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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति ८५ तथा स्टूल, यूरीन आदि के टेस्ट लिखे । दस्त को देखा तो खून । उसे भी टेस्ट के लिए भिजवा दिया। उसी वक्त नर्स आई। उसने ब्लड लिया । यूरीन के लिए जैसे ही आप उठीं कि इतनी जोर से चक्कर आये कि आँखें ही ढेर दीं। हम पास खड़े थे, संभाल लिया। उसी क्षण बड़े जोर की खून की उल्टी हुई। दो-तीन मिनट बाद चेतना लौटी। हम लोग खड़े ही थे । कुछ शान्ति हुई । किन्तु कुछ समय बाद ही खून की ३-४ दस्तें । कुछ देर बाद खून की उल्टी और वही स्थिति । हम लोग घबड़ा गये । पुनः सौगानी साहब को बुलवाया। इस बीच जयपुर के २००-२५० व्यक्ति इकट्ठे हो गये । गुरुवर्या की इस दशा से सभी चिन्तित थे। सौगानी सा० ने गुरुवर्या की स्थिति देखकर श्री शशिप्रभाजी से कहा-दशा बहुत चिन्ताजनक है । ब्लड की बहुत कमी हो गई है । ७५ प्रतिशत ब्लड जा चुका है । तुरन्त हॉस्पीटल ले चलिए । ब्लड चढ़ाना बहुत जरूरी है। शशिप्रभाश्रीजी ने डॉक्टर साहब से कहा-इस विषय में मैं निर्णय नहीं ले सकती। क्योंकि गुरुवर्याश्री सदा हॉस्पीटल ले जाने के बारे में हमें सावधान करती रही हैं कि 'मुझे हॉस्पिटल न ले जाया जाय' फिर भी मैं उनसे पूछकर आपको बताये देती हूँ। श्री शशिप्रभाजी ने और श्रावकों ने भी गुरुवर्या को बहुत कहा पर उन्होंने एक ही जवाब दे दिया-मैं ठीक हूँ, आप लोग घबड़ाओ मत । मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला है। मेरी स्थिति बहुत गम्भीर नहीं है। निराश होकर डॉक्टर ने कहा-जब महाराज साहब मान ही नहीं रही हैं तो मैं क्या कर सकता हूँ ? अब तो बस, आपका भाग्य ही है। रात निकल जाय तो बहुत समझो । और डॉक्टर साहब चले गये। रात निकली। सुबह हुई। डॉक्टर सौगानी पुनः आये। रिपोर्ट देखी तो बोले-आपके ब्लड में हिमोग्लोबिन सिर्फ ४ रह गया अतः ब्लड चढ़वाना ही होगा। गुरुवर्याश्री ने शान्त भाव से फरमाया-डॉक्टर साहब ! मैं केवल ४-५ दिन का अवकाश चाहती हूँ । थाइराइड ग्रन्थि की प्रेक्षा करूंगी । मुझे विश्वास है ब्लड की क्षतिपूर्ति हो जायेगी। ___ डॉक्टर साहब क्या कहते, चले गये । ४-५ दिन बाद पुनः ब्लड टेस्ट हुआ। रिपोर्ट पढ़कर चकित रह गये। हिमोग्लोबिन पूरा ७ था। डॉ० साहब श्रद्धा से विनत होकर बोले--मेरे लिये यह चमत्कार ही है-डॉक्टरी इतिहास में इतनी जल्दी ब्लड कवर हो जाना।। और हम सब भी श्रद्धा से भर उठे-धन्य साधना, धन्य योग साधना, धन्य क्षमता, तितिक्षा परीषह विजय और समता । इस उम्र में और इतनी कमजोरी में भी ऐसी उच्चकोटि की साधना है गुरुवर्याश्री की। आपकी स्वयं की साधना और डॉ. सौगानी के औषधोपचार से पुनः पहले जैसी स्थिति हो गयी। ___इधर पू. मणिप्रभसागरजी म. सा. आदि पू. गुरुवर्याश्री को दर्शन देने हेतु जयपुर पधार रहे थे। २ दिन बाद ही वे पधार गये । ५-७ दिन जयपुर रहे। पूज्या प्रवर्तितीवर्या के प्रति आपश्री का सदा से मातृवत् भाव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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