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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि में निहित प्राणशक्ति को क्षय कर रही है। इस प्रदूषण के उनका दूषित प्रभाव बढ़ता जा रहा है जो स्वास्थ्य के प्रभाव से ध्रुवों में ओजोन परत भी क्षीण हो गई है उसमें लिये अति हानिकारक है एवं पोष्टिक तत्व का, विटामिन, छेद होते जा रहे हैं जिसमें सूर्य की हानिकारक किरणें प्रोटीन, क्लोरी का भी घातक है। यही कारण है कि सीधे मानव शरीर पर पड़ेगी जिसके फलस्वरूप केंसर अमरीका में रासायनिक खाद से उत्पन्न हुए गेहूँ के भाव से आदि भयंकर असंख्य असाध्य रोगों का खतरा उत्पन्न हो बिना रासायनिक खाद में उत्पन्न हुए गेहूँ का भाव आठ जाने वाला है। वायु प्रदूषण से नगरों में नागरिकों को गुना है। श्वास लेने के लिये स्वच्छ वायु मिलना कठिन हो गया है दम घुटने लगा है, जिससे दमा/क्षय आदि रोग भयंकर त्रसकाय प्राणातिपात रूप में फैलने लगे हैं। जैन धर्म में इस प्रकार के वायु के दो इन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव तथा . प्राणातिपात को, प्रदूषण को पाप माना है। केंचुए, चींटि, मधुमक्खी भौरे, चूहे, सर्प, पक्षी, पशु आदि । चलने फिरनेवाले जीव त्रसकाय कहे जाते हैं। इन जीवों वनस्पति काय प्राणातिपात-प्रदूषण की उत्पत्ति प्रकृति से स्वतः होती है तथा संतुलन भी बना जैनागम आचारांग सूत्र के प्रथम अध्ययन में वनस्पति । रहता है। ये सभी जीव फसल का संतुलन बनाये रखने में की मलीनता की तुलना मनुष्य जीवन से की है जैसे मनुष्य सहायक होते हैं। केंचआ भमि की उर्वरा शक्ति बढाता का शरीर बढ़ता है, खाता है उसी प्रकार वनस्पति भी है। आज दवाईयों से इन जीवों को मार दिया जाता है बढ़ती है, भोजन करती है। वर्तमान में वनस्पतिकाय का जिससे पैदावार में असंतुलन हो गया है तथा जीवों की प्राणातिपात भयंकर रूप से हो रहा है। लकड़ी के प्रलोभन अनेक प्रजातियाँ लुप्त हो गई है। से जंगल/वन कटे जा रहे हैं। पहले जहाँ पहाड़ों पर व जैन धर्म में उपर्युक्त सब प्रकार के जीवों के प्राणातिपात समतल भूमि पर घने जंगल थे, जिनमें होकर पार होना करने रूप प्रदूषणों के त्याग का विधान किया गया है। कठिन था, जिन्हें अटवी कहा जाता था उनका तो आज नामोनिशां ही नहीं रहा। जो जंगल बचे हैं और जिन वनों यदि इस व्रत का पालन किया जाय और पृथ्वी, जल, वायु, वनस्पति आदि को प्रदूषित न किया जाय, इनका को सरकार द्वारा सुरक्षित घोषित किये गये हैं उन वनों में हनन न किया तो मानव जाति प्राकृतिक प्रदूषणों से सहज भी चोरी छिपे भयंकर कटाई हो रही है। इसका प्रभाव ही बच सकती है। फिर पर्यावरण के लिए तो किसी भी जल-वायु पर पड़ा है। इनके कट जाने से आर्द्रता कम हो कानून बनाने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी इस प्रकार से गई जिससे वर्षा में बहुत कमी हो गई है। वन के घने अहिंसा पालन से पर्यावरण की समस्त समस्याओं का जंगलों में लगे वृक्ष प्रदूषित वायु का कार्बन डाई आक्साईड समाधान संभव है। ग्रहण कर बदले में आक्सीजन देकर वायु को शुद्ध करते थे वह शुद्धिकरण की प्रक्रिया अति धीमी हो गई है। २. मृषावाद विरमण फलतः वायु में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है जो मानव जाति दूसरा व्रत है - झूठ का त्याग। अर्थात् जो वस्तु के स्वास्थ्य के लिये अति हानिकारक है। जिस गुण, धर्म वाली है उसे वैसी ही बताया जाय । आज रासायनिक खाद एवं कीट नाशक दवाईयों के डालने चारों ओर व्यापार में मृषावाद का ही बोलबाला है। से कृषि उपज में अनाज, फल, फूल, दालों की संरचना में उदाहरण के लिये रासायनिक खाद दीर्घ काल की उपज १६६ जैनागम : पर्यावरण संरक्षण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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