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________________ जैन संस्कृति का आलोक किसी भी मूल्य पर बेचने को तैयार नहीं होगा, वह आँखों विश्व में पचास करोड़ कारें, लाखों दुपहिये वाहन, करोड़ों को अमूल्य मानता है। परन्तु वही मनुष्य चक्षु इन्द्रिय के कारखानों में अरबों टन पैट्रोल जलाया जा रहा है, जिससे सुख भोग के वशीभूत हो टेलीविजन, सिनेमा, आदि अधिक पेट्रोल के भंडार खाली होते जा रहे हैं इससे एकदिन भावी समय देखकर अपनी आँखों की शक्ति क्षीण कर देता है, पीढ़ियों के लिए कुछ भी नहीं बचेगा। इस प्रकार पेट्रोल वह अपनी आँखों की अमूल्य प्राण शक्ति को हानि पहुँचा तथा लोहा आदि धातुओं का दोहन तथा इनसे पैदा होने कर अपना ही अहित कर लेता है। यही बात कान, जीभ वाला जल-वायु प्रदूषण व तापमान वृद्धि का दुष्प्रभाव - ये आदि समस्त इन्द्रिय के प्राणों के प्राणातिपात पर होती है। सब भावी पीढ़ियों के लिए अभिशाप बनने वाले हैं। जैन धर्म में पृथ्वी, पानी, हवा तथा वनस्पति में जीव माना है, इन्हें प्राण माना है, इन्हें विकृत करने को इनका। ___ अप्काय का प्राणातिपात प्रदूषण प्राणातिपात माना है परन्तु मनुष्य अपने सुख-सुविधा संपत्ति जल में अन्य पदार्थ मिलने से अप्काय के प्राण का के लोभ से इनका प्राण हरण कर इन्हें निर्जीव, निष्प्राण हरण होता है यही जल प्रदूषण है, वर्तमान काल में धन प्रदूषित कर रहा है यथा - कमाने के लिये बड़े-बड़े कारखाने लगे हैं, उनमें प्रतिदिन पृथ्वीकाय का प्राणातिपात-प्रदूषण करोड़ों अरबों लीटर जल का उपयोग होता है वह सब जल प्रदूषित हो जाता है, रसायनिक पदार्थों के संपर्क से, कृषि भूमि में रासायनिक खाद एवं एन्टीवायोटिक नगर के गंदे नालों का जल मल-मत्र आदि गंदगी से दषित दवाए डालकर भूमि का निजाव बनाया जा रहा है जिसस होता जा रहा है। यह दूषित जल धरती में उतर कर उसकी उर्वरा शक्ति/प्राणशक्ति नष्ट होती है। परिणाम कँओं के जल को तथा नदी में गिरकर नदी के जल को स्वरूप भूमि बंजर हो जाती है फिर उसमें कुछ भी पैदा दूषित करता जा रहा है। तथा दूषित जल के कीटाणुओं नहीं होता है। का नाश करने के लिये पीने के पानी की टंकियों में भूमि का दोहन करके खाने खोदकर, खनिज पदार्थ, । पोटिशियम परमेगनेट मिलाया जा रहा है जो स्वास्थ्य के लोह, तांबा, कोयला, पत्थर आदि प्रति वर्ष करोडों टन लिये अहितकर है। नलों से भी जल का बहुत अपव्यय निकाला जा रहा है उसे निर्जीव बनाया जा रहा है तथा होता है। यह सब जल का प्रदूषण ही है। जैन धर्म में उसे कौड़ियों के भाव विदेशों को - अपने देश में उपभोग एक बूंद जल भी व्यर्थ ढोलना पाप तथा बुरा माना गया की वस्तुएँ प्राप्त करने के लिये विदेशी मुद्रा अर्जन करने है। अतः धर्म के सिद्धान्तों का पालन किया जाय तो जल के लिये बेचा जा रहा है। भले ही इस भूमि दोहन से के प्रदूषण से पूरा बचा जा सकता है। भावी पीढ़ियों के लिये वह खनिज पदार्थ न बचे कारण कि खनिज पदार्थ नये निर्माण नहीं हो रहे हैं। और भावी वायुकाय का प्राणातिपात-प्रदूषण पीढ़ियाँ इन पदार्थों के लिये तरस-तरस के मरें, अपने वायु में विकृत तत्व मिलने से वायु काय के प्राणों पूर्वजों के इस दुष्कर्म का फल अत्यन्त दुखी होकर भोगें। का अतिपात होना है। यही वायु प्रदूषण है। बड़े कारखानों इस बात की चिन्ता वर्तमान पीढ़ी व सरकारों को कतई की चिमनियों से लगातार विषैला धुआं निकल कर वायु नहीं है। यही बात पैट्रोलियम पदार्थों पर भी घटित होती को दूषित करता जा रहा है, करोड़ों, कारखानों में विषैली है उसका भी इसी प्रकार भयंकर दोहन हो रहा है। आज गैसों का उपयोग हो रहा है वे गैस वायु में मिलकर वायु | जैनागम : पर्यावरण संरक्षण १६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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