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धर्मपरायण आदर्श माता : श्रीमती महताबबाई : विनय कुमार लूणिया था जो कि तत्कालीन भोपाल रियासत के खजांची थे। दादीसा० को धर्मनिष्ठा और धार्मिक संस्कारों का वरदान अपने पिताश्री से ही मिला था।
श्रीमान् चुन्नीलालजी के पूर्वज राजस्थान के बोरावड़ ग्राम में रहा करते थे। वे अपने बड़े भाई के साथ भोपाल व्यवसाय के लिए चले गये थे । वहाँ उन्होंने जवाहरात का कार्य प्रारम्भ किया। ईमानदारी एवं व्यवहार कुशलता के कारण व्यापार में दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि होने लगी और थोड़े ही समय में आपकी गिनती भोपाल नगर के गणमान्य वरिष्ठ व्यापारियों में होने लगी। उस समय भोपाल में बेगम साहिबा राज्य करती थीं। श्री चन्नीलालजी की नैतिकता और सच्चाई की चर्चा जब बेगम साहिबा के पास पहुँची तो उन्होंने सेठ साहब को अपने यहाँ आमन्त्रित किया। वे आपकी व्यवहारकुशलता, व्यापारिक प्रामाणिकता और स्पष्टवादिता से अत्यन्त प्रभावित हुई और उनको अपने राज्यकोष का खजांची बना दिया। बेगम साहिबा आपके कार्य से पूर्ण सन्तुष्ट एवं आश्वस्त थीं। धर्मनिष्ठ गृहणी
___ श्रीमती महताब बाई सेठ श्री चुन्नीलालजी की दूसरी संतान थीं जिनका विवाह जयपुर नगर के प्रसिद्ध जौहरी श्री गणेशमलजी के सुपुत्र श्री गुलाबचन्दजी के साथ हुआ । उस समय उनकी उम्र मात्र इग्यारह वर्ष थी। ये एक आदर्श दम्पत्ती थे। उनका जीवन धार्मिक संस्कारों एवं सात्विक विचारों से ओतप्रोत था। विवाह के तुरन्त बाद ही श्रावक के बारह व्रतों की कठोर अनुपालना उनके संयमित जीवन की साक्षी है । यह दोनों का मणि-कांचन सु-संयोग था जो परिवार और समाज में धर्म और परमार्थ की आभा फैलाता रहा।
दादी सा. को नवकार मंत्र की एक माला तथा एक सामायिक प्रतिदिन करने का नियम बाल्यकाल से ही था। इस नियम का आपने आजीवन पालन किया । पति के साथ बारह ब्रतों की साधना के अलावा आपने १५ वर्ष की आय से ही चतुर्दशी का व्रत रखना प्रारम्भ कर दिया था। इस व्रत का भी आपने ७५ वर्ष की अवस्था तक अनवरत पालन किया। बीमारी हो, प्रसूति हो या प्रवास हो, आपने इस व्रत को कभी नहीं टूटने दिया । कालान्तर में आपने एक सामायिक के स्थान पर तीन सामायिक प्रतिदिन करने का नियम ले लिया और उसे आजीवन निभाया।
आपको विभिन्न प्रकार के द्रव्यानुयोग के स्तोक (थोकड़े) याद थे । साधु-साध्वियों के नियमित दर्शन, उनकी सेवा, पदयात्रा, व्याख्यान आदि में आपकी गहरी रुचि थी। धर्म-चर्चा ही आपके जीवन का पाथेय था। अपने माता-पिता के धार्मिक संस्कारों की छाप ही संतानों पर भी पड़ी थी। प्रवर्तिनीश्री सज्जनश्रीजी म. सा. के उज्ज्वल जीवन को देखकर हम सहज ही जान सकते हैं कि माता-पिता कितने महान् संस्कारों से भावित थे।
उनके चार संतानें हुईं, दो सुपुत्रियाँ तथा दो सुपुत्र । सबसे बड़ी संतान हैं-वर्तमान में खरतरगच्छ धर्म-संघ की प्रवर्तिनी आर्यारत्न श्री सज्जनकुमारीजी म. सा. । दूसरी संतान हुए हमारे पिताश्री केशरीचन्दजी लूणिया जो अपने पिताश्री की भाँति ही तत्वज्ञानी, निर्भीक वक्ता एवं कुशल रत्न-व्यवसायी थे । उनकी प्रेरणा से ही आज उनके पुत्र-प्रपौत्र देश-विदेश में जवाहरात के व्यवसाय में अच्छी प्रगति कर रहे हैं । एक अन्य पुत्री श्रीमती कस्तूरी बाई तथा सबसे छोटे एक पुत्र श्री पूनमचन्दजी हुए। चारों ही संतानें धर्मनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ एवं व्यवहारनिष्ठ हुईं। व्यवहारकुशल आदर्शवादी
दादी सा० अनावश्यक एवं निरर्थक बातों में अपना एक क्षण भी नष्ट नहीं किया करती र्थी । वे अत्यन्त मृदुभाषिणी एवं शालीन स्वभाव की थीं। बच्चों को मारना तो दूर की बात है, वे उन्हें कभी
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