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आशीर्वचन शुभकामनाएँ
[पूज्य आचार्यों, मुनिवरों एवं श्रमणी मण्डल द्वारा]
आचार्य श्री जिनउदयसागर आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरि जी महाराज
सूरि जी म.
- प्रवर्तिनी महोदया साध्वी श्री जी म० से मेरा खरतरगच्छीय आगममनीषी वयोवृद्ध पर्याय ,
सम्पर्क साधनाकाल के प्रथम वर्ष से ही हो चुका स्थविर प्रवर्तिनी जी श्री सज्जनश्री म० सा०
है । जब मैं शान्त तपोमूर्ति आचार्य श्री विजयसमुद्र का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर आपने शासन के ।
सूरीश्वर जी म. के साथ बीकानेर में था। आपका रत्न को सही समय पर यथास्थान पर प्रतिष्ठित . कर जो सेवा का लाभ उठाया, हमें भारी प्रसन्नता
पत्र पाते ही वह सारी पुरानी स्मृतियाँ पुनः ताजा हुई और "क्या कर नहीं सकती महिला" इस उदा
हो गईं। इनकी प्रवचन शैली में वाणी की माधुर्यता हरण से मार्गदर्शन प्राप्त कर, नारी समाज
के साथ-साथ ज्ञान की गहनता एवं जीवन का अनु
भव झलकता है। यह महाराज श्री जी की अप्रभक्त आत्मकल्याण के लिये अग्रसर बने यही शुभभावना।
ज्ञान-साधना का ही परिचायक कहा जा सकता __ प्रवर्तिनीश्री जी का जीवन ज्ञान-दर्शन-चारित्र
है। जहाँ जीवन में एक ओर ज्ञान-तप-सेवा एवं रत्नत्रय की आराधना में संलग्न है और आप
साधना का तेज परिलक्षित होता है तो दूसरी ओर सतत इस पथ पर शुभ भावपूर्वक बढ़ती रहें,
विनय-विनम्रता तथा स्वल्प सीमित अर्थ गर्भित यही शुभेच्छा है।
शब्दों वाली वाणी भी जीवन की पूर्णता को अभिव्यक्त करती है। इस प्रकार अनेक सद्गुणों से अलंकृत प्रेरणादायी जीवन को शब्दबद्ध करना असम्भव है क्योंकि कुछ न कुछ छूट जाने की सम्भावना रहती है। फिर भी छपने वाला अभिनन्दन ग्रन्थ, ग्रन्थ ही नहीं अपितु उनके जीवन की जीवन्त स्मृतियों को अजर-अमर बनाने वाला होगा। ऐसी मेरी हार्दिक शुभकामना है।
KINA
खण्ड
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