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________________ खण्ड १ | व्यक्तित्व-परिमल : संस्मरण ११५ पूजक समाज को एक महान प्रबुद्ध व्यक्तित्व के रूप में, प्रवर्तिनी पूज्या सज्जन श्री जी म० सा० की है । जिस किसी ने आपका पावन सान्निध्य दर्शन, वंदन कर प्राप्त किया वह मृदुस्मित मुस्कान के साथ आत्म कल्याणी उपदेश एवं मांगलिक से धन्य हो गया । प्रतिपल जापपरायणा संयमनिष्ठ अप्रमत्ता प्रवर्तिनी ज्ञानश्रीजी महाराज की आप परम प्रिय शिष्या रही हैं । आपके अनुशासन में शिक्षित-दीक्षित, एवं सेवारत विदुषी शिष्यावर्ग भी खरतरगच्छ संघ की अनुपम धरोहर के रूप में जिनशासन प्रभावना में विशाल योगदान दे रही हैं, यह सर्वविदित ही है । भारत कोकिला, समन्वय - साधिका समताधारी स्व० प्रवर्तिनी श्री विचक्षणश्री जी म० सा० आपकी विशाल प्रतिभा को आँकते हुए आपको "अध्यात्म रस निमग्ना" पद से तो अलंकृत किया ही था । किन्तु आपको प्रवर्तिनी पद देने की भी अपने पत्रों में भावना व्यक्त की थी। दिल्ली में मैंने सन् १६८० में अनुयोगाचार्य पूज्य श्री कान्तिसागर जी म० सा० को स्वं प्रवर्तिनी जी महाराज की पत्रावली बताई तथा आपको प्रवर्तिनी पद देकर उक्त भावना को मूर्तरूप देने की विनती की, आपने उसी समय मुझे आश्वस्त किया कि ठीक है, यह होना श्रेष्ठ रहेगा । अखिल भारतीय श्वेताम्बर जैन खरतरगच्छ महासंघ के प्रयत्नों से सन् १९८२ में पूज्यवर के आचार्य पद विभूषित होने के पश्चात् जयपुर में पुनः महासंघ द्वारा चर्चा की गई तथा पूज्या सज्जन श्रीजी म. सा. को प्रवर्तिनी पद देने का मुहूर्त शीघ्र निकालने का निर्णय लिया गया। श्री खरतरगच्छ श्रीसंघ जोधपुर की इस महान् कार्य में अत्यधिक रुचि थी, अतः मिति मिगसर वदी ६ सम्वत् २०३६ को पूज्य आचार्य श्री १००१ श्री कान्तिसागर सूरीश्वर जी म. सा. की पावन निश्रा में आपको प्रवर्तिनी पद से जोधपुर में समारोहपूर्वक अलंकृत किया गया। आप जैन दर्शन की मर्मज्ञ होने के साथ-साथ ज्योतिष शास्त्र में भी अपना वर्चस्व बनाये हुए हैं । सन् १९८२ में चातुर्मास में जब पर्युषण पर्वाराधना को लेकर खरतरगच्छ संघ विषम परिस्थिति में पड़ गया था उस समय महासंघ के अध्यक्ष श्री जवाहरलाल जी सा० राक्यान, महामंत्री श्री दौलतसिंह जी सा० जैन एवं राजस्थान क्षेत्र उपाध्यक्ष (लेखक) के साथ आचार्य भगवन्त श्री कान्तिसागर सूरीश्वर जी म सा के पास जोधपुर विनती करने गये कि इस प्रकरण को सुलझाने का प्रयत्न किया जावे । आचार्यश्री ने उसी समय श्री केशरियानाथ जी के मंदिर के पास उपाश्रय से पूज्या श्री सज्जन श्री जी म० सा० को बुलाया तथा आपसे गूढ़ विचार विमर्श करके समस्या का समाधानसूचक हल निकाला । आपके आदेशानुसार अध्यक्ष महोदय आचार्य श्री उदयसागर सूरीश्वर जी म० सा० के पास स्वीकृत पधारे, इस सर्वमान्य निर्णय ने समस्त खरतरगच्छ को सुसंगठित होकर एवं एकता बनाये रखकर पर्युषण पर्व मनाने का सुयोग प्रदान किया । अतः अखिल भारतीय खरतरगच्छ महासंघ ऐसी महान विदुषी साध्वीजी का सदैव ऋणी रहेगा । अजमेर संघ को १६८० में आपश्री का चातुर्मास कराने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अजमेर चातुर्मास के सुअवसर पर ही परम पूज्य बालब्रह्मचारी आर्या श्री सम्यग्दर्शना श्री जी म. सा. ने मासखमण की दीर्घ तपस्या छोटी उम्र में सम्पूर्ण की । इस महान् तपस्या के उपलक्ष में अठाई महोत्सव कराने का लाभ श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ (पंजीकृत) अजमेर ने लिया । तथा पूज्या महाराज श्री सज्जन श्रीजी म० सा० की पावन निश्रा में समारोह व शान्ति स्नात्र पूजन आदि सुसम्पन्न हुए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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