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________________ जीवन ज्योति: साध्वी शशिप्रभाश्रीजी अनमने भाव से बोलीं- आज तो मेरे बाँये अंग में कुछ शून्यता - सी महसूस हो रही है, सिर भारी हो रहा हैं, जीभ लड़खड़ा रही है, कहीं हैमरेज या पक्षाघात न हो जाय । प्रियदर्शनाजी घबड़ा गईं । तुरन्त पू० मणिप्रभाश्री जी को बुलाया । उन्होंने स्थिति देखते ही श्रावकों से कहा । गाड़ियाँ दौड़ गई । १५-१७ मिनट में डॉक्टर साहब पधार गये। बोलीं- बी० पी० बहुत हाई हो गया है, नापा तो २४० । उसी क्षण अर्कामाइन तथा अन्य इंजैक्शन मिक्स करके लगाया । Tab. और Capsule भी दिये । हमें ध्यान रखने के लिए सावधान किया। सारी रात पूज्याश्री को बेचैनी रही और हम लोगों को चिन्ता | ८४ पू० श्री शशिप्रभाजी म० सा० आदि मांडोली, सिवाणा, नाकोड़ा आदि की यात्रा करके दादाबाड़ी पहुँचे । देखते ही घबड़ा गईं, आँखों से सावन-भादों बरसने लगा । पू० श्री शशिप्रभाजी म० सा० ५ वर्ष की आयु में ही गुरुवर्याश्री के पास आ गई थीं और उन्हें ras से मां से भी बढ़कर वात्सल्य प्राप्त हुआ व हो रहा है । शारीरिक अस्वस्थता के कारण पूज्या प्रवर्तिनीजी ५ वर्ष से जयपुर में ठाणापति के रूप में विराज रही हैं, और पू० श्री शशिप्रभाजी उनकी सेवा में संलग्न हैं । हम सब चातुर्मास तथा अन्य दिनों में भी इधर-उधर जाते रहते हैं, लेकिन पू० शशिप्रभाजी म० तो गुरुवर्या के साथ ही छायावत् रहती हैं । उन्होंने अपना जीवन गुरुवर्या के चरणों में समर्पित कर दिया है । जयपुर चातुर्मास : सं. २०४३ औषधोपचार से गुरुवर्या के स्वास्थ्य में सुधार तो था पर स्थिति ऐसी नहीं थी कि २ किलोमीटर की यात्रा करके जयपुर पधार जाएँ। पू० प्रधान सा० पू० मणिप्रभाजी म० सा० आदि का चातुसार्थ जयपुर शहर में प्रवेश हो चुका था । गुरुवर्या श्री भी किसी प्रकार श्रावण शुक्ला ३ तक शहर में पधार गईं। कारण यह था कि पू० निर्मला श्री म० सा० के २१ उपवास तथा बालसाध्वी सौम्यगुणाजी एवं कनकप्रभाजी के अठाई की पूर्णाहुति श्रावण शुक्ला ५ को होनी थी । गुरुवर्याश्री निश्रा में सभी कार्यक्रम सानन्द सम्पन्न हुए । चातुर्मास के बाद सदा की भाँति दादाबाड़ी आ गये । पू० श्री मणिप्रभाश्रीजी म० सा० आदि विहार करके दिल्ली पधार गये और पौष सुदी ११ को सम्यग्दर्शनाजी आदि ठाणा ४ दिल्ली से बिहार करके जयपुर आ गये । पू० गुरुवर्याश्री श्रीमद् देवचन्द्र चोबीसी (स्वोपज्ञ बालावबोध) के अर्थ का कार्य नियमित रूप से कर रही थीं......... भयंकर रोग का आक्रमण २३ दिसम्बर ! मध्यान्ह १ बजे आपश्री स्थण्डिल पधारीं तो देखा दस्त का एकदम काला (Black) कलर । चिन्ता हुई । मैंने पूछा तो आपश्री ने फरमा दिया - वैद्य की दवा ले रही हैं, उसका असर होगा । थोड़ी देर के पश्चात् पूज्याश्री ने कहा, मुझे कुछ कमजोरी महसूस हो रही है, लिखने में भी तकलीफ होती है। खैर, लेटकर ही लिखती हैं । कुछ समय तक लिखा, किन्तु चैन नहीं था, बेचैनी हो रही थी । ३ बजे पुनः स्थण्डिल पधारीं तो वही कलर दस्त का और ४ बजे पुनः पधारने पर भी वही स्थितिः । साध्वी शशिप्रभाजी ने डॉ. सौगानीजी को बुलवाया। डॉक्टर साहब ने आते ही नई दवा लिखी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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