SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८७ - - खण्ड १ | जीवन ज्योति इस (लगभग ८१ वर्ष की आयु) उम्र में भी इतना उत्साह और ऐसी अप्रमत्तता, अन्यत्र दुर्लभ है। समताभाव इतना कि इतने उच्चपद पर प्रतिष्ठित हैं, फिर भी गर्व का नामोनिशान भी नहीं, साध्वीवृन्द को कभी आदेश की भाषा नहीं । अपने कार्य को स्वयं ही कर लेती हैं, किसी को कहती तक नहीं । वस्तुतः आपका जीवन खरा कंचन है। स्वाध्याय-तप-ध्यान-संयम आदि की कसौटी पर कसा हुआ खरा सोलहवानी सुवर्ण है। संयम की महक बावना चन्दन की सुवास से भी अधिक सुरभित है। आपका जीवन, संयमचर्या संसारसमुद्र में डूबते प्राणियों के लिए दीपस्तम्भ के समान पथ प्रदर्शित करने वाला है। ऐसी पुज्या, निर्मलचरित्रा सद्गुरुवर्याश्री सज्जनश्रीजी म. सा. के अभिनन्दन का निर्णय जयपुर खरतरगच्छ संघ ने २० मई ८६ (वैशाखी पूर्णिमा) के दिन करना स्वीकार किया है । इस अवसर पर श्रीपुखराजजी लूनिया की इच्छा को साकार रूप देते हुए अभिनन्दन ग्रन्थ भी आपश्री को समर्पित किया जायेगा । जिसका नाम होगा 'श्रमणी श्री सज्जनश्री म. सा. अभिनन्दन ग्रन्थ' । यह खरतरगच्छ संघ का प्रथम अभिनन्दन ग्रन्थ होगा। पूज्य प्रवर मणिप्रभसागरजी म.सा. ने भी इस ग्रन्थ के प्रकाशन हेतु हमें प्रेरणा दी, साथ ही सहयोग भी दिया । श्रीचन्दजी सुराना सरस का भी हार्दिक सहयोग, मुद्रण-व्यवस्था आदि में सराहनीय एवं प्रशंसनीय योगदान रहा । आप जैन समाज के प्रसिद्ध विद्वान हैं, ग्रन्थ के संपादन में भी उन्होंने सहयोग किया है, जिसके लिए हम इनके आभारी हैं | पू. प्रवर्तिनी महोदया का अभिनन्दन इसी अवसर पर अखिल भारतीय खरतरगच्छ संघ की ओर से गलता रोड़ स्थित मोहनबाड़ी, विचक्षण भवन में होगा। साथ ही विविध तपोपलक्ष्य में सामूहिक उद्यापन (उजमणा) प्रतिष्ठा आदि के कार्यक्रम आदि भी हो रहे हैं। वस्तुतः जयपुर धर्मनगरी है । खरतरगच्छ के १०० वर्ष के इतिहास में कभी उपाश्रय खाली नहीं रहे, सध्वीजी म० आते ही रहे, विराजित भी रहे । चातुर्मास भी होते रहे। श्रावकों में भी धर्म का उत्साह अत्यधिक है। अठाई आदि तपस्याएँ होती ही रहती हैं । दान की सुरसरि भी सदानीरा पयस्विनी की भाँति प्रवाहित रहती है। इन्हीं सब बातों से जयपुर नगरी भाग्यशाली है।। पूज्याश्री भी वहीं विराजित हैं । आपका जीवन मणि की भाँति धर्म का प्रकाश विकीर्ण करता रहे । युग-युग तक आलोक देता रहे। इन्हीं शुभभावनाओं के साथ"......" । -सज्जन वाणी १. उपासना से भावना का, साधना से व्यक्तित्व का, आराधना से क्रिया शीलता का परिष्कार और विकास होता है । २. सच्ची सेवा समाज को पतन से बचाकर उत्थान की ओर ले जाना ही है अर्थात् दुराचरण, व्यसन आदि से रोककर उनके जीवन में सदाचरण की भावना दृढ़ कर देना ही वास्तविक उत्थान है। ३. जीवन में सादगी, सात्विकता और विनम्रता जिनके होती है वे ही मानव धन्य और पूज्य बनते है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy