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________________ खण्ड १ | जीवन ज्योति जौहर स्थान भी यहीं है । हमने इन सबको देखा । ऐतिहासिक स्थान को प्रत्यक्ष देखकर हृदय गौरव से भर गया। दो-तीन दिन रुके । करेड़ा पार्श्वतीर्थ-चौथे दिन विहार किया। करेड़ा पार्वतीर्थ पहुँचे । भ० पार्श्वनाथ के विशाल शिखरबद्ध मन्दिर के दर्शन किये । धर्मशाला, भोजनशाला आदि सभी सुव्यवस्थित है। यहाँ से उदयपुर पहुँचे । राजस्थान का यह दर्शनीय स्थल है । देश-विदेश के टूरिस्ट आते हैं। यहाँ कई विशाल मन्दिर हैं । सूर्य पोल के बाहर ही भावी तीर्थंकर पद्मनाभ का विशाल मन्दिर है, जिसमें प्रतिमा भी विशाल है । दो-तीन दिन रुके । सभी मन्दिरों के दर्शन किये। दूर-दूर के कुछ मन्दिर रह भी गये । सोचा था—केशरियानाथजी से लौटकर पुनः उन मन्दिरों के दर्शन कर लेंगे । क्योंकि इधर आकर हमें पुनः आबू, मांडोली आदि तीर्थों की यात्रा करनी थी । अतः केशरियानाथजी की ओर विहार किया। __ केशरियानाथ-इसका मार्ग पर्वतीय क्षेत्रों में होकर है। काफी उतार-चढ़ाव हैं। उदयपुर से सांवलाजी तक तीखे मोड़ोंयुक्त घाटी है, भूमि ढालू है । इस घाटी को खजूरी घाटी भी कहा जाता है। केशरियानाथ का नाम ऋषभदेव भी है। किलोमीटर के स्टोन पर भी यही नाम लिखा है। चौथे दिन केशरियानाथ पहुँचे, गुरुवर्याश्री की भावना आज सफल होने से वे बहत प्रसन्न थीं। तीर्थ की प्राचीनता प्रतिमाजी और मन्दिर से स्पष्ट परिलक्षित हो रही थी। जैन और नैष्णवों के विवाद के कारण तीर्थ सरकार के हाथ में है। लेकिन देखने वाला कोई नहीं है । भ० ऋषभदेव को हिन्दू अपना आठवाँ अवतार मानते हैं। रोज गीता-रामायण का पारायण होता है । पर मन्दिर की दशा की ओर ध्यान नहीं । गभारा एकदम काला हो रहा है। भगवान की ऐसी आशातना देखकर दुःख हुआ। व्यवस्थापकों व पुजारियों से इस विषय में बातचीत भी की लेकिन सुपरिणाम निकलने की कोई आशा नहीं दिखाई दी। यहाँ से यद्यपि पुनः उदयपुर लौटने का विचार था लेकिन जैसे ही मालूम हुआ कि अहमदाबाद बहत समीप है तो पालीताना, गिरनार आदि पंचतीर्थी करने की भावना जाग उठी । गुरुवर्याश्री की इच्छा थी गिरिराज शत्रुजय की नवाणु यात्रा और वहीं चातुर्मास करने की । अतः कदम उसी ओर बढ़ गये। मुहरीपार्श्वतीर्थ-मार्ग में मुहरीपार्वतीर्थ आया । इसके लिए मेन रोड़ छोड़कर कुछ अन्दर जाना पड़ता है। तीर्थ में पहुँचे । विशाल मन्दिर और भव्य प्रतिमा के दर्शनों से चित्त आनन्द से भर गया । 'जयउसाभिय' चैत्यवंदन सूत्र के पाठ 'मुहरिपास दुहदुरिय खंडण' से इसकी प्राचीनता स्पष्ट होती है। वर्तमान में यह तीर्थ टिटोइ ग्राम के नाम से प्रसिद्ध है। मार्गस्थ तीर्थों की यात्रा करते हुए अहमदाबाद पहुँचे । अहमदाबाद-यह जैनों की धर्म नगरी है । ३००-३५० जिनमन्दिर हैं। कई भव्य बड़े विशाल शिखरबद्ध तो कई छोटे । लेकिन छोटों में भव्य और चित्ताकर्षक प्रतिमाएँ हैं । दर्शन करके मन तृप्त हो गया । नये मन्दिरों-धर्मशालाओं आदि का निर्माण भी हो रहा है। इतने मन्दिर होने पर भी सभी सुव्यवस्थित हैं । जिस मन्दिर में जाओ ५-५० भक्त पूजा करते हुए मिल ही जायेंगे। अहमदाबाद में ८ दिन रहकर हमने सभी मन्दिरों के दर्शन किये । और फिर पालीताणा की ओर विहार कर दिया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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