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________________ 118 खण्ड 1 | जीवन ज्योति प्रवचन पक्ष : ___ इनके विचार गूढ़ एवं गहरे अवश्य हैं परन्तु वे सरल एवं सुग्राह्य भी हैं। इनके प्रवचन सार्वभौमिक शास्त्रीय सत्यों पर आधारित, मधुर एवं सारगर्भित हैं जो श्रोताओं के मन, मस्तिष्क एवं हृदय पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। इनकी वाणी, इनके बोल एवं इनके कथन में आध्यात्मिक गहराइयों व अनुभूतियों का अद्भुत संगम है। इन्होंने अनेक कृतियों का सृजन किया है जिनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं : पूज्य जीवन ज्योति, श्रमण सर्वस्व, श्री कल्पसूत्र की आधुनिक हिन्दी व्याख्या, द्वादश पर्व व्याख्या हिन्दी व्याख्या, अध्यात्मबोध अपर नाम देशनासार संस्कृत का हिन्दी अनुवाद, चैत्यवन्दन कुलिक आदि। इसके अतिरिक्त इन्होंने अनेक भजनावलियाँ भी बनाई हैं जो लोगों के भौतिक और आध्यात्मिक जीवन को शान्तिमय एवं सुखदायी बना रही हैं / विशेष रूप से उल्लेख करने योग्य हैं-कुसमांजली, पुष्पाञ्जली, गीताञ्जली तथा सज्जन विनोद / एकाग्र भाब पक्ष : एकाग्र भाव पक्ष इनके जीवन का एक अनूठा एवं अद्वितीय पक्ष है। इनके अध्ययन पठन, पाठन, मनन एवं ध्यान में एकाग्रता की पराकाष्ठा है। इनको पढ़ाने की शक्ति असीम है। इनके पढ़ाने के तरीके में नवीनता के साथ तारतम्यता भी जबरदस्त है। यही नहीं आप ज्ञानपिपासु के मन और मस्तिष्क पर एक विशिष्ट छाप छोड़ जाती हैं। मूल में तो इनका जीवन ही एक निश्चल प्रवाहमान धारा के अनुरूप है। ये प्रत्येक जिज्ञासु की प्यास बुझाने का समान अवसर देती हैं। जिज्ञासु अपनी क्षमता के अनुसार अपना पात्र भरकर ले जाते हैं। सेवाभाव पक्ष :-- __ इनके व्यक्तित्व का सेवा भाव पक्ष भी अति प्रबल है / ये दलित एवं गिरे हुए लोगों को उठाने का प्रयास करती हैं। ये साधु-सन्तों की सेवा में भी सदैव तत्पर रहती हैं। प्रवर्तिनी महोदया ज्ञानश्रीजी महाराज साहब की सेवा में 22 वर्षावास जयपुर में करना यह इनके सेवा भाव पक्ष का एक ज्वलन्त उदाहरण है। ये किसी भी जीव के दुःख से द्रवित ही नहीं होती अपितु हर सम्भव उसके दुःख को दूर करने का प्रयास करती हैं। तप रुचि : इन्होंने अपने जीवन में “तपस्या" को भी एक विशिष्ट स्थान दिया है। इनका यह अटूट विश्वास है कि तपस्या हमारे स्वस्थ शरीर, मन एवं आध्यात्मिक शक्ति की संजीवनी बूटी है और तपस्या के द्वारा ही बँधे हुए कर्मों को आन्दोलित और प्रक्षालित किया जा सकता है। इन्होंने अब तक के जीवन में उपधान, नवपद ओली, विंशतिस्थानक तप, अट्ठाई, मासक्षमण तप तथा कई तेले चोले किये हैं और अब भी आप कोई न कोई तप करती रहती हैं। इनके उपर्युक्त वणित विलक्षण गुणों और असाधारण विशेषताओं से प्रभावित होकर कई बहिनों ने संसार के दावानल से मुख मोड़कर इनके पावन चरणों में स्थान पा लिया है, और अनेक बहिनों में इनके पावन चरणों में स्थान पाने के लिये आध्यात्मिक रूप से चाह है। जिस प्रकार एक मूर्तिकार अपनी कल्पना, बुद्धि, शक्ति से पत्थर को मानों सजीव पूर्ति का एक रूप दे देता है, उसी प्रकार इन्होंने भी शिष्याओं के जीवन को बदल दिया जिसके परिणामस्वरूप वे इनकी आध्यात्मिक ज्योति को देश के कोनेकोने में फैला रही हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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