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खण्ड १ | जीवन ज्योति
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इस अप्रत्याशित घटना से भंवरी बागरेचा की दीक्षा सन्देहास्पद बन गई। सभी संशयसागर में गोते खाने लगे। लेकिन पू० प्रवर मणिप्रभसागरजी म. सा० ने सिर्फ दो शब्द कहे-'दीक्षा होगी' और जीवाणा संघ का सन्देह दूर कर दिया।
श्रद्धय गुरुदेव मणिप्रभसागर की निश्रा में भंवरी बागरेचा की दीक्षा सम्पन्न हुई, इन्हें कनकप्रभाजी नाम दिया गया और पू० गुरुवर्याश्री की शिष्या घोषित की गई।
सम्यग्दर्शनाश्री जी आदि ३ तो दीक्षा के पश्चात जयपुर की ओर विहार कर गये और प्रियदर्शनाश्री जी, तत्वदर्शनाश्री जी, शुभदर्शनाजी नूतन दीक्षिता कनकप्रभाजी की बड़ी दीक्षा कराने हेतु पू० श्री कैलाशसागरजी म० सा० के पास गये । बड़ी दीक्षा के बाद वे भी जयपुर पहुंचे।
सं० २०४२ के गरुवर्याश्री के चातुर्मास में ही पूज्याश्री जैन कोकिला श्री विचक्षण म० सा० के अग्नि संस्कार स्थल (गलता रोड मोहनबाड़ी) विशाल समाधि स्थल पर मूर्ति स्थापित करने के निमित्त विराट समारोह का निर्णय खरतरगच्छ संघ ले चुका था। मूर्ति स्थापना समारोह की तिथि फाल्गुन शुक्ला ३ निर्णीत हुई थी।
प्रधान सा० पू० अविचलश्री जी म. सा. आदि पू० श्री चन्द्रप्रभाश्री जी म. सा० आदि तथा पू० श्री मणिप्रभाश्री जी म० सा० आदि सभी पधार गये थे। पू० प्रवर्तिनीजी वहाँ विराजमान थी ही । बड़ी धूमधाम से फाल्गुन शुक्ला ३ के दिन सभी की निश्रा में विचक्षण मूर्ति स्थापना समारोह सानन्द सम्पन्न हुआ।
समारोह के बाद ही चातुर्मास की विनतियाँ आने लगीं। जोधपुर संघ का अत्याग्रह था किन्तु पू० श्री मणिप्रभाश्री जी की इच्छा पूज्या प्रवर्तिनीजी के साथ जयपुर चातुर्मास करने की थी। अतः पू० श्री सुरञ्जनाश्री जी म. सा., मुदितप्रज्ञाश्री जी व सिद्धांजनाश्री जी का जोधपुर चातुर्मास निश्चित किया गया और सम्यग्दर्शनाश्री जी, विद्यु तप्रभाश्री जी आदि ठाणा ५ का दिल्ली।
वैशाख में पू० श्री मणिप्रभाश्री जी म. सा. एवं पू० श्री शशिप्रभाश्री जी म. सा. आदि ठाणा ११ श्री जिनकुशल गुरुदेव के चमत्कारी स्थान मालपुरा के दर्शनार्थ गये।।
प्रियदर्शनाजी ने व विद्य तप्रभाश्री जी ने अक्षय तृतीया से वर्षीतप प्रारम्भ किया। .. पू० मणिप्रभाश्रीजी म. सा०, सौम्यगुणाश्रीजी एवं मृदुलाजी तीन ठाणा ने ज्येष्ठ मास में देवलिया की ओर विहार किया, क्योंकि वहाँ प्रतिष्ठा करवानी थी।
__ पू० श्री शशिप्रभाश्री जी म. सा. आदि तीन मांडोली यात्रा हेतु प्रस्थान कर गये। सम्यग्दर्शना जी आदि ठाणा ५ पुनः जयपुर आ गये ।
__ आषाढ़ बदी ४ को सम्यग्दर्शनाजी आदि ठाणा ५ को दिल्ली चातुर्मास हेतु प्रस्थान करवाया। आषाढ़ शुक्ला ३ को पू० प्रवर्तिनीजी, पू० श्री अविचलश्री जी म. सा. और प्रियदर्शनाश्री जी तीनों दादाबाड़ी आये। दूसरे दिन देवलिया प्रतिष्ठा कर पू० मणिप्रभाश्री जी म. सा. आदि पधार रहे थे तो गुरुवर्याश्री उन्हें लिवाने के लिए नीचे उतर कर पधारी। मणिप्रभाश्री जी ने कहा-महाराज साहिबा! मैं तो आपसे बहुत छोटी हूँ और आप मुझे लेने नीचे तक पधारी हैं। तब आपने फरमाया-यह आप लोगों का नहीं श्रामण्य का विनय है ।
कितनी विनम्रता है पूज्या प्रवर्तिनी जी म. सा० में ! उसी दिन स्वस्थ चित्त से आप स्थण्डिल पधारी। प्रियदर्शनाश्री जी साथ ही थीं। लौटी तो
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