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________________ साधना का महायात्री : श्री सुमन मुनि वीरता के साथ रहें, कायर बनकर नहीं । शेर बनकर रहिए। कुत्तों की तरह पीछे से टांग मत पकड़िए । निंदा करना कायरता है। झगड़ना दुर्बलता है। लांछन लगाना नीचता है, बस, इनसे बचे रहें । खरबूजे की तरह ऊपर से भले ही एक-एक फांक अलग-अलग दीखें परन्तु भीतर सब एक हैं। पूरा खरबूजा एक है। बस, आप भले ही ऊपर से अपनी-अपनी परम्पराओं से परन्तु भीतर से जैनत्व के साथ, महावीर के नाम रहें । जुड़े रहें, पर एक बने एकता के लिए सबसे पहले निम्न पहलुओं पर हमें पहल करनी होगी (१) एक-दूसरे की निंदा, आलोचना, आक्षेप, चरित्र हनन जैसे घृणित व नीच कार्यों पर तुरंत प्रतिबंध लगे । (२) तीर्थों, मन्दिरों, धर्म - स्थानों व शिक्षा संस्थाओं आदि के झगड़े बन्द किये जाय । इनके विवाद निपटाने के लिए साधु वर्ग या त्यागी वर्ग को बीच में न डालें और न ही जैन संस्था का कोई भी विवाद न्यायालय में जाये। दोनों समाज के प्रतिनिधि मिलकर परस्पर विचार विनिमय से 'कुछ लें, कुछ दें' की नीति के आधार पर उन विवादों का निपटारा किया जाय । अहंकार और स्वार्थ की जगह धर्म की प्रतिष्ठा को महत्व दिया जाय । महावीर का नाम आगे रखें । (३) सभी जैन श्रमण, त्यागीवर्ग परस्पर एक-दूसरी परम्परा के श्रमणों से प्रेम व सद्भाव पूर्वक व्यवहार करें । २० Jain Education International आदर व सम्मान दें । (४) महावीर जयन्ती, विश्व मैत्री दिवस जैसे सर्व सामान्य पर्व दिवसों को समूचा जैन समाज एक साथ मिलकर एक मंच पर मनाये। सभी परम्परा के श्रमण एक मंच पर विराजमान होकर भगवान् महावीर की अहिंसा, विश्व शांति का उपदेश सुनायें । (५) संवत्सरी पर्व, दशलक्षण पर्व, क्षमा दिवस जैसे सांस्कृतिक व धार्मिक पर्व एक ही तिथि को सर्वत्र मनाये जाएं। इस प्रकार हम एक-दूसरे के निकट आ सकते हैं। मैं विलय का पक्षपाती नहीं हूँ, केवल समन्वय चाहता हूँ । विलय हो नहीं सकता। जो संभव नहीं उसके विषय में सोचना भी व्यर्थ है । समन्वय हो सकता है। हमारा दर्शन अनेकान्तवादी है। इसलिए हम परस्पर एक-दूसरे के सहयोगी बनकर एक-दूसरे की उन्नति और प्रगति में सहायक बनें। एक-दूसरे को देखकर प्रसन्न हों। इस पृष्ठभूमि पर ही हमें सोचना चाहिए । गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे । बने जहाँ तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे ।। यदि जैन एकता के लिए यह प्राथमिक आधारभूमि बन सके तो इस शताब्दी की इस सहस्राब्दी की यह उल्लेखनीय ऐतिहासिक घटना सिद्ध होगी । जो भाग्यशाली इसका श्रेय लेगा वह इतिहास का स्मरणीय पृष्ठ बन जायेगा । ••• आचार्य श्रीमद् विजय नित्यानन्द सूरिजी महाराज जैन संघ के प्रभावशाली संत है। आपका जन्म वि. सं. २०१५ में दिल्ली में हुआ और आपने मात्र ६ वर्ष की अल्पायु में दीक्षा ग्रहण की। आप अध्ययनशील, गुण-ग्राही एवं जिज्ञासु वृत्ति के धनी हैं। आप श्री के समन्वयपरक व्यक्तित्व ने समाज में एकता, संगठन एवं शान्तिपूर्ण सौहार्द स्थापित करने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आपने शिक्षा व मानव सेवा के क्षेत्र में अनेक कार्य किये हैं तथा शिक्षालयों, चिकित्सालयों व सहायता केन्द्रों की भी स्थापना की। 'नवपद पूजे, शिवपद पावे' ग्रन्थ आपकी श्रेष्ठ धार्मिक कृति है । संपादक For Private & Personal Use Only जैन एकता : आधार और विस्तार www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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