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________________ ७२ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी आप तो हिम्मत की धनी हैं, पू. शशिप्रभाजी विवश होकर चुप हो गई। सभी ने विहार किया । केवल दो साध्वीजी-प. श्री शशिप्रभाजी म. सा. व अन्य एक साध्वी को अपने साथ रखा, बाकी सभी को सोजत विहार करा दिया । आप धीरे-धीरे चलती हुई ४-५ घण्टे में ४-५ किलोमीटर चलकर एक प्याऊ पर रुकीं । किन्हीं कारवालों ने अपको देखकर कार रोकी। आपकी पीड़ा को समझकर एक ट्यूब दी व पहिए का ग्रीस लगाने को दिया । इधर जैसे ही साध्वीजी सोजत पहुँची तो वहाँ के श्रावकों को जानकारी हुई । वे लोग तुरन्त ही एक लेडी डॉक्टर को मरहम पट्टी के साथ लेकर उसी प्याऊ पर पहुँचे । पट्टी वगैरह तथा आहार-पानी की व्यवस्था की। फिर भी सूजन तथा दर्द में कोई राहत न मिली। बहुत धीरे-धीरे चलकर तीन दिन में सोजत पहुंचे। वहाँ लगभग पन्द्रह दिन रुके । पाँव बिल्कुल ठीक हो जाने पर वहाँ से विहार करके ब्यावर अममेर पधारे । वहीं पर हम लोगों ने (प्रियदर्शनीजी, तत्वदर्शनाजी) गुरुवर्याश्री के दर्शन किये । वहाँ से पूज्याश्री व हम सबने पूज्या जैन कोकिला जी के दर्शनार्थ जयपुर की ओर प्रस्थान किया। जयपुर में प्रतिनीधीजी के दर्शन करके हम लोगों ने स्वयं को कृतकृत्य माना । पूज्या गुरुवर्याश्री ने जैन कोकिला से उस गाँठ के विषय में चर्चा की और देखा भी। बड़े बेर जितनी मोटी गाँठ थी। गुरुवर्याश्री ने जैन कोकिलाजी को करबद्ध होकर ऑपरेशन करवाने की प्रार्थना की तो प्रवर्तिनीश्री ने स्नेहसिक्त किन्तु दृढ़ शब्दों में कहा 'सज्जनश्री सा. ! मैं आपकी बात जरूर मान। पर मुझे उसमें सार तो नजर आये। मैंने देखा भी है और सुना भी है जिसने भी आपरेशन करवाया है और शेक लिया है। उसकी बीमारी बढ़ी है, कम नहीं हुई है । फिर यह तो कर्मों का कर्जा है, चुकाना ही पड़ेगा। इसे अभी चुकाना ही अच्छा है। इसलिए आप ऑपरेशन का आग्रह न करें । मैं किसी भी प्रकार उपचार नहीं करवाऊँगी। मेरा यही संकल्प है।' इस संकल्प के आगे कुछ भी कहने को न रहा । सभी विवश हो गये। चातुर्मास निकट आ रहा था। कई क्षेत्रों से विनतियाँ आई । अतः टोंक क्षेत्र में पू० श्री मणिप्रभाजी म० सा०, पू० श्री शशिप्रभाजी म० सा०, सम्यग्दर्शनाजी व विश्वा प्रज्ञाश्रीजी-इन चारों को प्रस्थान करवाया। मालपुरा में-श्री मुक्तिप्रभाजी म० सा०, पू० कमलाश्रीजी म. सा. व दिव्यदर्शनाजी आदि तीन, पू० मनोहरश्रीजी म० सा० के साथ जयश्रीजी आदि तथा दिल्ली में श्री निरंजनाश्रीजी काव्यप्रभाजी आदि चार । इस प्रकार निकट के क्षेत्रों में साध्वीजी को चातुर्मासार्थ प्रस्थान करवाया। प्र० महोदया जैन कोकिला विचक्षणश्रीजी म. की निश्रा में जयपुर चातुर्मास : सं० २०३५ पू० प्र० जैन कोकिलाजी ने पु० गुरुवर्याश्री को अपने ही पास रखा। साथ ही मुझे (प्रियदर्शनाजी) व तत्त्वदर्शनाजी को भी आपश्री की निश्रा में चातुर्मास करने का सौभाग्य मिला । पू० प्रवतिनीजी के साथ यह मेरा पहला चातुर्मास था। इस वर्ष पू० श्री जयानन्दजी म० सा० का चातुर्मास भी जयपुर ही था । आपत्री ने पू० गुरुवर्याश्री से आचारांग सूत्र का वाचन किया था । मध्यान्ह में श्रीमद् देवचन्द के 'आगमसार' पर स्वाध्याय, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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