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________________ जीवन ज्योति : साध्वी शशिप्रभाश्रीजी पालीताणा-यह शाश्वत तीर्थराज शत्रुजय जी की तलहटी में बसा है । यहाँ के तीर्थनायक प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव हैं । वे नवाणु बार इस तीर्थराज पर पधारे थे । नेमिनाथ के अतिरिक्त २३ तीर्थंकरों के चरण-कमल इस पर पड़े थे और भ० अजितनाथ तथा श्री शांतिनाथ ने यहाँ चातुर्मास भी किया था। पाँचों पांडवों की मोक्षस्थली भी यही है। यहाँ का कण-कण पवित्र है। ऐसी पावन स्थली का श्रद्धा से किया गया स्पर्श भी कोटि जन्मों के पापों का नाश करने वाला है। यहाँ पर किये गये पुण्यों का दस गुना फल होता है । पापी और अभव्य तो इसके दर्शनकर ही नहीं सकता। कहा है पापी अभव्य न नजरे देखे"...... फाल्गुन कृष्णा २ को हमने इस तीर्थ में पदार्पण किया, रोम-रोम पुलकित हो उठा, 'शत्रुजय रास' की कड़ियाँ (पंक्तियाँ) मन-मानस में उमड़ने लगीं। नरशीनाथ, नरशीकेशव के दर्शन करते हुए हरि विहार धर्मशाला पहुँचे । पू. अनुयोगाचार्य श्रद्धय गुरुदेव वहीं विराज रहे थे। विधिपूर्वक दर्शनवन्दनादि किये । गुरुदेव ने वहीं रुकने का आग्रह किया परन्तु हमें तो नवाणु यात्रा करनी थीं । अतः तलहटी के अत्यन्त निकट हैदराबाद निवासी श्रीमान कपूरचन्दजी श्रीमाल के कपूर निवास की ओर चल दिये । मध्य में माधवलाल धर्मशाला में विराजित सम्पतश्रीजी म. सा., गुणवानश्रीजी म. सा. आदि साध्वियों के दर्शन करते हुए कपूर निवास पहुँच गये। गरुवर्याश्री के नवाणु यात्रा के निश्चय को सुनकर हम लोग चकित रह गई। ६७ वर्ष की आयु और साढ़े तीन माईल की चढ़ाई। कैसे सम्भव हो सकेगा यह संकल्प पूर्ण ! पर सभी के मन में भक्ति भरा भावोल्लास था और गुरुवर्याश्री के मन में तो सबसे अधिक । - प्रातः ५ बजे चढ़ना, शांतिपूर्वक दर्शन, चैत्यवन्दन, देव वन्दन करना और ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे तक उतरना । यही क्रम चलता था। कभी-कभी घेटी पात्र भी पधारी, पर अधिक बार नहीं, क्योंकि इधर चढ़ाई खड़ी थी। इसी अन्तराल में श्री अनुयोगाचार्य जो के पास ८ वर्षीय वैरागी मुकेश कुमार जो पाँच-सात महीने से गुरुदेव के पास हो रह रहे थे, उनकी दीक्षा फाल्गुन शुक्ला ३ को समारोहपूर्वक हुई और उन्हें पू. श्री मुक्तिप्रभसागरजी नाम दिया । पूज्यात्री ज्ञानश्रीजी महाराज साहब के स्वर्गदिवस चैत्र कृष्णा १० को सूरत निवासी श्री फतेचन्द पान चन्द भाई की ओर से मोती सुविया मन्दिर में बड़ी पूजा पढ़ाई। प्रभावना, रात्रि जागरण आदि सभी उन्हीं की ओर से था। फतेचन्द भाई ने. चातुर्मास कल्याण भवन में ही करने का अत्याग्रह हम से किया। नव्वाणु यात्रा के विधान के अनुसार पूज्या शशिप्रभाजी तथा अन्य छोटे साध्वी जी के तो लगभग नवाणु यात्रा हो चुकी थी। दूसरी भी करीब पूरी पूरी होने जा रही थी। पूज्या गुरुवर्या श्री की १०८ यात्रा पूरी होने जा रही थी। हमें अत्यधिक प्रसन्नता थी कि पूज्याश्री का संकल्प पूर्ण हो रहा है। वे प्रतिदिन बहुत ही भक्तिभाव तथा उत्साहपूर्वक दर्शन करती थीं। ___ चातुर्मास बिल्कुल ही निकट था। पू. श्री शशिप्रभाजी म. सा. यद्यपि एक मासक्षमण अपनी जन्मभूमि फलौदी में कर चुकी थीं परन्तु पुनः गिरिराज की छाया में मासक्षमण की तीव्र भावना हुई। मैंने भी मासक्षमण की भावना व्यक्त की। चातुर्मासिक चतुर्दशी के दिन भी प्रतिदिन के समान गिरिराज पर चढ़े । आज अन्तिम दिन था । अन्य दिनों में तो कल पुनः चढ़ेंगे ऐसी ललक रहती थी। किन्तु आज की बात दूसरी थी। चार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012028
Book TitleSajjanshreeji Maharaj Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShashiprabhashreeji
PublisherJain Shwetambar Khartar Gacch Jaipur
Publication Year1989
Total Pages610
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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