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________________ ११४ खण्ड १ | जीवन-ज्योति दीक्षा प्रसंग उनकी निश्रा में न हो यह बात हम सबके लिए शोभनीय नहीं रहेगी । और अन्त में मुनि श्री को उनकी भावना समझनी पड़ी और अति भक्ति व शालीनता से दीक्षा सम्पन्न हुई और आपश्री विद्वान शिष्या प्रियदर्शना श्रीजी संयममार्ग पर आरूढ़ हुईं। __ अभी-अभी का एक प्रसंग और बना है । जयपुर के निकट जोबनेर में राष्ट्रसंत आचार्य पदमसागर सरीश्वर जी के शिष्य पन्यास धरणेन्द्रसागरजी म. की निश्रा में मन्दिरजी के प्रतिष्ठा महोत्सव का आयोजन था । इस क्षेत्र में कभी अपने साधु-साध्वियों का विचरण भी नहीं हुआ था। मैंने प्रवतिनी जी से निवेदन किया आप अपनी शिष्याओं को इस महोत्सव में जोबनेर भिजवाने की कृपा करें। मेरा निवेदन उनकी पुरानी यादों में समा गया। उन्होंने फरमाया-जोबनेर मेरे जीवन की निकट कुल की भूमि है । मैं जरूर तुम्हारे निवेदन को ध्यान में रखकर शिष्याओं को भेजूंगी और भेजा। उनके पधारने से महोत्सव की शान बढ़ गई तथा उनके उपदेश से वहाँ का समाज काफी लाभान्वित हुआ। ये कुछ प्रसंग हैं जो यह दर्शाते हैं कि वे केवल विशेष समुदाय के साथ बँधी हुई नहीं है अपितु महावीर के नाम व काम के लिए सदैव समर्पित हैं । यही वजह है आज जयपुर में सब ही समुदायों में उनके प्रति अटूट आस्था है बहुमान है। उनकी एक और घटना में प्रस्तुत करूंगा। गुरुवर्या साध्वीश्रीजी म. सा. ने आज से करीब ६५ वर्ष पूर्व महिलाओं की खासकर विधवा व परित्यक्ता बहनों के शिक्षा हेतु जैन श्राविकाश्रम नाम से एक संस्था की स्थापना की। पर उस काल में समाज उनकी भावना को नहीं समझ सका और थोड़े ही समय में वह संस्था बालिकाओं के स्कूल रूप में परिणत हो गयी । यही स्कूल आज वीर बालिका शिक्षण संस्थान के रूप में प्राथमिक से स्नातक की शिक्षा का नारी जागरण का केन्द्र बन गया है । और करीब ३५०० बहनें वहाँ शिक्षण प्राप्त कर रही हैं । इस संस्था के साथ तो प्रारम्भ से ही आपका लगाव रहा और संस्था के उत्थान व विकास के लिये आप सदैव ही प्रेरणा देती रहीं। पर आपने संयम मार्ग ग्रहण कर भी विद्या अध्ययन के लिए भी इस संस्था को चुना और हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग की प्रथमा, विशारद व साहित्यरत्न की कक्षाओं का अभ्यास भी यहाँ किया तथा परीक्षायें भी यहाँ से दीं । वीर बालिका शिक्षण संस्थान अपने ऐसे गरिमायुक्त विद्यार्थी को पाकर स्वयं गौरवान्वित हो रहा है । और अपने एक अंग को आज जैन शासन के श्रमणी समुदाय के मदान व उच्च प्रवर्तिनी पद पर आरूढ पाकर फला नहीं समाता । एक बात और उन्होंने इस संस्था में केवल शिक्षा ही नहीं पाई अपितु अन्य छात्राओं को शिक्षा प्रदान करने में शिक्षिका की भूमिका भी निभाई। इस संस्था को आपसे पूर्ण अतिप्रियता मिली है। उनका आशीर्वाद ही इस संस्था के उन्नत व विकासशील बनने में सहायक बना है। ऐसी महान विभूति की सेवाओं को याद करने, चिरस्थायी बनाने व प्रेरणा प्राप्त करने के लिए उनके ८०वें वर्ष पर एक अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन किया जा रहा है वह संस्तुत्य है, अनुमोदनीय है। ऐसे महान अप्रतिम प्रतिमा के धनी जैन शासन की विदुषी आर्या को शतः शतः नमन । शतः शतः वन्दन । 0 श्रीराम अमरचन्द जी लूणिया (अध्यक्ष : श्री जैन श्वे० खरतरगच्छ श्री संघ, अजमेर) राजस्थान के ऐतिहासिक नगर जयपुर के लूणिया वंश की अनुपम देन, जैन श्वेताम्बर मूर्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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