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________________ ११६ खण्ड १ | जीवन ज्योति अजमेर खरतरगच्छ श्री संघ भी आपका महान उपकार कभी नहीं भूल सकता है । अप्रेल १९८१ में यहाँ के इतिहास में सर्वप्रथम भागवती दीक्षा हुई । आपके ही स्नेहपूर्ण शिक्षण, प्रशिक्षण एवं मातृवत् स्नेह ने श्री संघवी मानमलजी सुराणा की आत्मजा कुमारी मन्जु सुराणा बी. ए. को वैराग्य भावना से अभिभूत कर दिया तथा परम पूज्य शासन प्रभावक मुनिराज १०८ श्री कैलाशसागर जी म. सा. की पावन निश्रा में पूज्य विजयेन्द्र श्री जी म. सा० आदि की उपस्थित में विशाल समारोह (दौलतबाग) में आयोजित कराके कुमारी मन्जु सुराणा को भागवती दीक्षा आपके द्वारा प्रदान की गई, तथा आर्या मुदितप्रज्ञा श्रीजी नामकरण किया गया। उपरोक्त आयोजन श्री जैन श्वेताम्बर श्री संघ (पंजीकृत) अजमेर के तत्वाधान में श्री मानमलजी सुराणा के सह्योग से सुसम्पन्न हुआ। अजमेर संघ का परम सौभाग्य रहा कि इस वर्ष दूरदर्शी घोर तपस्विनी पूज्य श्री शशिप्रभा श्री म. सा. के दो वर्ष के वर्षीतप के पारणे का सुअवसर प्राप्त हुआ। इसी वर्ष आप उच्च रक्तचाप से ग्रस्त हो गई तथा व्याख्यान में ही आपकी वाणी पर हल्का पक्षाघात भी हुआ जिससे एकदम चिन्ता व्याप्त हो गयी और भागदौड़ मच गई, जयपुर से वैद्यराज सुशीलकुमार जी को लेकर श्रद्धय श्री राजरूप जी सा. टाँक पधारे और आपका निदान कराके उचित पथ्य एवं औषधोपचार निर्देश दिया । परम पूज्य प्रत्यक्ष प्रभाविक दादा गुरुदेव की असीम अनुकम्पा से आपने शनैः शनै स्वास्थ्य लाभ प्राप्त किया तथा जोधपुर की ओर प्रस्थान किया। __इस प्रथम आघात के समय व सन् १९८८ के जयपुर में हुए दीर्घ रक्तस्राव की भयंकर त्रपसदी से जब सारा जयपुर श्री संघ व अजमेर श्री संघ चिन्ता में डूब गया था तब आपने असीम धैर्य व साहस से जब पीड़ा को झेलते हुए डाक्टरों के खून चढ़ाने के तीव्र आग्रह को अपने स्पष्ट रूप से मना कर दिया और देव के भरोसे निमग्न रहीं । शासन देव की कृपा से आपने यह भीषण रोगावस्था भी सकुशल पार की और अभी भी इस वृद्ध अवस्था में भी आप सतत् लेखन-पाठन-धर्मक्रिया आदि से शिष्य परिवार को अनुशासित करती रहती हैं । आप अभी “देवचन्द्र बालावबोध' ग्रन्थ का विशद लेखन कार्य सम्पन्न कर चुकी हैं। अपने दर्शनों को आये भक्त परिवारों को आप मांगलिक व धर्म-देशना से दिनभर विराजे रहकर, बिना आराम किए, लाभान्वित करती रहती है तथा अपनी गुरुवर्या पूज्य प्रवर्तिनी म० सा० स्व श्री ज्ञान श्री जी म. सा. के बताये समन्वय प्रेम, समता के उपदेशों की जन-जन पर निरन्तर वर्षा करती रहती हैं। अजमेर खरतरगच्छ श्री संघ आपका हार्दिक अभिनन्दन करते हुए शासन देव से प्रार्थना करता है कि ऐसे पूज्य भव्यात्मा को स्वस्थ एवं दीर्घायु करें ताकि वे अपनी प्रतिभा से जैनधर्म का ध्वज उच्च शिखर पर पहुँचावें। श्री अरुणकुमार जैन शास्त्री, व्याकरणाचार्य जहाँ साधु-महात्माओं का संग है, वह स्थान ही साक्षात तीर्थ होता है। जयपुर में दादाबाडी भी एक ऐसा ही जीवन्त तीर्थ है । इस सत्संग की सूत्रधात्री, आधारस्तम्भ प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी महाराज हैं। उनकी सौम्यमूर्ति दर्शनीय है, उनका आचरण ग्रहणीय है, उनके हाथ में प्रतिसमय पुस्तक दिखती है, व्यर्थ के विकल्पनाओं में स्वयं को उलझाती नहीं, निरन्तर पठन-पाठन ही उनका कार्य रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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