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________________ जैन संस्कृति का आलोक है। डॉ. सुदीप जी प्राकृत विद्या, जुलाई - सितम्बर ६६ में डॉ. टाटिया जी के उक्त व्याख्यानों के विचार बिन्दुओं को अविकल रूप से प्रस्तुत करते हुए लिखते हैं कि "हरिभद्र का सारा योगशतक धवला से है।" इसका तात्पर्य है कि हरिभद्र ने अपने योगशतक को धवला के आधार पर बनाया है। क्या टाटिया जी जैसे विद्वान् को इतना भी इतिहास बोध नहीं है कि योगशतक के कर्ता हरिभद्र सूरी और धवला के कर्ता में कौन पहले हुआ? यह तो ऐतिहासिक सत्य है कि हरिभद्रसूरि का योगशतक (आठवीं शती) धवला (१०वीं शती) से पूर्ववर्ती है। मुझे विश्वास भी नहीं होता है, कि टाटिया जी जैसा विद्वान् इस ऐतिहासिक सत्य को अनदेखा कर दे। कहीं न कहीं उनके नाम पर कोई भ्रम खड़ा किया जा रहा है। डा. टाटिया जी को अपनी चुप्पी तोड़कर भ्रम का निराकरण करना चाहिए। वस्तुतः यदि कोई भी चर्चा प्रमाणों के आधार पर नहीं होती तो उसे मान्य नहीं किया जा सकता, फिर चाहे उसे कितने ही बड़े विद्वान ने क्यों नहीं कहा हो। यदि व्यक्ति का ही महत्व मान्य है, तो अभी संयोग से टाटिया जी से भी वरिष्ठ अन्तर-राष्ट्रीय ख्याति के जैन-बौद्ध विद्याओं के महामनीषी और स्वयं टाटिया जी के गुरु पद्म विभूषण पं. दलसुख भाई हमारे बीच हैं, फिर तो उनके कथन को अधिक प्रमाणिक मानकर प्राकृत विद्या के सम्पादक को स्वीकार करना होगा। और यह सब प्रास्ताविक बातें थी, जिससे यह समझा जा सके कि समस्या क्या है, कैसे उत्पन्न हुई? हमें तो व्यक्तियों के कथनों या कर्तव्यों पर न जाकर तथ्यों के प्रकाश में इसकी समीक्षा करनी है कि आगमों की मूलभाषा क्या थी और अर्धमागधी और शौरसेनी में कौन प्राचीन है? आगमों की मूल भाषा अर्धमागधी ___यह एक सुनिश्चित सत्य है कि महावीर का जन्म-क्षेत्र और कार्य-क्षेत्र दोनों ही मुख्य रूप से मगध और उसके समीपवर्ती क्षेत्र में ही था। अतः यह स्वाभाविक है कि उन्होंने जिस भाषा को बोला होगा वह समीपवर्ती क्षेत्रीय बोलियों से प्रभावित मागधी अर्थात् अर्धमागधी रही होगी। व्यक्ति की भाषा कभी भी अपनी मातृभाषा से अप्रभावित नहीं होती। पुनः श्वेताम्बर-परम्परा में मान्य जो भी आगम साहित्य आज उपलब्ध है, उनमें अनेक ऐसे सन्दर्भ हैं, जिनमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख हैं कि महावीर ने अपने उपदेश अर्धमागधी भाषा में दिये थे। इस सम्बन्ध में अर्धमागधी आगम साहित्य से कुछ प्रमाण प्रस्तुत किये जा रहे हैं, यथा - १. भगवं च णं अद्धमागहीए भासाए धम्ममाइक्खइ। - समवायांग, समवाय ३४, सूत्र २२ २. तए णं समणे भगवं महावीरे कुणिअस्स भंभसारपुतस्स अद्धमागहीए भासाए भासत्ति अरिहाधम्म परिकहइ। - औपपातिक-सूत्र ३. गोयमा ! देवाणं अद्धमागहीए भासाए भासंति सवियण __ अद्धमागही भासा भासिजमाणी विसज्जति। - भगवई, (लाडनूं) शतक ५, उद्देशक ४, सूत्र ६३ ४. तए णं समणे भगवं महावीरे उसभदत्त माहणस्स देवाणंदा माहणीए तीसे य महति महलियाए इसिपरिसाए मुणिपरिसाए जइपरिसाए....सव्व भासाणुगामणिए सरस्सईए जोयणणीहारिणासरेणं अद्धमगहाए भासाए भासइ धम्म परिकहइ। - भगवई (लाडनूं) शतक ६, उद्देशक ३३, सूत्र १४६ ५. तए णं समणे भगवं महावीरे जामालिस्स खत्तियकुमारस्स.... अद्धमागहाए भासाए भासइ धम्म परिकहइ । - भगवई (लाडनूं) शतक ६ उद्देशक ३३ सूत्र १६३ । ६. सव्वसत्तसमदरिसीहिं अदमागहाए भासाए सत्तं उवदिटठं। - आचारांग चूर्णि, जिनदासगणि पृ.२५५ | जैन आगमों की मूल भाषा : अर्धमागधी या शौरसेनी ? Jain Education International For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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