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________________ वंदन-अभिनंदन! विश्लेषण आपके श्री मुख से श्रवण कर सन्तोष की प्राप्ति । सच तो यह है कि आपके गौरवपूर्ण पुरुषार्थी जीवन हुई। अपने आप को कृतार्थ माना। साधारण तौर पर मैं | के लिए - “दीक्षा-स्वर्ण-जयन्ति” अभिनन्दन - अलंकरण जैन साहित्य से परिचित होने पर भी उसके मर्म से सर्वथा | वन्दन आदि नगण्य हैं। आपकी सत्यान्वेषी दृष्टि में भौतिक अनभिज्ञ थी। आप श्री में मैंने मर्मभेदिनी दृष्टि व कल्याण | अलंकरण क्षणभंगुर हैं। आपके जीवन की सार्थकता कारिणी वाणी का सतत प्रवाह देखा। आपकी सार्वभौम | अध्यात्म आभूषण सम्यक्ज्ञान - दर्शन-चारित्र हैं। जिसकी कृपा की छत्रछाया में जैन जैनेतर विद्वान, तार्किक, दार्शनिक, | निरन्तर साधना के उनपचास वर्ष पूर्ण हो गए। आप साधक, शिष्य, जिज्ञासु सभी दर्शनार्थी निर्भय हो मार्गदर्शन | हिन्दी, प्राकृत, संस्कृत, अंग्रेजी, गुजराती व पंजाबी भाषाओं पाते हैं, आप सतत् हमारी सुषुप्त चेतना को जागृति की। पर विशेषाधिकार रखते हैं। प्रतिक्रमण व अन्य विषयों प्रेरणा देते रहते हैं। पर छोटी-छोटी पुस्तिकाओं के माध्यम से जिन प्ररूपित संदेशों को जन-जन में पहुँचाया है। गुरु श्री सदा शुद्ध गुरुवर के विराजित स्थान से मेरा आवास स्थल जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। आप श्री आहार-संस्कृतकाफी दूरी पर है। संयोग की बात है आज मुझे घर विचार व शुद्धाचार से मानव मन का श्रृंगार करने में, गृहस्थी की कुछ आवश्यक वस्तुओं के क्रय हेतु साहूकारपेठ आना पडा। शभ अवसर सोच. गरुदर्शन लोभ जीवन को सार्थक करने में सदैव अहर्निश प्रयत्नशील हैं। संवरण नहीं कर पाई। कदम किसी अनजान शक्ति से ऐसे पतित पावन पुण्यात्मा के श्री चरणों में, मेरा प्रेरित हो, खुद-ब-खुद स्थानक पहुँचकर ही तृप्त हुए। | भाव भीना शत् - शत् वन्दन ! नमन !! सूक्ष्म तत्त्वचिन्तनयुत आप श्री का व्याख्यान चल रहा था। आज आप ने चित्त की स्वस्थता का जो अखूट श्रीमती विजया कोटेचा खजाना बताया उसे मैं कभी विस्मृत नहीं कर सकती। अम्बत्तुर, चेन्नई जिनवाणी के अनमोल मोती श्री मुख से बरस रहे थे “क्रोध को मारना नहीं, उस पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। | संयम के महासाधक | व्यक्ति को बाह्य एवं आभ्यन्तर कैसी भी विकट परिस्थिति हो, वैचारिक संघर्ष हो, धैर्य का दामन थामे रखना चाहिए। श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री पण्डितरत्न श्री सुमनमुनिजी व्यक्ति ऊँचे आसन पर बैठने से महान नहीं बनता, को सादर चरण वन्दन ! महानता गुणों से प्राप्त होती है।" जब गुरुदेव मंगलपाठ सुना चुके तब मेरे पड़ोस में खड़ी सुश्राविका ने कहा “ये सुमन प्रव्रज्या के अवलोकन से आपके श्रमण जीवन मनुष्य नहीं कोई विलक्षण महापुरुष हैं।" ज्ञान का अगाध की झलकियां मिली। सर्वप्रथम मैं दीक्षा-जयन्ति के उपलक्ष महासागर है। महामानव, परहित चिन्ता एवं करुणापरायण में शत-शत बधाई देता हूँ। प्रवृत्ति द्वारा अपने जीवन को जंगम तीर्थ स्वरूप बना लेते आपश्री श्रमण संघ के सुरभित पुष्प हैं और आप श्री हैं। सद्गुणों से सुवासित आपका जीवन गुलशन बहार के ज्ञान-दर्शन-चरित्र की महक दिन-प्रतिदिन प्रसरित होती है। तभी तो यह सुवास सम्प्रदायों की सीमा लांघकर चारों रहे-यही मंगलकामना है। ओर फैल रही है। दुर्लभता से प्राप्त जीवन में अध्यात्म की सही राह बताकर आपने जो उपकार किया है उसे व्यक्त __ आपने अपने प्रवचनों द्वारा ही नहीं अपितु साहित्य करने में मेरी लेखनी सक्षम नहीं। और संयमी जीवन द्वारा भी जन-जन के हृदय में अमिट ५५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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