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________________ जैन संस्कृति का आलोक कैसे निभती है और किस प्रकार हम सब एक-दूसरे के लिए तुम अपने धर्म व संस्कृति को सुरक्षित नहीं रख सकोगे।" उपयोगी और सहयोगी बन सकते हैं? संगठन की बात उन्होंने सभी संप्रदायों के आचार्यों व नेताओं से भी संपर्क करने वाले जरा पांच मिनट शांत चित्त से अपने ही शरीर किया था। जैन एकता के प्रयासों में काफी प्रगति हुई थी पर चिन्तन करें। प्रकृति द्वारा पढ़ाया यह पाठ याद करें कि परन्तु कहते हैं ऐन मौके पर मक्खी छींक गई। कुछ एकता या संगठन कैसे चलता है। कैसे निभाया जाता है। सांप्रदायिक तत्त्वों ने उन प्रयासों को सफल नहीं होने दिया हमारे आचार्यों ने हजारों वर्ष पहले ही हमें एक और जैन समाज पहले से भी ज्यादा फूट ग्रस्त हो गया। अमर सूत्र दिया था -- परस्परोपग्रहो जीवानाम् । सभी जीव जो जैन समाज अनेकान्तवादी हैं, स्याद्वादी हैं, जिसने परस्पर एक दूसरे के उपकारी व सहयोगी होते हैं। यह समन्वय का सिद्धान्त संसार को सिखाया है, परस्पर सहयोग जीव का स्वभाव है, प्रकृति का नियम है और इसी एवं उपकार का अमर सिद्धान्त जिसने अपने दर्शन का आधार पर मानव समाज क्या, समूचा प्राणिजगत् जीवित आधार माना है - वही जैन समाज एकता और संगठन के है, गतिशील है / प्रगतिशील है और उन्नतिशील है। लिए वर्षों से बातें कर रहा है, परन्तु आज भी वही ढाक के ___ अपने ऊपर आकाश मंडल में देखिए जरा। इस तान पात ! नील गगन में असंख्य-असंख्य तारे अनादि काल से विचरण मुझे दुख होता है यह देखकर कि आज पहले से भी कर रहे हैं। सब तारों का अपना-अपना प्रभाव है, अपनी- ज्यादा फूट-द्वेष-झगड़े और एक दूसरे पर दोषारोपण करने अपनी चमक है और अपना मंडल है, दायरा है। कभी की प्रवृत्ति बढ़ी है, बढ़ रही है और यही प्रवृत्ति हमारे समाज कोई किसी दूसरे की सीमा पर आक्रमण नहीं करता। की शान्ति को छिन्न-भिन्न कर रही है। फूट का घुन किसी पर प्रहार नहीं करता। किसी से कोई टकराता समाज रूपी वृक्ष की जड़ें खोखली करता जा रहा है। बल्कि नहीं। सब तारे मिलकर संसार को प्रकाशित कर रहे हैं। कहूं, कर चुका है। क्या हम इस संसार में रहकर अपना अलग अस्तित्व । वार्थ व अहंकार त्यागे बिना एकता कैसी ? रखकर भी तारों की तरह विचरण नहीं कर सकते? क्या हमारी एकता, हमारा संगठन इतना प्रभावशाली नहीं हो आप जानते हैं एकता बातों से नहीं होती, केवल सकता कि जैन शासन के सभी तारे मिलकर संसार को भाषणबाजी से एकता नहीं चलती। एकता के लिए एक प्रकाश देते रहें? बात छोड़नी पड़ती है और एक बात स्वीकारनी पड़ती है। एकता का आधार है – सरलता, प्रेम और विश्वास । मुझे आश्चर्य होता है और खेद भी होता है कि एकता का शत्रु है - अहंकार और स्वार्थ । आज जैन एकता की बातें हो रही हैं और वह भी हवाई। पचासों वर्षों से जैन एकता और जैन समाज का संगठन एक ऐतिहासिक उदाहरण होने की चर्चायें चल रही हैं। हमारे आचार्य श्रीमद् भगवान् महावीर के समय में गणधर इन्द्रभूति १४ विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. ने जैन एकता के लिए हजार साधुओं में सबसे ज्येष्ठ थे। प्रथम गणधर थे। पचास वर्ष पहले एक जोरदार प्रयास प्रारंभ किया था। अगणित लब्धि-ऋद्धि-सिद्धि के धारक थे। देव-देवेन्द्र भी उनकी आत्मा का कण-कण, शरीर का रोम-रोम पुकारकर उनके चरणों की रज मस्तक पर चढ़ाकर आनन्दित होते कह रहा था.... “जैनों! एक हो जाओ ! एकता के बिना थे। स्वयं को भाग्यशाली समझते थे। वे गौतम स्वामी, | जैन एकता : आधार और विस्तार १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012027
Book TitleSumanmuni Padmamaharshi Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadreshkumar Jain
PublisherSumanmuni Diksha Swarna Jayanti Samaroh Samiti Chennai
Publication Year1999
Total Pages690
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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