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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति ७३ प्रश्नोत्तर आदि चलते थे जिसमें सर्व साध्वीजी के अतिरिक्त तत्वरसिक श्रावक-श्राविका भी भाग लेते थे । श्रीमद् देवचन्द्र चौबीसी के स्तवनों का अर्थ पू० प्रवर्तिनी महोदया बड़े सुन्दर रूप में समझाती थीं । स्वाध्याय और तत्वचर्चा करते हुए जयपुर का चातुर्मास सम्पन्न हुआ । चातुर्मास के उपरान्त पू० प्रवर्तिनीजी दादाबाड़ी पधार गये । टोंक चातुर्मास करके पू० मणिप्रभाजी म० सा० आदि और मालपुरा चातुर्मास करके कमलाश्रीजी म० सा० आदि गुरुवर्या के चरणों में आ पहुँचे । पू० मनोहर श्रीजी म० सा० आदि अलवर चातुर्मास करके जयपुर आ पहुँचे । सुरंजनाश्रीजी म० सा० के साथ प्रियदर्शनाजी व सम्यग्दर्शनाजी म० को प्रयाग सम्मेलन की परीक्षा हेतु अजमेर प्रस्थान 1 करवाया । पू० जयानन्दजी म० सा० दादावाड़ी की प्रतिष्ठा हेतु अलवर पधार गये । चैत्र मास में पू० श्री शशिप्रभाजी म० सा०, दिव्यदर्शनाजी व तत्वदर्शनाजी ने वर्षीतप प्रारम्भ किया, साथ ही कई गृहस्थ बहनों ने भी चालू किया । पूज्य श्री शीलवतीजी म० सा० का स्वास्थ्य उपचार के बाद भी गिरता ही जा रहा था । पू० प्रवर्तिनीजी तो दादाबाड़ी विराजित थीं; किन्तु शहर में विराजित पू० शीतल श्रीजी म० सा० के अस्वस्थ होने के कारण पू० गुरुवर्या श्री कभी दादाबाड़ी तो कभी शहर में आती जाती रहती थीं । हम लोग लगभग ५० साध्वीजी थे । उनमें से १०-१२ दादाबाड़ी में और बाकी शहर में रहती थीं । पू० प्रवर्तिनीजी ने अपने गिरते हुए स्वास्थ्य को देखकर पू० गुरुवर्या से पुण्यमंडल का कार्यभार संभालने को कहा । उत्तराधिकार सौंपा । (पूज्या विचक्षणश्रीजी म० के हस्तलिखित उत्तराधिकार पत्र की प्रतिलिपि पृष्ठ ७४ पर देखिए ।) जिस पर गुरुवर्या ने यथायोग्य शासनसेवा का वचन दिया । आषाढ़ महीने में पू० अनुयोगाचार्यजी पू० प्रवर्तिनी महोदया को दर्शन देने पधारे, सुख साता की पृच्छा की, दो दिन दादाबाड़ी में रुके और फिर प्रस्थान करके उग्र विहार करते हुए बाड़मेर पहुँचे । पू० श्री शीतलश्रीजी म० सा० का स्वास्थ्य गम्भीर हो गया । उन्हें त्याग-प्रत्याख्यान आदि सभी करवा दिये । पाठ- सज्झाय - नवकार मंत्र की धुन सुनते हुए आषाढ़ बदी १० को २ बजे उनका नश्वर शरीर छूट गया । यद्यपि पूज्या प्रवर्तिनी का स्वास्थ्य गम्भीर होता जा रहा था किन्तु अजमेर वाले चातुर्मास के लिए अड़े हुए थे । अतः इच्छा न होते हुए भी प्रवर्तनीजी ने गुरुवर्याजी को अजमेर चातुर्मास की आज्ञा दे दी । गुरुआज्ञा को शिरोधार्य कर पू० गुरुवर्याजी ने अपने साध्वीमंडल के साथ अजमेर की ओर विहार किया । अजमेर चातुर्मास : सं० २०३६ अजमेर पहुंचे। बड़े उल्लासपूर्वक दादा मेला मनाया गया। गुरुवर्या ने श्रद्धांजलि रूप एक गीतिका बनाई जिसे हम सभी ने पूजा में गाई । दूसरे दिन धूमधाम से नगर प्रवेश हुआ । प्रतिदिन बड़े उपाश्रय में व्याख्यान होता था । उपस्थिति अच्छी होती थी । मध्यान्ह में चौपो प्रियदर्शनाजी बांचती थीं । श्राविकाओं ने उत्साहपूर्वक पंचरंगी प्रारम्भ की। सम्यग्दर्शनाश्रीजी ने भी पंचरंगी में शरीक खण्ड १ / १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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