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खण्ड २ : आशीर्वचन : शुभकामनाएँ आचार्यश्री आनन्दऋषिजी म. सा. आचार्यश्री तुलसी जी म०
न+अरि -- नारी, अर्थात् जिसका कोई शत्रु साधु जीवन की सफलता के चारे दरवाजे हैंनहीं। यह नारी शब्द का शाब्दिक अर्थ है परन्तु क्षान्ति, मुक्ति, आर्जव और मार्दव । इन दरवाजों में इसका भावार्थ बहुत व्यापक है। समय-समय पर प्रवेश होने के बाद ही साधना के आनन्द का अनुनारी ने पुरुषों को उभारा है । अपरिहार्य समय पर भव होता है । जैनशासन में दीक्षित होने वाले उसे जगाया है, चेताया है। कर्तव्य से पराङ मुख साधु-साध्वियाँ भगवान महावीर के इस प्रेरणा को मार्ग पर लायी है। इसीलिये भगवान् महावीर वाक्य को आधार बनाकर ही अपने जीवन की यात्रा ने नारी को समानाधिकार अपने चतुर्विध संघ में प्रारम्भ करते हैं । देकर उस समय की विषमता समाप्त की जिस समय
मूर्तिपूजक परम्परा में दीक्षित वयोवृद्धा साध्वी नारी को हीन दृष्टि से देखा जा रहा था।
सज्जनश्री जी से हमारा पुराना परिचय है । जयपुर हमारे समाज में भी चन्दनबाला की परम्परा को
के तेरापंथी श्रावक गुलाबचन्द जा लूणिया की पुत्री चलाने वाली याकिनी महत्तरा सरीखी साध्वियाँ हुईं
होने के कारण भी उनका तेरापंथ धर्मसंघ के साथ हैं। जिन्होंने आचार्य हरिभद्रसूरि सरीखे व्यक्तियों को
निकटता का सम्बन्ध है। साध्वीजी की सहज और जैनधर्म में दीक्षित कर अद्भुत कार्य किया था।
निश्छल मनोवृत्ति उनकी साधना की गहराई को उसी परम्परा की शृंखला की एक कड़ी परम
कड़ा परम उजागर करने वाली है। उनके सम्मान में 'अभिविदुषी प्रवतिनी श्री सज्जनश्री जी म० सा० हैं। नन्दन ग्रन्थ' की समायोजना साध्वी समाज की उनका संक्षिप्त परिचय देखने से ज्ञात हुआ कि गुणवत्ता के मूल्यांकन की योजना है । जैनशासन उन्होंने एक सम्पन्न एवं संस्कारी कुल में जन्म लिया, की प्रभावना में साध्वियों का उल्लेखनीय योगदान छती-रिद्धि को त्यागकर मोक्षप्रदायिनी दीक्षा ग्रहण रहा है। अभिनन्दन ग्रंथ में ऐसी घटनाओं, संस्मकी और ज्ञान-ध्यान में अपनी शक्ति लगा दी एवं रणों का आकलन भी हो, जो साध्वी समाज की अनेक प्रान्तों में विचरण कर स्व-पर का कल्याण अर्हताओं को अभिव्यक्ति देने वाला हो । किया। ये समन्वयवादी हैं। कवित्व शक्ति उनकी जन्मजात प्रतिभा है। उनके द्वारा विरचित काव्य आज भी उनकी यशःकीर्ति को बढ़ा रहा है। ऐसी गुणग्राही साध्वी जी का अभिनन्दन ग्रन्थ जन-जन का प्रेरणादायक बने । यही मेरी शुभकामना है।
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