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खण्ड १ | जीवन ज्योति
आदि को दृष्टिगत रखते हुए वस्तु स्वरूप का प्रतिपादन करने वाला, मर्यादित पर निंदा व स्व-प्रशंसा से रहित तथा व्याख्यान अमर्म भेदी शुद्ध धर्म का उपदेशक, व्याकरण शुद्ध, विभ्रमादि मुक्त, सरस, क्रमद्ध, युक्तियुक्त आदि आदि गुणों से युक्त रहता है । ऐसा व्याख्या सर्वोत्कृष्ट होता है । ऐसा व्याख्यान ही दे सकते हैं जिनकी वाणी के साथ आचार भी शास्त्रसम्मत हो, तप का तेज हो । पूज्या सज्जन श्रीजी महाराज में तीसरे प्रकार के वक्ता के अनेक गुण हैं ।
पूज्याश्री सज्जन श्रीजी म. सा. के जीवन में विचार वाणी एवं आचरण की एकता है । आपने जैन शासन की महती प्रभावना की । प्रवचन के द्वारा शास्त्रों का ज्ञान दिया, धर्मोपदेश देकर धर्म से स्खलित होने वालों को स्थिर किया, धर्माचरण करने वालों के विचारों को पुष्ट कर आगे बढ़ाया और भव्यजीवों को उपदेश देकर धर्म की ओर प्रेरित किया ।
आपने सच्चे अर्थों में अपने गुरुवर्या ज्ञानश्रीजी म. सा. से शास्त्रों का ज्ञान लेकर उनका मनन चिन्तन कर अपने दूसरे गुरुवर्य श्री उपयोग श्रीजी म.सा के नामानुसार अपने उपयोग को प्रशस्त मार्ग पर लगाकर स्वयं का जीवन तो सार्थक किया ही समाज को भी सन्मार्ग पर लगाया है ।
इसे मैं अपनी प्रबल पुण्याई कहूँगा कि मुझे भी इस निमित्त से पूज्याश्री के गुणानुवाद का अवसर मिला । पूज्याश्री का गुणानुवाद निश्चय ही अशुभ कर्मों को क्षय कर भविष्य उज्ज्वल करेगा ।
कोटा
[] श्री अशोक बाफना,
जैन श्वे. समाज में सुप्रसिद्ध कोटा रतलाम राज्य के निवासी दीवान बहादुर स्व. श्री केशरी सिंहजी सा. बाफना दीवान नथमलजी सा. के जामाता थे । सौभाग्यवती सेठानी उवरावकुंवरबाई सा. का अपने भतीजे पर वात्सल्य भाव होने से विवाह भी आपकी इच्छानुसार किया और विवाहोपरान्त अपने ही पास रखा तथा आपके नववधू सज्जनकुमारी को अपने ही समुदाय के विधि विधान सिखाने की व्यवस्था की । आज्ञाकारिणी नववधू ने आज्ञानुसार सब विधि विधान दर्शन विधि, सामायिक विधि आदि शीघ्र ही सीख लीं । तेरापन्थी सम्प्रदाय और स्थानकवासी मूर्तिपूजा के विरोधी हैं ।
सज्जन कुंवर के मस्तिष्क में हलचल रहती थी। वि. सं. १९७८ में कोटा में पू. श्रीमती प्रवतिनी ज्ञानश्रीजी म. सा. उपयोग श्रीजी म. सा. का चातुर्मास होने से सीखने जाने का प्रसंग था । मूर्तिपूजा विषयक शंका का निराकरण भी वहीं हुआ ।
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स्वयं ने ही शास्त्र वाचन कर वास्तविकता ज्ञात कर ली और मूर्तिपूजा पर श्रद्धा दृढ़ हो गई । श्री उमराव कुंवर सेठानी सा. का देहान्त हो जाने पर भी उस परिवार से सम्पर्क बराबर बना रहा क्योंकि सेठ सा. की तृतीय धर्मपत्नी श्रीमती गुलाब सुन्दरी जी का भी गोलेच्छा परिवार पर पूर्व सेठानी सा. जैसा ही प्रभाव था । पूरा परिवार उनका आदर करता था ।
दीक्षा के अवसर पर स्वयं सेठ सा. श्री केशरीसिंह सा. सपरिवार पधारे और स्वयं के प्रभाव से दीक्षा जयपुर में ही करवायी । श्री कल्याणमलजी सा. से नथमलजी के कटले में मन्दिर व दादाबाड़ी के लिए जमीन प्रवर्तिनी श्री सज्जन श्रीजी म. सा. व श्रीमती गुलाबसुन्दरीबाई सा. ने सत्प्रेरण देकर श्री खरतरगच्छ संघ को भेंट कर रजिस्ट्री करवाई ।
आज भी कोटा का बाफना परिवार आपके प्रति पूर्ण श्रद्धाशील है ।
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