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________________ १७४ खण्ड १ | जीवन ज्योति : व्यक्तित्व दर्शन क्षण प्रतिपल उसके हृदय में करुणा का स्रोत छलकता रहे, रोम-रोम से अनुकम्पा के भाव निरन्तर प्रवाहित होते रहें । चूँकि दया साधना का नवनीत है, मन का माधुर्य है, उसकी सरस जलधारा से साधक का हृदय उर्वर बनता है और सद्गुणों के कल्पवृक्ष फलते-फूलते हैं । किसी ने कहा भी है ___'सन्त हृदय नवनीत समाना", पर मैंने देखा सन्तजीवन नवनीत अर्थात् मक्खन से भी विलक्षण होता है । नवनीत-स्वताप से द्रवित होता है जबकि सन्त जीवन पर-दुःख से-परताप से द्रवित होता है। वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि....सन्त स्वकष्टों को सहन करने में वज्र से भी कठोन बन जाता है, भयंकर विपत्तियों में भी मुस्कराता रहता है किन्तु दूसरों के दुःखों को देखकर पुष्प से भी कोमल बन जाता है, मोम के समान उसका हृदय अत्यधिक द्रवित हो जाता है । ___ हमारी करुणामयी गुरुवर्याश्री का हृदय भी करुणारस से छलकता हुआ सरोवर है जिसमें प्राणिमात्र के प्रति दया, करुणा, अनुकम्पा के भाव भरे हुए हैं। उनके कष्टों को देखकर आपका हृदय अत्यन्त द्रवित हो उठता है । तथा तत्क्षण उनके दुःख को दूर करने के लिए तत्पर हो जाती हैं । अपनेपराये के भेद से रहित आपके हृदय में मानव मात्र के प्रति वात्सल्य का स्रोत निरन्तर प्रवाहित रहता है - जिसमें निमज्जित हो मानव मन अत्यन्त आह्लादित हो जाता है । असमर्थ दीन-प्राणियों को सहायता - दिलवा-कर उनके दुःखों को दूर करने का निरन्तर सफल प्रयास करती रहती हैं। (५) मधुर व्याख्यात-आपश्री की प्रवचन शैली अनूठी, अजोड़ व अनुपम है । पार्वत्य कंदरा से निर्गत कल-कल निनाद करती जलधारा की तरह आपके मुख से निसृत अमृत वाणी का प्रवाह श्रोताओं को पूर्णतया अपने में बहा ले जाने में सक्षम है । आपश्री की वाणी में अनूठा जादू व विचित्र चमत्कार है। आपश्री गंभीर से गंभीर विषय का जिस समय प्रतिपादन करने लगती हैं तो श्रोता मंत्रमुग्ध से भावविभोर हो आपाद मस्तक उस भाव गंगा में डूब जाते हैं तथा एक मन एक रस होकर तादात्म्य की अनुभूति करने लगते हैं। आपश्री के प्रवचन आगमिक विषयों पर होते हैं। जिनमें नैतिकता, बौद्धिकता, विद्वत्ता, प्रभावोत्पादकता व हृदयस्पर्शिता के सहज दर्शन होते हैं । वस्तुतः आपश्री के प्रकाण्ड पाण्डित्य व विद्वत्ता की सौरभ जो चारों ओर प्रसृत हो चुकी है वह जन-जन के मानस को अनुप्राणित व अनुप्रेरित कर रही है।। (६) कार्यक्षमता-आपश्री की कार्य क्षमता प्रत्येक क्षेत्र में दर्शनीय व अनुकरणीय है। आम लोग सभी क्षेत्रों में सम्पूर्ण कार्यों में निपुण नहीं होते। कई पढ़ने में आगे हैं तो कई तपस्या में, कई घरेलू कार्यों में तो कई अन्य-अन्य कार्यों में। पर आपश्री की कार्यक्षमता अजोड़ है, अद्वितीय है । कोई कार्य ऐसा नहीं है कि जिसमें आप विशेषज्ञ नहीं । यद्यपि आप रईस माता-पिता की सुपुत्री व जयपुर के दीवान खानदान की बहू हैं । अतः उस समय अर्थात् आपके गृहस्थ जीवन में शायद ही कभी पैदल चलने का अवसर आया होगा। और न ही कभी दीक्षा लेने से पूर्व किसी प्रकार के विचार आये कि कैसे पैदल चलूगी इतने बड़े घराने की बहू हूँ तो कैसे घर-घर जाकर आहार-पानी आदि लाऊँगी । किन्तु फिर भी दीक्षा लेते हो सर्वकार्य आपश्री इतनी दक्षता से व इतनी रुचिपूर्वक करती थीं कि देखने वालों को आश्चर्यमिश्रित आभास होता कि वस्तुतः आप सभी कार्यों में कितनी माहिर हैं । न कोई संकोच है न कहीं शर्म-प्रत्येक कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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