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प्रवर्तिनी सज्जनश्री जी म० का शिष्या परिवार
प्रवर्तिनीश्री सज्जनश्रीजी के शिष्या परिवार में कुल १२ सदस्याएँ हैं जिनमें शशिप्रभाश्री जी ज्येष्ठ और श्रु तदर्शनाश्री जी कनिष्ठ हैं।
स्वयं के दीक्षित होने के पन्द्रह वर्ष बाद उनकी प्रथम शिष्या शशिप्रभाश्रीजी की ब्यावर में संवत् २०१४ में दीक्षा हुई थी। यह कैसा संयोग है कि उनकी गुरुवर्याजी फलोदी में ही जन्मी थीं और फलोदी ने ही उन्हें प्रथम शिष्या प्रदान की।
शशिप्रभाश्रीजी के दीक्षित होने के एक दशक बाद जयपुर में प्रियदर्शनाश्रीजी की दीक्षा हुई। उसके तीन वर्ष बाद जयश्रीजी ने भी जयपुर में ही साध्वी दीक्षा ग्रहण की। यह संवत् २०२६ की बात है । पश्चिम बंगाल के रेलवे केन्द्र खड्गपुर ने उन्हें तीन शिष्याएँ प्रदान की। ये तीनों बहनें हैं। इनकी दीक्षा संवत् २०३० में हुई। ये शिष्याएँ-दिव्यदर्शनाश्रीजी, तत्वदर्शनाश्रीजी और सम्यग्दर्शनाश्रीजी हैं। प्रसिद्ध तीर्थ नाकोडाजी में दीक्षित होने वाली शिष्या ने शुभदर्शनाश्रीजी का नाम पाया। एक वर्ष वाद संवत् २०३८ में अजमेर में मुदितप्रज्ञाश्रीजी के दीक्षा लेने से शिष्या परिवार में एक और की अभिवृद्धि हुई। जयपुर की तरह सिवाणा ने भी उन्हें दो शिष्याएँ-शीलगुणाश्रीजी व सौम्याश्रीजी दी हैं । जीवाणा में भी दो दीक्षाएँ हुई-तीन वर्ष के अन्तराल से। ये शिष्याएं हैं-कनकप्रभाश्रीजी और श्रु तदर्शनाश्रीजी।
___ जन्म के हिसाब से जीवाणा (जालोर) ने तीन, फलोदी, गढ़ सिवाना तथा खड्गपुर ने दो-दो, जयपुर, अरई व अजमेर ने एक-एक शिष्याएँ प्रदान की हैं।
संवत् दीक्षा स्थल
नाम वि. सं. २०१४ ब्यावर
शशिप्रभाश्रीजी जयपुर
प्रियदर्शनाश्रीजी जयपुर
जयश्रीजी २०३० खड़गपुर
दिव्यदर्शनाश्रीजी २०३० खड़गपुर
तत्वदर्शनाश्रीजी २०३० खड़गपुर
सम्यग्दर्शनाश्रीजी २०३७ नाकोड़ाजी
शुभदर्शनाश्रीजी २०३८ अजमेर
मुदितप्रज्ञाश्रीजी २०४० गढ़ सिवाना
शीलगुणाश्रीजी २०४० गढ़ सिवाना
सौम्यगुणाश्रीजी २०४२ जीवाणा
कनकप्रभाश्रीजी जीवाणा
श्रुतदर्शनाश्रीजी ( ६० )
Kor or
२०२३ २०२६
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