________________
परिवार-परिचय
_ [जीव मात्र को धारण (पोषण-संरक्षण) करने वाली इस पृथ्वी का एक सार्थक नाम है धरा! किंतु यह धरा, धरा मात्र नहीं, बसुन्धरा भी है। जब-जब इसने किसी आत्मशक्ति संपन्न तेजस्वी यशस्वी परोपकारपरायण पुण्यआत्मा को जन्म दिया, धारण किया तब-तब यह अपने वसुन्धरा (महामूल्यवान मणिरत्नों को धारण करने वाली) नाम में सार्थक हुई है और रत्नगर्भा अभिधान से गौरव मंडित
___ महान आत्मा स्वयं स्वार्जित गौरव की स्वाभिषिक्त मूर्ति है। उसे किसी अन्य के गौरव से अभिषिक्त करने की आवश्यकता नहीं रहती । किंतु श्रद्धाभिसिक्त होने के बाद लोक उस मूर्ति के मूल आधार का भी सन्मान करने लगते हैं। जिस खान में रत्न पैदा होता है उस खान का भी गौरव बढ़ता है । महान आत्मा जिस कुल वंश में जन्म लेते हैं उस कुल वंश की भी गरिमा युग-युग तक गाई जाती है और उन माता-पिता को भी लोक श्रद्धा से पूजते हैं, नमन करते हैं। स्वयं देवेन्द्र तीर्थंकर देव की माता-पिता की वन्दना करते हैं।
आज ऋषभदेव के नाम के साथ ही नाभिराय और माता मरुदेवी की वन्दना की जाती है। इक्ष्वाकुवंश का गौरव गाया जाता है। राम और कृष्ण के नाम के साथ ही दशरथ, कौशल्या, वसुदेवदेवकी यशोदा का नाम स्मरण किया जाता है । सूर्यवंश और चन्द्रवंश (हरिवंश) की यशोगाथाएं गाई जाती हैं । भगवान महावीर की वन्दना से साथ ही माता त्रिशला और राजा सिद्धार्थ को भी नमन किया जाता है। ज्ञात वंश का गौरव गाया जाता है। यह सब प्रत्यक्ष सत्य है-महापुरुष अपने जन्म से अपने कुल, वंश, परिवार और प्रदेश व देश को भी गौरवान्वित करते हैं।
इसी परम्परा के अनुरूप यहाँ पूज्य प्रवर्तिनी श्री सज्जनश्रीजी महाराज के धर्मनिष्ठ पिता-माता तथा अन्य सम्बन्धित परिवार का परिचय अत्यावश्यक है और पाठक की जिज्ञासा का स्वयं ही ससाधान है।
-संपादक
धर्मपरायणा आदर्श माता : श्रीमती महताबबाई
----विनय कुमार लूणिया दृढ़धर्मी गौरवपुरुष सेठ श्री गुलाबचन्दजी लूणिया की धर्मपत्नी का नाम महताब बाई था। पति के विचारों की अनुगामिनी, आदर्श पत्नी एवं सत्-संस्कारों की शिक्षा देने वाली आदर्श माता और वात्सल्य की खान वे हमारी पूजनीया दादीजी थीं। आपके पिताश्री का नाम श्री चुन्नीलालजी कोठारी
( ३ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org