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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि ( विराट् व्यक्तित्व के घनी) छाप अंकित कर दी है। आप के व्यक्तित्व में सरलता, | ज्ञान दिया तथा उन्हें और अधिक धर्म की ओर अभिमुरव दूरदर्शिता और चुम्वकीय आकर्षण है कि आप सभी को किया। आबाल, वृद्ध, अमीर एवं गरीब कोई भी आये, 'अपने ही' विदित होते हैं। सभी के लिए द्वार खुले हैं। यह उदारमना संत समान मैं आपकी दीर्घाय की कामना करते हुए आपके | भाव से सबको ज्ञान दान प्रदान कर रहा है। अतः हम श्रमण संघ के लिए किये गये कार्यों का स्मरण करता सभी आपके ऋणी है। हुआ दीर्घकाल तक आपके नेतृत्व की आकांक्षा रखता अनुभवी एक उक्ति है - संयम के महासाधक को वन्दन ! नमन !! "जहाँ नहीं पहुंचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि" भावभीना स्वीकारो मम अभिनन्दन !! जहां नहीं पहुंचे कवि, वहाँ पहुँचे अनुभवी"! 0 जगदीशचन्द्र जैन 'भ्राता' यह उक्ति आप पर अक्षरशः चरितार्थ होती है। लुधियाना आपके पास अनुभव का अनमोल खजाना है। आपके मुखारविन्द से जब अनुभव का अमृत छलकता है तो श्रोताओं को लगता है कि वे घटना के अन्तस्थल में या बात के हार्द में ही गोते लगा रहे हो। आपके कथनोपकथन परम श्रद्धेय श्रमणसंघीय सलाहकार मंत्री मुनि श्री का तरीका इतनी तन्मयता लिए हुए है कि श्रोताओं की सुमनकुमार जी म. सा. श्रमणसंघ के ज्योतिर्धर संत हैं। जिज्ञासा निरंतर बनी रहती है कि गुरुदेव अब क्या आपने अपने प्रवचन एवं तत्त्वज्ञान की छटा से दक्षिण कहेंगे, अब क्या कहेंगे। हे अनुभव अमृत प्रसाद वितरित प्रांत के श्रद्धालुओं का मनहरण कर लिया है। इससे पूर्व करने वाले अनुभवी संत ! आपको सश्रद्ध नमन-वंदन !! मैं केवल आपके नाम से परिचित था, किन्तु साक्षात् दर्शन सच्चे धर्म प्रसारक के पश्चात् लगा के यह संत विराट् प्रतिभा का धनी, कुशल नीतिज्ञ, एवं जैन धर्म का सच्चा निष्ठावान प्रचारक ___ आपश्री धर्म-दलाली करने में सिद्धहस्त हैं। व्यापारी है। स्पष्ट वक्ता, निडर, दृढ़ प्रतिज्ञ एवम् सरलमना के जैसे व्यापार की कला में निपुण होता है, इसी प्रकार आप साथ-साथ जीवन की साधना का मर्मज्ञ तथा अनुभवी हैं। भी धर्म-व्यापार में कुशल है। चातुर्मास एवं पर्दूषण पर्व में मैंने सलाहकार मंत्री श्री सुमनकुमारजी को जैसा देखा वैसा मैंने देखा कि आप श्री अपने प्रवचनों के माध्यम से श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाओं को धर्म करने की निरंतर ही उनका जीवन आलेखित करने का प्रयास कर रहा हूँ। प्रेरणा देते रहते थे। समय समय पर आडम्बर एवं कुरीतियों उदारता पर प्रहार करने से भी नहीं चूकते। आप कहा करते आप श्री अत्यन्त उदारमना है। उदारता के साथ थे- “धर्म एवं तपश्चरण आत्मा को पवित्र एवं निर्मल आप ज्ञान दान देते रहते हैं। किंचित् भी अनुदारता नहीं बनाने के लिए है फिर धर्म में यह आडम्बर क्यों ? है- हृदय में। जो भी इन चरणों में आया, उसने ज्ञान तपश्चरण के पीछे तामझाम क्यों ? तप तो अपने आपको ध्यान पाया है। आपने श्रावक-श्राविकाओं को तत्त्वों का | विशुद्ध बनाने की प्रक्रिया है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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