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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी कुछ दिन बाद पू. मणिप्रभाश्रीजी आदि भी दिल्ली से जयपुर पधार गये । प्रियदर्शनाजी म. व विद्य त्प्रभाजी म. का वर्षीतप चल रहा था जिसका पारणा अक्षय तृतीया को होना था। श्रीमान माणिकचन्दजी गोलेच्छा एवं उनकी धर्मपत्नी भंवरीबाई आदि के भी वर्षांतप का पारणा था। पारणे का संपूर्ण कार्यक्रम मोहनबाड़ी (जहाँ मन्दिर में मूल नायक आदिनाथ के चरण हैं-समोसरण) में पू. प्रधान सा. श्री अविचलश्रीजी म. सा. व पू. प्रवर्तिनी महोदया आदि की निश्रा में धूमधाम से सानन्द सम्पन्न हुआ। पूज्या गुरुवर्या श्री (सज्जनश्रीजी म. सा.) प्रवर्तिनी महोदया का विहार का विचार तो पक्षाघात के उपरान्त छूट ही गया है। शीतऋतु में मोती डूंगरी रोड स्थित दादाबाड़ी में धीरे-धीरे पधार जाती हैं। अब आपश्री का यही क्रम चल रहा है । सं. २०४४ के जयपुर चातुर्मास में अस्वस्थता के कारण व्याख्यान का भार भी पू. शशिप्रभाजी म. सा. को सौंप दिया। दो वर्ष से यह जिम्मेदारी पू. शशिप्रभाजी ही निभाती आ रही हैं। इस (सं. २०४४ के) चातुर्मास के पर्युषण में पू. महाराजश्री की सप्रेरणा से शिवजीराम भवन के नवनिर्माण हेतु श्रीमान् ताराचन्दजी संचेती ने ५ लाख रुपये देने की स्वीकृति दी। अतः खरतरगच्छ संघ के मन्त्री श्री उत्तमचन्दजी बढेर की देख-रेख में निर्माण कार्य सुचारु रूप से चल रहा है। ऊपर-नीचे - १०-१२ कमरे बन गये हैं, जिससे यात्रियों और आने-जाने वालों को सुविधा हो गयी है । और भोजनशाला आदि में भी काफी परिवर्तन हो गया है। सं. २०४५ के जयपुर चातुर्मास में श्री कनकप्रभाजी ने मासक्षमण तप की आराधना गुरुवर्याश्री की निश्रा में की। इतनी छोटी आयु ऐसा तप करना आश्चर्यकारी रहा। पू. प्रधान सा. श्री अविचलश्री जी म. सा. एवं पू. प्रवर्तिनी म. सा. की निश्रा में तपस्विनी का अभिनन्दन आदि सभी कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुए। पूज्या गुरुवर्या प्रवर्तिनी सज्जनश्रीजी अब ठाणापति रूप में जयपुर विराजित हैं । वर्तमान समय में आपश्री जप-ध्यान-स्वाध्याय आदि में अत्यधिक रुचि ले रही हैं। आपका मानना है कि स्वाध्याय वह अमृत है जिसका पान करके मानव अमर हो सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र में भी भगवान महावीर ने स्वाध्याय को ज्ञानावरणीय कर्म के क्षय का कारण बताया है। आगम मर्मज्ञा तो आप हैं ही। आचारांग सूत्र का स्वाध्याय चल रहा है । यद्यपि इस सूत्र को आप अनेक बार पढ़ चुकी हैं, फिर भी भगवान की वाणी को जितनी भी बार पढ़ो बुद्धि के नये-नये उन्मेष खुलते हैं, नये-नये रहस्य प्रगट होते हैं, स्फुरणा जागती है और हृदय आनन्द विभोर हो जाता है, रस-मग्न हो जाता है । ऐसा ही आपके साथ हो रहा है। ज्ञातासूत्र, प्रज्ञापना, अध्यात्म प्रबोधसूत्र, ओघ नियुक्ति, व्यवहारसूत्र, बृहकल्पसूत्र, निरयावलिया आदि चारसूत्र, सुरसुन्दरीचरियं, रयणचूड़चरियं, भीमसेनाहरिषेण, रायप्पसेणीय सुत्त आदि कितने सूत्रों का आप स्वाध्याय कर चुकी हैं और पारायण करती ही रहती हैं। साध्वी मण्डल को भी स्वाध्याय की प्रेरणा देती रहती हैं । उन्हें वांचना भी देती हैं । शंकाओं और जिज्ञासाओं के शास्त्रसम्मत समाधान भी देती हैं। बार-बार पूछने पर भी न कोई झुंझलाहट, न कोई ऊब । अन्य गच्छों की साध्वियों को भी सूत्रों के भाव बिना भेदभाव बताये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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