अधिकार देता है, उस जैनधर्मीय आगमज्ञा गुरूवर्या के चरणों में शतशः नमनसंघ को आज श्रमणी और श्राविका को उसके अभिनन्दन । असली अधिकार पर पुनर्स्थापित करने के लिए नये प्रयत्न करने पड़ रहे हैं। मेरे जैसे अकिंचन श्रावक की यही अभिलाषा है 0 श्री राजेन्द्रकुमारजी श्रीमाल कि अभिनन्दन का यह अनुपम अवसर इस महान (श्री कुशलसंस्थान, जयपुर) कार्य के शुभारम्भ का सही श्रीगणेश करने में सफल हो। वैराग्यमूर्ति, जनकल्याणकारी, मृदुभाषी, सरल स्वभावी, अज्ञानतिमिरनाशक, गुणनिधि प० पू० प्रवतिनी श्री सज्जनश्री जी म० सा० के अभिनन्दन 0 श्री जी० आर० भण्डारी ग्रन्थ प्रकाशित होने के समाचार जानकर हृदय आनन्द से पुलकित हो उठा व प्रसन्नता का पारावार यह कहते हुए मुझे गर्व है कि साध्वीजी का न रहा। सम्पूर्ण जीवन प्राणी मात्र के आत्म-कल्लाण के लिए प० पू० प्रवर्तिनी के जीवन का मुख्य लक्ष्य विद्योसमर्पित है । जैन समाज को ऐसी विदुषी साध्वी पर पासना एवं सरस्वती साधना है। हम सान्निध्य एवं गर्व तो है ही साथ ही जैन समाज सदैव साध्वीजी सम्पर्क में रहकर अपने आपको बड़ा गौरवशाली का ऋणी रहेगा। एवं भाग्यशाली समझते हैं। आपश्री शतायु हों, मेरा विश्वास है कि प० पू० साध्वी जी श्री जनकल्याण हेतु ज्ञान बांटती रहें, तथा आपका शशिप्रभाश्री जी म. सा० "जैन दर्शनाचार्य के लिखा हुआ साहित्य प्रकाशित हो जिससे हमें नवीन सान्निध्य में प्रकाशित इस अभिनन्दन ग्रन्थ में जागृति, चेतना व मार्गदर्शन मिले-इन्हीं मंगल निश्चित ही साध्वीजी के संस्मरणों की अमूल्य भावनाओं से प्रेरित मेरा अभिनन्दन स्वीकार करें। निधि का समावेश रहेगा । मैं आपके प्रयासों एवं अभिनन्दन ग्रन्थ की सफलता चाहता हूं। 0 स्वभावी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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