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________________ ८२ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी होते रहे । भावनाधिकार में नरवर्म चरित्र का आख्यान किया । त्याग, तपस्या, नियम, प्रत्याख्यान अठाई और मासक्षमण भी हुए। चातुर्मास संपन्न कर दादावाड़ी पहुँचे, वहाँ विराजे । दस दिवसीय आध्यात्मिक शिक्षण शिविर खरतरगच्छ संघ की ओर से पू० प्रवर्तिनीजी को निश्रा में जून १९८५ में दस दिवसीय आध्यात्मिक शिक्षण शिविर का आयोजन किया गया जिसका संचालन विद्वद्वर श्री कुमारपालभाई ने किया एवं श्री ज्योतिकुमारजी व कमलकुमारजी का पूर्ण सहयोग रहा। लगभग २०० विद्यार्थी थे । सम्पूर्ण व्यवस्था बड़ी ही सुन्दर थी। ___ जयपुर चातुर्मास : सं० २०४२ गुरुवर्याश्री का यह चातुर्मास भी संघ के अत्याग्रह से जयपुर में हुआ। किन्तु प्रियदर्शनाजी आदि को बालोतरा भेज दिया और सम्यग्दर्शनाजी ठाणा ३ को जीवाणा । इसका कारण यह था कि जीवाणा निवासी श्री हस्तीमलजी बागरेचा की सुपुत्री भंवरी बागरेचा गुरुवर्याश्री की निश्रा में रहकर पिछले दो वर्षों से धार्मिक अध्ययन कर रही थी और उसकी दीक्षा की आज्ञा भी उसके परिवारीजनों से मिल चुकी थी । अतः चातुर्मास के बाद तुरन्त उसकी दीक्षा होना निश्चित हो गया था । इसीलिए बालोतरा और जीवाणा की ओर विहार करवाया गया था। जयपुर में गुरुवर्याश्री का चातुर्मास शानदार ढंग से शुरू हुआ। आपने आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन शस्त्र परिज्ञा की सारगर्भित विवेचना श्रोताओं को सुनाई। त्याग-तपस्या आदि से चातुर्मास सफल रहा। जीवाणा में प्रथम बार ही दीक्षा हो रही थी। हम लोगों ने बालोतरा चातुर्मास पूर्ण करके सिवाणा में पू० आचार्यश्री के दर्शन कर तथा पू० चम्पाश्री जी के दर्शन किये और दीक्षा के अवसर पर अपनी शिष्याओं को भेजने का आग्रह करके कच्चे रास्ते से जीवाणा के लिए रवाना हो गये। आचार्यश्री का स्वर्गगमन आचार्यश्री ने भी मिगसिर बदी ४ को सिवाणा से जीवाणा की ओर विहार कर दिया । मोकलसर, रमणिया होकर जैसे ही गुरुदेव मांडवला पहुँचे कि उनका स्वास्थ्य अस्वस्थ हो गया, शरीर काँपने लगा, बुखार चढ़ने लगा। धूजनी इतनी अधिक थी कि १० कम्बली ओढ़ाने पर भी कम्पन बन्द नहीं हुआ । गाँव छोटा होने से कोई बड़ा डॉक्टर नहीं था । सामान्य कम्पाउण्डर था, उसे ही बुलाया गया, उसने इंजेक्शन लगाया, कुछ राहत मालूम हुई । रात्रि को नींद आ गई। दूसरे दिन ६ बजे तबियत फिर बिगड़ने लगी । जालोर से बड़े डॉक्टर को बुलाने गये। डॉक्टर आता इससे पहले ही नवकार का उच्चारण करते हुए आचार्यश्री ने इस नश्वर देह का त्याग कर दिया। इस अनहोनी से सभी विस्मित हो गये, शोक में डूब गये। तार-टेलीफोन से समाचार पाते ही श्रद्धालुजनों की भीड़ उमड़ पड़ी। सभी के नेत्र आँसुओं से भरे थे। - अग्नि संस्कार की बोलियाँ १४ लाख रुपये की हुई और उसी स्थान पर विशाल गुरु मन्दिर निर्माण करवाने का निर्णय सर्व संघ ने ले लिया। कार्य निर्माणाधीन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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