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जीवन ज्योति
११. कनकप्रभाश्रीश्री – जन्म - जीवाणा (जालोर) में वि० सं० २०२३, पिता -- हस्तीमलजी, माता - मोहरादेवीजी, गोत्र —- बागरेचा, नाम - भँवरी, दीक्षा - मणिप्रभसागरजी की निश्रा में वि० सं० २०४२ मिगसर बदी ३ को, अध्ययनरत ।
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१२. श्रुतदर्शनाश्रीजी - जन्म - जीवाणा (जालौर) में वि० सं० २०२३, पिता - खेतमलजी, माता - हस्तुबाईजी, गोत्र – गोलेच्छा, नाम – सुमन, दीक्षा- मणिप्रभसागरजी की निश्रा में वि० सं० आसाढ़ बदी २ को, अध्ययनरत ।
सज्जन भारती
महावीर - जिन स्तवन
(तर्ज - वेदों का डंका आलम में )
सबोधामृत का सिन्धु भरा, वर्द्धमान तुम्हारी वाणी में । है वस्तुविषयक विज्ञान खरा, वर्द्धमान तुम्हारी वाणी में || स्थायी ॥
स्यादवाद सुधा की शैली सरल, देती है मिटा विसंवाद गरल । सिद्धान्त अबाधित अटल अचल, वर्द्धमान तुम्हारी वाणी में ॥१॥ जो है जग की उपकारकरा, दुःख दोन प्राणियों का है हरा । उसी दिव्य दया का सन्देश भरा, वर्द्धमान तुम्हारी वाणी में || २ || जो सब को शान्ति दिया करती, और मन में प्रेम भाव भरती । वही विश्व मैत्री धारा झरती, जीवन में ज्योति जागृत कर, जो है सन्मति का सुखप्रद निर्झर,
तुम्हारी
वाणी में ॥३॥
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वर्द्धमान भर देती गुण अति शुभतर । वर्द्धमान तुम्हारी वाणी में ॥४॥
तापत्रय से जो प्राणी तपा, उसको पीयूष की रहती है भरी निस्सीम कृपा, वर्द्धमान तुम्हारी भरी निवृत्ति पथ की पोषकता, और प्रवृत्ति मार्ग की है ऐसी अपूर्व अलौकिकता, वर्द्धमान तुम्हारी जिसे भव्य भक्ति से श्रवण करे, सुन संसृति सागर सुमधुर सुमञ्जुल भाव भरे, वर्द्धमान तुम्हारी उज्ज्वल गुण गण प्रकटाती है, मोहतम को दूर जनता अनुपम आनन्द पाती है, वर्द्धमान तुम्हारी वाणी में ||८|| अन्तर में ज्ञान रवि जग जाता, उपयोग शुद्धतर भवि पाता । "सज्जन" मन तन्मय हो जाता, वर्द्धमान तुम्हारी वाणी में ||
शीघ्र तरे । वाणी में ||७| हटाती है ।
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पूत प्रपा । वाणी में ||५|
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शोषकता ।
वाणी में || ६ ||
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