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________________ खण्ड 1 | व्यक्तित्व-परिमल : संस्मरण 116 आज के आणविक युग में सम्पूर्ण मानव जाति संहार के कगार पर खड़ी है। एक ओर विश्वशक्तियाँ आपसी टकराव के कारण मानव जाति के अस्तित्व को समाप्त करने में लगी हुई हैं तो दूसरी ओर साम्प्रदायिकता की भावना, जातिवाद की भावना मानव जाति को जकड़ रही है। यदि हमें संसार के ऐसे सन्ताप और नैराश्य के वातावरण से अपने आपको बनाना है तो "गुरुवर्या सज्जनश्रीजी महाराज साहब" के बहुमुखी व्यक्तित्व से अनुकरणीय बातें ग्रहण कर उन पर चलना होगा ताकि हम सभी अपने जीवन को मंगलमय, आनन्दमय एवं शांतिमय बना सकें। अनुकरणीय बातें : 1. धैर्य, सहनशीलता, संयम एवं अहिंसात्मक भाव पर मनन एवं आचरण करना। 2. साम्प्रदायिकता की भावना का त्याग कर विशाल दृष्टिकोण अपनाना, जिससे समाज एवं राष्ट्र को बिखराव की स्थिति से बचाया जा सके। 3. असहाय, दुःखी और कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान में सहायक बनना। 4. स्वाध्याय, चिन्तन एवं मनन के लिए कुछ समय का प्रावधान करना। 5. प्रसन्न चित्त रहने का नियमित प्रयास करना / 6. अपशब्दों के प्रयोग पर नियन्त्रण करने का प्रयास करना / 7. क्रोध, ईर्ष्या, एवं अहंभाव का त्याग करने की आदत डालने का प्रयास करना। 8. पर-निंदा के वाद-विवाद से दूर रहने का प्रयास करना / 6. जीवन की प्रत्येक क्रिया संयम से करने का प्रयास करना। 10. विनय, विवेक एवं क्षमा को जीवन की आधारशिला बनाने का प्रयास करना। हम "गुरुवर्या श्री सज्जनत्रीजी महाराज साहब' के द्वारा बताये गये नियमों एवं आदर्शों पर किंचित् मात्र भी आचरण करें तो निश्चित रूप से अपना इहलोक और परलोक उज्ज्वल बना सकते हैं। 0 श्रीमती गुलाबसुन्दरी जो बाफना ___ परमादरणीया पूज्या प्रवर्तिनी महोदया श्री सज्जनश्रीजी महाराज साहब के ८२वें वर्ष प्रवेश के प्रसंग पर मैं पूज्य गुरुवर्याश्री का हृदय से अभिनन्दन करती हूँ। मेरा परम सौभाग्य है कि मुझे इनका सम्पर्क मिला, क्योंकि गृहस्थ जीवन के सम्बन्ध में मुझे इनकी भुआसास बनने का अवसर प्राप्त हुआ / प्रथम सम्पर्क से आज तक का अनुभव है कि इनकी प्रकृति में कभी विकृति नहीं देखी / जो गुण मैंने देखे वे गुण इनके जीवन के सहज स्वाभाविक हैं। जीवन में कभी कृत्रिमता नहीं देखी / कई लोगों को देखती हूँ तो लगता है कि उनके जीवन में दोहरापन है, कथनीकरनी में अन्तर है, अन्दर-बाहर भेद है, जीवन और जिह्वा में फर्क है / किन्तु मैंने पू. सज्जनश्रीजी म. सा. को गृहस्थ जीवन भी देखा व साधक जीवन में भी देख रही हूँ किन्तु इनके जीवन में कभी दुराव, छुपाव नहीं देखा। जितनी बार सान्निध्य प्राप्त हुआ, जब-जब भी दर्शन किये, तब ही पू. गुरुवर्या श्री के जीवन में आत्मा के सहज स्वाभाविक ग णों के दर्शन किये / पूज्या श्री के दर्शन से ऐसे ही भाव आते, अहसास होता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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