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________________ - सन्देश-शुभकामनाएं * हमालय का केन्द्र है-हदय । हद चेतना के हिमालय का केन्द्र है-हदय । हदय के उत्स से जब श्रद्धा-भक्ति-भावना का निर्झर प्रवाहित होता है तो उसमे एक अद्भुत सम्प्रेषण शीलता होती है, और होती है समग्र को आत्मसात् करने की जलीय तरलता, मिलन सारिता । भावनाओ के इस निर्झर का पात्रानुसार नाम 7 कुछ भी दे दें, जैसे बड़ों के हदय से जब लघु के प्रति भाव लहरे तरंगित होती है तो वे स्नेह, वत्सलता और आशीर्वचन का रूप धारण करती हैं तो सावश्रद्धा रखने वालो की तरफ से उच्चारित कोमल भावनाएं, शुभकामना या वन्दना का परिवेष पहन लेती है । श्रद्धेय के प्रति विनम्र कृतज्ञ भाव से शब्दावलियांअभिनन्दन का रूप ले लेती है । पूज्य प्रवर्तिनी सज्जन श्री जी का सौजन्य सरभित स्नेह-शीतल व्यक्तित्व सभी के लिए वरेण्य रहा है । गुरुजनों का आशीर्वचन, सद्भावी सज्जनों की शुभ-कामनाएं और श्रद्धाशील भक्त-मानस की वन्दनाजलियाँ अभिनन्दनात्मक भावाभिव्यक्ति हमें जो प्राप्त हुई है उसी से यह अनुमित है कि यह मधुर-मिलनशील निर्मल व्यक्तित्व सबके लिए कितना आदरास्पद और भावनाभावित रहा है । -'सरस' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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