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________________ खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ उपाध्याय श्री अमरमुनिजी मं० सा० महत्तरा प्रवर्तिनी श्री सज्जन श्री जी मात्र शब्दों में ही सज्जन श्री नहीं है अपितु निर्मल पुण्य भावों में भी सज्जनी हैं । उनके अन्तर् और बाह्य दोनों जीवन धाराओं का कुछ ऐसा दिव्य संगम है कि गंगायमुना के संगम के रूप में तीर्थराज प्रयाग की लोक जीवन में जो पुण्य स्थिति है, वह मन-मस्तिष्क की भाव-स्मृति में सहसा उद्भासित हो उठती है । सौम्य, औदार्य आदि सद्गुणों की पावन गंगा हैं साध्वी रत्नश्री सज्जन श्री जी । इधर-उधर के द्वन्द्वों से मुक्त रहकर स्वच्छ गुच्छ पवित्र भावधारा में प्रवाहित रहता है उनका आदर्श संयमी जीवन । वे कथ्य में नहीं तथ्य में विश्वास रखती हैं । जो कहना सो करना, और जो करना सो कहना, इस आचार्य श्री विजय यशोदेव सूरिजी म० भगवान् महावीर का शासन २१००० वर्ष तक अविच्छिन्न चलने वाला है । उसमें साध्वीजी महाराज का स्व-पर-कल्याण करने में बड़ा भारी योग दान रहा है । फिर भी साध्वीजी की साधना-शक्ति और प्रभाव के बारे में विशिष्ट प्रकार का इतिहास लिखा नहीं गया है । यह बात वर्तमान के सभी सुधी विद्वानों को अखरती है, इसीलिये यद्यपि आजकल थोड़े-थोड़े प्रयत्न विविध व्यक्तियों द्वारा हो रहे हैं लेकिन जोरदार और व्यापक प्रयत्न हुआ नहीं है। जो करने की अनिवार्य आवश्यकता समझता हूँ। ऐसी परिस्थिति में आप लोगों ने साध्वी जी का जीवन प्रकाशित करने के लिये जो प्रयत्न उठाया, इसकी सराहना करता हूँ । आपका कार्य सफलता को प्राप्त करे । Jain Education International केन्द्रबिन्दु पर समवस्थित है, उनके जीवन का ज्योतिबिन्दु | प्रवर्तिनी श्री जी के द्वारा आत्मकल्याण के साथ जन-कल्याण के जो महत्त्वपूर्ण कार्य यथाप्रसंग होते रहे हैं, उनका एक चिरजीवी आदर्श इतिहास है । यह एक ऐसा इतिहास है, जो वर्तमान और भविष्य के साधक एवं साधिकाओं के लिए मार्गदर्शन का पुनीत कार्य करता रहेगा । मैं हृदय से प्रवर्तिनी श्री जी के अभिनन्दन का स्वागत करता हूँ । वे स्वतः ही अभिनन्दनीय हैं फिर भी भक्तजनों का कर्तव्य है कि वे जन-जन के प्रति - बोध के लिए प्रवर्तिनी श्री जी के दिव्य जीवन की प्रभा अभिनन्दन ग्रन्थ के रूप में भी प्रकाशमान करके, पुण्यार्जन करें । O आर्यारत्न प्रवर्तिनी साध्वी जी श्री सज्जन श्री जी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित होने वाला है। तदर्थ आपको धन्यवाद है । आचार्य श्री पद्मसागर सूरीश्वर जी म० विदुषी प्रवर्तिनी साध्वी श्री सज्जन श्री जी म० सा० के अभिनन्दन समारोह के साथ ही अभिनन्दन ग्रन्थ भी प्रकाशित किया जा रहा है, जानकर मुझे सन्नता हुई । जैन - शासन की उनके द्वारा की गई प्रभावना एवं सेवा अनुमोदनीय है । अभिनन्दन समारोह की सफलता के लिये मेरी हार्दिक शुभकामना है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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