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________________ १४६ खण्ड १ | जीवन ज्योति मैं गुरुदेव से अन्तशः प्रार्थना करता हूँ कि आप शतायु, दीर्घायु, चिरायु बन शासन सेवा में संलग्न रहती हुई सन्तप्त प्राणियों को मार्ग प्रदर्शित करती रहें । इसी शुभेच्छा के साथ चरणों में कोटिकोटि वन्दन अभिनन्दन । 0 श्रीमती उर्मिला श्रीवास्तव (प्रधानाध्यापिका : श्री वीरबालिका उ. मा. विद्यालय, जयपुर) ज्ञान-सूर्य, तप की स्वर्ण-रश्मियों से, करती जो जन-जन को आलोकित शुचिता प्रेम दया और करुणा से, करती जो सबको आप्लावित । आज करें हम उनका अभिनन्दन, मन की श्रद्धा-भाव समर्पित । आपथी के चरणों की करें वन्दना, करें जन्म जन्म के पुण्य अर्जित । विधाता की इस रंग-बिरंगी कौतुक-पूर्ण सृष्टि में हजारों जन्म व मरण के कारक बनते रहते हैं। यही इस सृष्टि का विधान है, किन्तु कुछ अलौकिक व्यक्तित्व अपनी प्रतिभा, साधना, संयम, सेवा एवं त्याग के बल पर इस काल चक्र के बन्धन को भी निर्बन्ध करने में समक्ष होते हैं। इन्हीं आत्मशक्ति पुञ्ज साधनाशील व्यक्तियों के सम्मुख संसार नतमस्तक हो जाता है। प्रवर्तिनी पद विभूषिता परम पूज्या साध्वी सज्जनश्रीजी महाराज के सम्पर्क, सम्वाद एवं आशीर्वचनों से लाभान्वित व्यक्तियों की भी यही स्थिति है। एक बार आपका आशीष एवं मार्गदर्शन प्राप्त करने के पश्चात व्यक्ति श्रद्धावनत होकर बार-बार दर्शनों के लिए लालायित रहता है। ___ मुझे भी महाराजश्री के आशीर्वचनों का सद्लाभ प्राप्त करने का अवसर संयोग से प्राप्त हुआ। उत्तरप्रदेश के एक भाग से शिक्षा प्राप्त करके जयपुर के श्री वीरबालिका उ. मा. विद्यालय में सेवा करने का अवसर प्राप्त हुआ। यह जैन विद्यालय सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीय गतिविधियों के लिये अत्यन्त प्रसिद्ध था। कुछ दिनों पश्चात विद्यालय में साध्वी सज्जनश्रीजी महाराज साहब का शुभागमन हुआ। आपकी तेजस्वी मुद्रा जहाँ आपके गहन दार्शनिक तत्वज्ञान की गरिमा को प्रकट कर रही थी वहीं श्वेतवस्त्रों से आवृत सुस्मित हास्य आपकी करुणा एवं वात्सल्यपूर्ण हृदय की महानतम विशेषताओं को उजागर कर रहा था। बच्चों के सम्मुख आपने बोधगम्य भाषा एवं प्रभावपूर्ण शैली का प्रयोग करते हुए तीन "व" विद्या, विनय व विवेक को धारण करने की प्रेरणा दी। साथ ही सदाचरण की ओर प्रेरित करते हुए आपने सूत्र रूप में सात "स" के पालन करने का आग्रह किया जो इस प्रकार है-सत्य, सहयोग, सहानुभूति, सद्भाव, सादगी, समता एवं संयम । जीवन के सार-तत्व को इतनी सरलता एवं प्रभावपूर्ण ढंग से व्यक्त करने की क्षमता अदभुत है । यह क्षमता आपके गहन चिन्तन-मनन एवं सजगता को परिचायक है। जीवन के इन शाश्वत मूल्यों पर अपना सम्पूर्ण अधिकार रखने वाली आर्या के प्रति सबका मस्तक श्रद्धा से झुक गया। निश्चय ही गुरुवर्या का यह सन्देश छात्राओं एवं अध्यापिकाओं के जीवन का लक्ष्य बना रहेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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