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________________ खण्ड १ / व्यक्तित्व-परिमल : संस्मरण १४३ पाद विहार नहीं हो सकेगा। अतः विहार में ठेला या कुर्सी का प्रयोग कर लें । परन्तु आपने इसे स्वीकार नहीं किया। आपने कहा, जितना चल सकूगी धीरे-धीरे चलूगी, लम्बा विहार नहीं हो सकेगा तो थोड़ाथोड़ा करूंगी। दिन अधिक लगेंगे तो कोई बात नहीं। जब तक शरीर साथ देता है, पैदल ही चलने की भावना है। यह है आपकी संयम पालने की उत्कृष्टता। आगम ज्ञान के साथ-साथ आपका ऐतिहासिक ज्ञान भी उत्तम है । "ओसवाल वंश अनुसंधान के आलोक में" पुस्तक की पांडुलिपि जब मैंने आपको अवलोकनार्थ दी तब आपने उसे पूरी रुचि, लगन एवं तत्परता से पढ़ा । मुझे कई उपयोगी सुझाव दिए । कुछ भूलों का परिमार्जन भी कराया। तक्षशिला के बारे में आपने मेरी शंका का तर्क युवत ढंग से समाधान किया । मैंने पूछा कि तक्षशिला में ५०० जिन चैत्य थे ऐसा जैन साहित्य में पढ़ने को मिलता है, क्या यह ठीक है ? ५०० जिन चैत्य वाले नगर में जैनों की आबादी लाखों में रही होगी। आपने बताया कि पुराने समय में कई प्रदेशों में ऐसी परम्परा थी कि जैन लोग अपने घरों के मुख्य द्वार के ऊपर पद्मासन आकार के तीर्थंकर की मूर्ति अंकित कराते थे जैसा कि आज भी कई वाहन व घरों के द्वार के ऊपर गणेश की मूर्ति रहती है । इसके अतिरिक्त कई जैन घरों में घर देरासर होते थे। आज भी कुछ संभ्रात घरों में घर देरासर (मन्दिर) देखने को मिलते हैं । इस प्रकार आपने दूसरी भी कई शंकाओं का समाधान किया । जो आपका इतिहास ज्ञान का परिचायक है। ज्ञान और चारित्र का जैसा सुमेल एवं समन्वय आपके जीवन में देखने को मिलता है वैसा तालमेल और एकरूपता बहुत कम देखने को मिलेगी। अपनी गुरुवर्या स्वर्गीय प्रवर्तिनी श्री ज्ञानश्रीजी एवं स्व. प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्रीजी के निकट संपर्क में रहने से उनके विशिष्ट गुणों की अमिट छाप आपने जीवन में स्पष्ट परिलक्षित होती है। अन्त में मेरा सज्जनश्री जी महाराज को शत शत वन्दन । उनके ज्ञान और चारित्र का कोटि कोटि अभिनन्दन । ०० सज्जन सज्जन है अहो सज्जनता की खान । सज्जन सब मिलकर करें सज्जन का बहुमान । डॉ. निजामउद्दीन [हिन्दी विभागाध्यक्ष, इस्लामिया कॉलिज, श्रीनगर (काश्मीर)] वजूदे-जन से है तस्वीरे-कायनात में रंग इसी के साज से है जिंदगी का सोजे-दरूँ शरफ में बढ़कर सुरैया से मुश्ते-खाक इसकी कि हर शरफ है उसी दुर्ज का दुरे मक मकालमाते-अफलातू' न लिख सकी लेकिन उसी के शोले से टूटा शरारे-अफलातू -डा० मुहम्मद इकबाल डा० मुहम्मद इकबाल ने ठीक कहा है कि सृष्टि की शोभाश्री नारी के अस्तित्व के कारण है । शालीनता में उसकी श्रेष्ठता की बराबरी कौन कर सकता है। भले ही नारी ने अफलातून के समान उच्चकोटि के ग्रन्थों का प्रणयन न किया हो, लेकिन अफलातून को उत्प्रेरणा देने वाली नारियाँ ही तो हैं। . जैन-धर्म में नारी की पवित्रता तथा शालीनता की दृष्टि से उच्च स्थान है। वह महापुरुषों की जननी तथा उन्हें महान बनाने की प्रेरक शक्ति भी रही है। यहाँ नारी व्रत, नियम का अनुपालन कर मोक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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