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खण्ड १ | जीवन ज्योति
सूरत से प्रियदर्शनाजी आदि साध्वीजी भी आ गये । उल्लासपूर्वक प्रभु की स्तवना, भक्ति आदि करते हुए ३-४ दिन तक वहीं रहे।
वहाँ से सिद्धपुर, पालनपुर आदि तीर्थों की यात्रा करते हुए माउन्ट आबू पहुँचे ।
माउण्ट आबू के शिखरबद्ध मन्दिर विश्वविख्यात हैं। बड़ी अनुपम कोरनी (कारीगरी) की गयी है। दौरानी-जिठानी के आले अत्यन्त सूक्ष्म किन्तु सुन्दर कोरनी से युक्त हैं। हमने सभी मन्दिरों के दर्शन किये। सनसेट पाइन्ट, नक्की झील आदि कई दर्शनीय स्थान हैं, जिन्हें देखने टूरिस्ट आते हैं।
वहाँ से और आगे अचलगढ़ गये। वहाँ बड़ी विशाल भव्य स्वर्णप्रतिमाएँ चौमुखजी के रूप में हैं। वहीं योगिराज श्री शान्तिगुरुदेव का स्थान है। वहाँ से पुनः माउण्ट आबू आकर हम लोग अणादरा (जो योगिराज की जन्मभूमि है) की घाटी से, जो बड़ा ही पथरीला मार्ग है, नीचे उतरे।
वहाँ से सिरोही जावाल आदि होते हुए बसन्त पंचमी (योगिराज का जन्म दिवस) के दिन मांडोली आये । इस दिन वहाँ बड़ा भारी मेला लगता है, स्वामीवात्सल्य होता है. पूजा पढ़ाई जाती है।
यहीं पर ४-५ व्यक्ति सिवाणा पधारने की विनती लेकर आये । समाचार दिया-पूज्या श्री चम्पाश्रीजी म. सा. यहीं ठाणापति विराजित हैं। उन्हीं की निथा में और पूज्यश्री तीर्थसागरजी म. सा. व कैलाशसागरजी म. सा. के हाथों ८ साध्वीजी की बड़ी दीक्षा का आयोजन है, सूर्यप्रभाजी ने भी मासक्षमण करने का निश्चय किया है, समुदायाध्यक्षा का भी यही आदेश है; अतः शीघ्र पधारें।
हमको भी उधर जाना था, अतः आश्वस्त करके विदा कर दिया।
मांडोली से विहार कर जालौर तीर्थ पहुँचे। वहाँ स्वर्णगिरि पर्वत पर ५ विशाल मन्दिर हैं । हम नंदीश्वर द्वीप की धर्मशाला में ठहरे। दूसरे दिन ऊपर चढ़े, सभी मन्दिरों के दर्शन किये, नीचे आये । दो दिन रुके। सिवाणा की ओर प्रस्थान किया। विशनगढ़, बालवाडा, रमणिया, मोकर हए ५-६ दिन में सिवाणा पहुँच गये।
सिवाणा में निर्णीत दिन बड़ी धूमधाम से बड़ी दीक्षाएँ हुईं। दीक्षार्थिनियों के पारिवारीजन तथा अन्य भी बहुत से लोग आये। अभी १५ दिन के दशवकालिक योग अवशिष्ट थे । अन्य कई साध्वीजी के १५ दिन के योग बाकी थे। अतः पूज्या श्री शशिप्रभाजी, मैंने (प्रियदर्शनाजी ने), जयश्रीजी व सम्यग्दर्शनाजी ने दशवैकालिक योग इन लोगों के साथ ही प्रारम्भ कर दिये । बड़ो शान्ति से योगोद्वहन पूर्ण हुए। लगभग सवा महीने हम लोग यहाँ रुके।
वहाँ से पूज्याश्री आदि सर्व गौड़वाड़ की पंचतीर्थी-नाडोल, नाडलाइ, राणकपुर, वरकाणा, मूछाला महावीरजी आदि की यात्रा करते हुए पाली पहुँचे ।
पाली विराजित पूज्याधी अनुभवश्रीजी म. सा. के दर्शन-वन्दन कर एक दिन विश्राम किया। तदुपरान्त सोजत की ओर विहार किया। मार्ग में बागावास के स्कूल में रात्रि विश्राम किया। यह स्थान सोजत से १३ किमी. दूर है।
प्रातः कुछ अंधेरा था । गुरुवर्याश्री स्थंडिल के लिए जैसे ही गेट से बाहर पधारे कि लकड़ी आदि बीच में आ जाने से गिर गये । घुटनों में काफी चोट आई। साथ वाले साध्वीजी ने दवाई आदि लगाने का आग्रह किया पर आप स्थण्डिल चली ही गईं। लौट आने पर देखा तो गौड़े (जाँघे) छिल गये थे । दवा आदि लगाई, कुछ राहत मिली तो चलने को प्रस्तुत हो गईं। प . शशिप्रभाजी ने बहुत मना किया पर
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