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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ 'संत का सत्कार होना चाहिए'
0 संघ प्रमुख चन्दन मुनि परम विदुषी प्रतिनी साध्वीमतल्लिका नहीं नफरत स्थान पाती हैं वहाँ, सज्जनश्री जी को मैं बाल्यकाल से जानता हूँ। प्रेममय संसार होना चाहिए ॥३।। उनके पिता स्वनामधन्य श्री गुलाबचन्द जी लूनिया है सभी अपने न कोई गैर है, जयपर के तत्त्वज्ञ श्रावकों में अग्रगण्य थे। वे कवि विश्व ही परिवार होना चाहिए ॥४॥ एवं समधर गायक भी थे। उनकी प्रिय पुत्री, श्री ज्योति 'चन्दन' जले पावन प्रेम की. केसरी चन्द जी की सहोदरा साध्वी सज्जन श्री से खुला दिल दरबार होना चाहिए ॥५।। मेरा चिर-परिचय रहा है । इस वैशाखी पूर्णिमा पर महोदया सज्जनश्री के जीवन उपवन में अनेक उनका अभिनन्दन समारोह मनाया जा रहा है, यह सुगुण पुष्प महक रहे हैं पर एक अनुकरणीय असाजानकर प्रसन्नता हई। क्योंकि गुणीजनों का अभि- धारण गुण से मैं बहुत प्रभावित रहा हूँ वह है उनकी नन्दन होना चाहिए । वास्तव में वह अभिनन्दन उपशान्त वृत्ति । जिसे अकृत्रिमता, सहजता, सरलता उनका नहीं, उनके उज्ज्वल व्यक्तित्व का होता आदि अनेक रूपों में देखा जा सकता है । नाना नामों है। गौतम कुलक में कहा गया है 'रिसी य देवाय से पुकारा जा सकता है। वाचकमुख्य उमास्वाति सम विमत्ता।' ऋषि देव तुल्य माने गये गये हैं। प्रशमरति प्रकरण में मार्मिक उल्लेख करते हैंइसी विषय पर लिखा मेरा एक गीत सप्रेम स्वी- सम्यग्दृष्टिर्जाती यान तपोबल युतो यनुपशान्तः ।
तं लभते न गुणं यं प्रशमगुणमुपासितो लभते ॥२७।। कार करें
जो साधक सम्यग्दृष्टि है, ध्यान तपोबल युक्त है सन्त का सत्कार होना चाहिए।
फिर भी यदि अनुपशान्त है तो वह उस गुण को--उस देव सा व्यवहार होना चाहिए।
अध्यात्म की ऊँचाई को नहीं छू सकता जिसे उपसन्त को पूजो, न पूजो पंथ को।
शान्त वृत्ति की उपासना करने वाला छू सकता है। सत्य ही आधार होना चाहिए ।।१।।
अतः इस अभिनन्दन समारोह के सभी संयोजक सन्त वो ही सन्त, जो निर्ग्रन्थ हो,
बन्धु, विशेषतः शशिप्रभाजी आदि विनीत आर्यावृन्द शान्तमन निर्भार होना चाहिए ॥२॥ भी नवतेरापंथ धर्म संघ की ओर से इस मांगलिक
प्रसंग पर शत-शत बधाइयाँ स्वीकार करें। 0 गणी मणिप्रभसागर जी प्रवर्तिनी सज्जनश्री जी महाराज जैन श्रमणी के सच्चे श्रेष्ठ स्वरूप की प्रतीक हैं। उनका व्यक्तित्व इतना बहुआयामी है कि जिस आयाम पर भी विचार करता हूँ, मन उनके प्रति श्रद्धा और आदर से विनत हो जाता है । ज्ञानार्जन और धर्म-प्रचार, काव्य रचना और साहित्य सर्जना जिन भक्तिधर्माराधना और समाज-संघटना सभी क्षेत्रों में उनका देय महिमायुक्त है । मैंने तो उनके सान्निध्य में बैठकर कई बार ज्ञानार्जन किया है, तत्त्वचर्चा की है। उनकी मधुर और विनम्र बोली से, वत्सलतामयी ज्ञान ज्योति से ऐसा लगता है यह प्राचीन भारत की गुरुणी माता है। जिसमें एक साथ गुरुत्व और मातृत्व साकार हुआ है।
खरतरगच्छ की श्रमणी परम्परा को आपने गौरव मण्डित किया है। आपका अभिनन्दन श्रमणी वर्ग का, श्रेष्ठ साधिका और ज्ञान उपासिका का अभिनन्दन है । मैं उनके प्रति आशीर्वचन तो दे नहीं सकता, क्योंकि वे मेरी विद्यागुरुणी रही हैं। उनके ज्ञानज्योति मण्डित जीवनतत्व के आरोग्य एवं दीर्घायुष्प की कामना करते हुए उनका हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। For Private & Personal Use Only
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