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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि में मठ की स्थापना कर जैन धर्म की काफी रक्षा की थी। धर्म के ग्रंथ उत्तमोत्तम है। ऐसे महत्वपूर्ण ग्रंथ अन्य धर्म न जाने उत्तर भारत में भट्टारक परंपरा क्यों खत्म कर दी। में नहीं है। इसका उदाहरण नीलकेशी, जीवकचिंतामणि, गई? यह समझ में नहीं आता। कुछ न कुछ कारण मेरुमंदर पुराण आदि हैं। जैन लोगों की अपेक्षा अजैन अवश्य होना चाहिए। लोग इन्हें चाव से पढ़ते हैं। इसमें सब तरह का महत्व तमिलप्रांत की प्रथा यह है कि जैनियों के लड़के भरा पड़ा है। लड़कियों को पहले-पहले भट्टारकों से ही पंच नमस्कार यहाँ का मौसम बड़ा अनुकूल है। यहाँ न तो गर्मी महामंत्र का उपदेश लिया जाता है। लड़कों को पंच है, न सर्दी। सम शीतोष्ण है। आश्विन-कार्तिक बरसात नमस्कार मंत्रोपदेश देते समय जनेऊ पहनाया जाता है। का मौसम है। यहाँ पर अधिकतर धान और मूंगफली जनेऊ का प्रचार यहाँ अब तक चलता आ रहा है। कुछ पैदा होती है। गन्ना भी पैदा किया जाता है। यहां के नौजवान लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। दुबालकृष्णप्प लोगों का मुख्य खाना चावल है। कभी-कभी गेहूँ का नायकन के जमाने में सारे के सारे जैन अजैन हो गये। उपयोग किया जाता है। हल्का खाना होने से चावल उनमें से वर्तमान के जैन लोग जनेऊ पहनकर जैन के रूप सुपाच्य है। जैन और ब्राह्मणों को छोड़कर अन्य लोग में दीक्षित किये गये। बचे बाकी लोग शैवधर्मानुयायी बन ज्यादातर मांसाहारी हैं। गांवों में जैनियों का निवास स्थान कर रहे गये। अब वे लोग मौजूद हैं। इसका मतलब यह अलग रहता है। वहाँ मांस बेचनेवाले जाते ही नहीं। इस है कि एक जमाने में जैन धर्म की रक्षा जनेऊ से हुई थी, तरह जैन लोग गांवों में पृथक् रहकर अपना आचरण इसे कभी नहीं भूल सकते। करते हैं। अन्य मत वाले जैनियों का आदर करते हैं। वर्तमान में यहाँ रहनेवाले जैन लोग ज्यादातर कृषक परंतु आजकल कम होता जा रहा है। है, अर्थात् खेती करने वाले हैं। वे लोग गांवों में रहते यहाँ की जैन संस्कृति का ह्रास अधिकतर शैववालों हैं। जैनियों के सैकड़ों गांव हैं। जैनियों के लड़के अब से हुआ है। एक जमाने में तमिलनाडु जैन वाङ्मय से पढ़ने लगे हैं। अंग्रेजी का प्रचार ज्यादा है। अपने जैन और कला कौशल से समृद्ध था। यह ऐतिहासिक तथ्य युवक नौकरी भी करते हैं। वकील, इंजीनियर, डॉक्टर है। ऐसा कला केंद्र देश इस तरह अवनति की हालत में ऑडिटर और अध्यापक आदि पदवीधर हैं। धनाढ्य । आने का कारण क्या था ? केवल मत-द्वेष, धर्म के नाम नहीं के बराबर हैं। हर गांव में जैन मंदिर है। कुछ से जो संघर्ष हुआ था, उसी कारण यह हालत हुई। दुरावस्था में है। धनाभाव के कारण कुछ मंदिरों का असत्य के द्वारा सत्य छिपाया गया था। अहिंसावादी जीर्णोद्धार नहीं हो पा रहा है। पुरुषों की अपेक्षा नारियों धर्मात्मा लोगों को खत्म कर दिया गया था। अन्य लोगों को धर्म के प्रति श्रद्धा ज्यादा है। कछ लोग देवदर्शन का यह विचार रहता था कि अहिंसावादी रहेंगे तो अपना आदि नित्यकर्म करते हैं। फिर भी शिथिलता पाई जाती हिंसात्मक कांड नहीं चलेगा। अतः इन लोगों को किसी न किसी तरह से खत्म कर देना है। इस तरह कंकण (राखी) है। परंतु सर्वथा अभाव नहीं है। बांधकर नाश किया गया था। प्रजा अनभिज्ञ थी। उसे यहाँ की तमिल भाषा में ग्रंथ बहुत है। धनाभाव के । सत्यासत्य का विचार नहीं था। अनभिज्ञता के कारण झूठे कारण कुछ अप्रकाशित भी है। जैन ग्रंथों को जैनियों की चाल-बाजियों के जाल में प्रजा फँस जाती थी तथा अकृत्य अपेक्षा अजैन लोग प्रकाशन में लाते हैं। क्यों कि जैन भी कर डालती थी। १२० तमिलनाडु में जैन धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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