SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ खण्ड १ | व्यक्तित्व-परिमल : संस्मरण १४५ गुजरात, सौराष्ट्र, बंगाल, बिहार, मध्यप्रदेश तक फैला दिखाई देता है । जाहिर है उनमें एक अनुपम वाग्मिता है, भाषण देने की मधुर कला है । वह खरतरगच्छ संघ की ज्योति हैं जिनसे कितनी ही साध्वियाँ प्रकाश ग्रहण कर रहीं हैं और अपने मन की तामसता दूर कर रही हैं। 'भक्तामर स्तोत्र' में ऐसी ही श्रेष्ठ माताओं, स्त्रियों, नारियों की प्रशंसा की गई है । नारी की महिमा में सूर्य का तेज, चाँद की शीतलता, धरती की सहनशीलता तथा उर्वरता सभी का समीकरण है । मानतुंगाचार्य ने ठीक ही कहा है स्त्रीणां शतानि शतशो जनयन्ति पुत्रान्, नान्या सुतं त्वदुपमं जननी प्रसूता । सर्वा दिशो दधति भानि सहस्ररश्मि, प्राच्येव दिग् जनयति स्फुरदंशुजालम् । -भक्तामरस्तोत्र, २२ आगमज्योति परम तपस्वी साध्वी श्रीसज्जनश्रीजी म. को शतशः नमन, उनका शतशः अभिनन्दन। श्रीमती ज्ञानदेवी बेगानी सरलता, सादगी, सहिष्णुता, समता की प्रतिमूर्ति श्रद्धय प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज साहब का व्यक्तित्व एक विलक्षण व्यक्तित्व है। मेरा परिचय गुरुवर्याश्री से लगभग २५-३० वर्ष पुराना है। मेरा प्रथम सम्पर्क तब हुआ जब मैं पाकिस्तान से जयपुर आयी। उस समय मेरे जीवन में चहुँ ओर निराशा ही निराशा थी, क्योंकि पाकिस्तान के झगड़े में मेरे कई निकटवर्ती संबंधियों का निधन हो गया था । जब मुझे ऐसे पावन निर्मल गुरु से मिलने का संयोग प्राप्त हुआ तो मेरे शोकसंतप्त, अंधकारमय जीवन में प्रकाश की लहर आयी । इन्होंने मुझे धर्म की ओर प्रेरित किया अर्थात् मज्ञ में धर्म के ससंस्कार डाले फिर इन संस्कारों से मेरी भावना उत्तरोत्तर बढ़ती गयी। मैं जब भी इनके दर्शनार्थ आती हैं तो इनके मस्कराते हए चेहरे को देखकर, इनकी सरलता और समता भाव को देखकर हर क्षण यही विचार करती हूँ कि हे प्रभु मुझे भी ऐसी सरलता और समता प्राप्त हो । इनका एक विशेष गुण यह है कि जब भी कोई व्यक्ति किसी समस्या के समाधान के लिए या कोई सुझाव लेकर आता है तो ये उसकी बात को बड़े ही ध्यान से आदरभाव से सुनती ही नहीं अपितु उसकी समस्या का समाधान करती है और उसे उचित सुझाव भी देती हैं। इनका समग्र जीवन समाजोत्थान तथा शिक्षा के विस्तार और विकास के लिए समर्पित है। इनकी उदारता और प्रेम छोटे बच्चे से लेकर बड़े व्यक्ति के दिल को भी स्पर्श कर जाता है। इनका व्यक्तित्व महान फल और छाया से युक्त वृक्ष के समतुल्य है, जिसकी शीतल छाया में हर व्यक्ति अपने जीवन का उचित ढंग से निर्माण कर सकता है। श्री कपूरचन्दजी श्रीमाल, हैदराबाद चार पाँच वर्ष पू. गुरुवर्याश्री का विचरण बंगाल, बिहार, यू. पी. क्षेत्र में रहा और दो वर्ष का विचरण गुजरात में भी रहा । ६७ वर्ष की उम्र में आपश्री ने पालीताणा की नव्वाणु यात्रा की जहाँ मुझे, यदा-कदा आपश्री के सेवा में रहने का अवसर प्राप्त हुआ। __ आपके जीवन की एक विशेषता है कि एक सम्प्रदाय में दीक्षित होकर भी सम्प्रदाय से बंधी नहीं उसका मुख्य कारण है कि सन्त वृत्ति जीवन में साकार हो गयी। खण्ड १/१९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy